15+ मजेदार हिंदी कहानियां बच्चों के लिए । Bacchon Ki Kahaniyan 2023

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हिंदी कहानियां बच्चों के लिए : कहानियां एक सरल जरिया हैं, बच्चों को अच्छे संस्कार, नैतिक ज्ञान देने का। उन्हें बेहतर इंसान बनाने का। संभवत: यही कारण है कि आज आप हमारे वेबसाइट पर मजेदार हिंदी कहानियां बच्चों के लिए, बच्चों की अच्छी अच्छी कहानियां,बच्चों की बाल कहानियां, बच्चों के लिए प्रेरक कहानियां आदि कहानियां की खोज में आये हैं।

इन कहानियों को पढ़कर बच्चों को बहुत ही अच्छी नैतिक शिक्षा मिलेगी और उनका साथ की साथ मनोरंजन भी होगा। अक्सर छोटे बच्चे कहानियों के बहुत ही शौकीन होते है और उन्हें कहानियाँ सुन्ना बहुत ही पसंद होता है।

बच्चे मजेदार कहानियों के बारे में सुनने में बहुत ही उत्साहित होते है। और उन्हें इनके बारे में जानना अच्छा लगता है। आप इन कहानी को रात को सोते वक़्त बच्चों को सुना सकते है। तो आए जानते है हिंदी कहानियां बच्चों के लिए Chhote Bacchon Ki Kahaniyan के बारे में। 

वाल्मीकि रामायण कथा हिंदी में । Ramayan Katha In Hindi

Table of Contents

1. चालाक गधा (शिक्षाप्रद बच्चों की कहानियां)

चालाक गधा (शिक्षाप्रद बच्चों की कहानियां)

एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया.  वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से चिल्लाता  रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं.

अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था, अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिए .

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया. सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी. जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है, वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा .

और फिर, अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया. सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे. तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया.

अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था. वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था.

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे-वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और ऊपर चढ़ आता . जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुँच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया.

ध्यान रखो, तुम्हारे जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी, बहुत तरह कि गंदगी तुम पर गिरेगी.

जैसे कि, तुम्हे आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही तुम्हारी आलोचना करेगा,कोई तुम्हारी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा .

कोई तुमसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो तुम्हारे आदर्शों के विरुद्ध होंगे. ऐसे में तुम्हे हतोत्साहित होकर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर, उसे सीढ़ी बनाकर, बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है.

2. मेंढक की विजय (Bacchon Ki Kahaniyan)

बहुत समय पहले की बात है एक सरोवर में बहुत सारे मेंढक रहते थे. सरोवर के बीचों-बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था. जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था. खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी.

एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए. रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगियों को खम्भे पर चढ़ना होगा, और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा.

रेस का दिन आ पहुँचा, चारो तरफ बहुत भीड़ थी, आस-पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुचे. माहौल में सरगर्मी थी, हर तरफ शोर ही शोर था.

रेस शुरू हुई लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआ कि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा …

हर तरफ यही सुनाई देता …

“ अरे ये बहुत कठिन है ”

“ वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे ”

“ सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं, इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता ”

और यही हो भी रहा था, जो भी मेंढक कोशिश करता, वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता, कई मेंढक दो-तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे …

पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी, “ ये नहीं हो सकता, असंभव ”, और वो उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया.

लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था, जो बार-बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था …. वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा, और अंततः वह खम्भे के ऊपर पहुच गया और इस रेस का विजेता बना.

उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ, सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे , “ तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?”

तभी पीछे से एक आवाज़ आई … “अरे उससे क्या पूछते हो, वो तो बहरा है ”

दोस्तों हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबिलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं

उन्हें पूरा करने की कोशिश भी नहीं करते हैं.आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएँ और मन लगाकर कोशिश करें तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा.

3. बुद्धि का फल (बच्चों की बाल कहानियां)

एक रोज की बात है कि बादशाह अकबर के दरबार में लंका के राजा का एक दूत पहुँचा . उसने बादशाह अकबर से एक नयी तरह की माँग करते हुए कहा –“ आलमपनाह ! आपके दरबार में एक से बढ़कर एक बुद्धिमान, होशियार तथा बहादुर दरबारी मौजूद हैं .

हमारे महाराज ने आपके पास मुझे एक घड़ा भरकर बुद्धि लाने के लिए भेजा है . हमारे महाराज को आप पर पूरा भरोसा है कि आप उसका बन्दोबस्त किसी-न-किसी तरह और जल्दी ही कर देंगे .”

यह सुनकर बादशाह अकबर चकरा गए .

उन्होंने अपने मन में सोचा  – “ क्या बेतुकी माँग है, भला घड़े भर बुद्धि का बन्दोबस्त कैसे किया जा सकता है ? लगता है  लंका का राजा हमारा मजाक बनाना चाहता है, कहीं वह इसमें सफल हो गया तो …?

तभी बादशाह को बीरबल का ध्यान आया, वे सोचने लगे कि शायद यह कार्य बीरबल के वश का भी न हो, मगर उसे बताने में बुराई ही क्या है ?

जब बीरबल को बादशाह के बुलवाने का कारण ज्ञात हुआ तो वह मुस्कराते हुए कहने लगे – “ आलमपनाह ! चिन्ता की कोई बात नहीं, बुद्धि की व्यवस्था हो जाएगी, लेकिन इसमें कुछ हफ्ते का वक़्त लग सकता है .”

बादशाह अकबर बीरबल की इस बात पर कहते भी तो क्या, बीरबल को मुँह माँगा समय दे दिया गया .

बीरबल ने उसी दिन शाम को अपने एक खास नौकर को आदेश दिया – “ छोटे मुँह वाले कुछ मिट्टी के घड़ों की व्यवस्था करो .”

नौकर ने फ़ौरन बीरबल की आज्ञा का पालन किया .

घड़े आते ही बीरबल अपने नौकर को लेकर कददू की एक बेल के पास गए . उन्होंने नौकर से एक घड़ा ले लिया, बीरबल ने घड़े को एक कददू के फूल पर उल्टा लटका दिया, इसके बाद उन्होंने सेवक को आदेश दिया कि बाकि सारे घड़ों को भी इसी तरह कददू के फूल पर उल्टा रख दें .

बीरबल ने इस काम के बाद सेवक को इन घड़ों की देखभाल सावधानीपूर्वक करते रहने का हुक्म दिया और वहाँ से चले गए .

बादशाह अकबर ने कुछ दिन बाद इसके बारें में पूछा, तो बीरबल ने तुरन्त उत्तर दिया – “ आलमपनाह ! इस कार्य को हो चुका समझें, बस दो सप्ताह का समय और चाहिए, उसके बाद पूरा घड़ा बुद्धि से लबालब भर जायेगा .”

बीरबल ने पन्द्रह दिन के बाद घड़ों के स्थान पर जाकर देखा कि कददू के फल घड़े जितने बड़े हो गए हैं, उन्होंने नौकर की प्रशंसा करते हुए कहा – “तुमने अपनी जिम्मेदारी बड़ी कुशलतापूर्वक निभायी है, इसके लिए हम तुम्हे इनाम देंगे .”

इसके बाद बीरबल ने लंका के दूत को बादशाह अकबर के दरबार में बुलाया और उसे बताया कि बुद्धि का घड़ा लगभग तैयार है . और बीरबल ने तुरन्त ताली बजाई, ताली की आवाज सुनकर बीरबल का सेवक एक बड़ी थाली में घड़ा लिए हुए बड़ी शान से दरबार में हाज़िर हुआ .

बीरबल ने घड़ा उठाया और उसे लंका के दूत के हाथ में सौंपते हुए कहा – “ लीजिए श्रीमान आप इसे अपने महाराज को भेंट कर दीजिए, लेकिन एक बात अवश्य ध्यान रखियेगा कि खाली होने पर हमारा यह कीमती बर्तन हमें जैसा-का –तैसा वापस मिल जाना चाहिए . इसमें रखा बुद्धि का फल तभी प्रभावशाली होगा जब इस बर्तन को कोई नुकसान न पहुँचे .

इस पर दूत ने कहा –“ हुजूर ! क्या मैं भी इस बुद्धि के फल को देख सकता हूँ .”

“हाँ ..हाँ जरुर .” बीरबल ने गर्दन हिलाते हुए कहा .

घड़े देखकर परेशान होते हुए दूत ने मन-ही–मन सोंचा –“हमारी भी मति मारी गई है . भला हमें भी क्या सूझी, बीरबल का कोई जवाब नहीं है ….भला ऐसी बात मैंने सोची कैसे ?”

घड़ा लेकर दूत के जाते ही बादशाह अकबर ने भी घड़े को देखने की इच्छा प्रकट की . और बीरबल ने एक घड़ा मँगवा दिया .

जैसे ही उन्होंने घड़े में झाँका उन्हें हँसी आ गयी . वे बीरबल की पीठ ठोकते हुए बोले –“ मान गए भई ! तुमने बुद्धि का क्या शानदार फल पेश किया है, लगता है इसे पाकर लंका के राजा के बुद्धिमान होने में तनिक भी देर नहीं लगेगी .”

4. बंदर और उल्लू (बच्चों के लिए प्रेरक कहानियां)

एक वृक्ष पर एक उल्लू रहता था। उल्लू को दिन में दिखाई नहीं पड़ता। इसीलिए वह दिन भर अपने घोंसले में छिपा रहता है। और जब रात होती है, तो वे शिकार के लिए बाहर निकलते है। गर्मी के दिन थे, दोपहर का समय। आकाश में सूर्य आग के गोले की तरह चमक रहा था। बड़े जोरों को गर्मी पड़ रही थी। 

कहीं से एक बंदर आया और वृक्ष की डाल पर बैठकर बोला, “ओह, बड़ी भीषण गर्मी है। आकाश में सूर्य आग के गोले कौ तरह चमक रहा है।” बंदर की बात उल्लू के भी कानों में पड़ी! वह बोल उठा, “क्या कह रहे हो? सूर्य चमक रहा है। बिलकुल झूठ। चंद्रमा के चमकने की बात कहते तो मान भी लेता।” 

बंदर बोला, “चंद्रमा तो दिन में चमकता नहीं, रात में चमकता है। इस समय दिन है। दिन में सूर्य ही चमकता है। सूर्य का प्रकाश जब तीक्र रूप से फैल जाता है तो भयानक गर्मी पड़ती है। आज सचमुच बड़ी भयानक गर्मी पड़ रही है।” बंदर ने उल्लू को समझाने का बड़ा प्रयल किया कि आकाश में सूर्य चमक रहा है और उसके कारण भयानक गर्मी, पड़ रही है, पर उल्लू अपनी बात पर अड़ा रहा। 

बंदर के अधिक समझाने पर भी वह यही कहता रहा कि न तो सूर्य है, न सूर्य का प्रकाश है और न गर्मी पड़ रही है। उल्लू और बंदर दोनों जब देर तक अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे थे, तो उल्लू ने अपने दोस्तों के पास चल कर निर्णय करने का विचार किया। बंदर ने उल्लू की बात मान ली। उल्लू उसे साथ लेकर दूसरे वृक्ष पर गया। 

दूसरे वृक्ष पर सैकड़ों उल्लू रहते थे। उल्लू ने अपने जाति-भाइयों को एकत्र करके कहा, “भाइयो, इस बंदर का कहना है, इस समय दिन है और आकाश में सूर्य चमक रहा है। आप लोग ही निर्णय करें, इस समय दिन है या नहीं, और आकाश में सूर्य चमक रहा है या नहीं।”

उल्लू की बात सुनकर उसके जाति-भाई बंदर पर हँस पढ़े और उसका उपहास करते हुए बोले, “क्या कह रहे हो जी, आकाश में सूर्य चमक रहा है? बिलकुल अंधे हो। हमारी बस्ती में ऐसो झूठी बात का प्रचार मत करो।” पर बंदर अपनी बात पर ठान था। बंदर की बात सुनकर सभी उल्लू कुपित हो उठे और बंदर को मारने के लिए झपट पढ़े।

बंदर प्राण बचाकर भाग चला। कुशल था कि दिन होने के कारण उल्लुओं को दिखाई नहीं पड़ रहा था। उधर दिन होने के कारण बंदर को दिखाई पड़ रहा था। उसने सरलता से भागकर उल्लुओं से अपनी रक्षा कर ली।

Moral – जहाँ मूर्खों का बहुमत होता है, वहां इसी प्रकार सत्य को भी असत्य सिद्ध कर दिया जाता है।

5. कीमती पत्थर (बच्चों की कहानियां मजेदार

एक युवक कविताएँ लिखता था, लेकिन उसके इस गुण का कोई मूल्य नहीं समझता था. घरवाले भी उसे ताना मारते रहते कि तुम किसी काम के नहीं, बस कागज काले करते रहते हो.

उसके अन्दर हीन-भावना घर कर गयी. उसने एक जौहरी मित्र को अपनी यह व्यथा बतायी. जौहरी ने उसे एक पत्थर देते हुए कहा – जरा मेरा एक काम कर दो.

यह एक कीमती पत्थर है. कई तरह के लोगो से इसकी कीमत का पता लगाओ, बस इसे बेचना मत. युवक पत्थर लेकर चला गया. वह पहले एक कबाड़ी वाले के पास गया. कबाड़ी वाला बोला – पांच रुपये में मुझे ये पत्थर दे दो.

फिर वह सब्जी वाले के पास गया. उसने कहा तुम एक किलो आलू के बदले यह पत्थर दे दो, इसे मै बाट की तरह इस्तेमाल कर लूँगा. युवक मूर्तिकार के पास गया.

मूर्तिकार ने कहा – इस पत्थर से मै मूर्ति बना सकता हूँ, तुम यह मुझे एक हजार में दे दो. आख़िरकार युवक वह पत्थर लेकर रत्नों के विशेषज्ञ के पास गया.

उसने पत्थर को परखकर बताया – यह पत्थर बेशकीमती हीरा है जिसे तराशा नहीं गया. करोड़ो रुपये भी इसके लिए कम होंगे. युवक जब तक अपने जौहरी मित्र के पास आया, तब तक उसके अन्दर से हीन भावना गायब हो चुकी थी और उसे एक सन्देश मिल चुका था.

मोरल : हमारा जीवन बेशकीमती है, बस उसे विशेषज्ञता के साथ परखकर उचित जगह पर उपयोग करने की आवश्यकता है.

6. सोचने से क्या फर्क पड़ता है ( बच्चों के लिए शिक्षाप्रद मजेदार छोटी कहानियां)

एक दिन एक औरत गोल्फ खेल रही थी. जब उसने बॉल को हिट किया तो वह जंगल में चली गई.  वह बॉल को खोजने गई तो उसे एक मेंढक मिला जो जाल में फंसा हुआ था.  मेंढक ने उससे कहा – “अगर तुम मुझे इससे आजाद कर दोगी तो मैं तुम्हें तीन वरदान दूँगा.

“महिला ने उसे आजाद कर दिया.

मेंढक ने कहा – “धन्यवाद, लेकिन तीन वरदानों में मेरी एक शर्त है जो भी तुम माँगोगी तुम्हारे पति को उससे दस गुना मिलेगा.

महिला ने कहा – “ठीक है” उसने पहला वरदान मांगा कि मैं संसार की सबसे खुबसूरत स्त्री बनना चाहती हूँ.

मेंढक ने उसे चेताया – “क्या तुम्हें पता है कि ये वरदान तुम्हारे पति को संसार का सबसे सुंदर व्यक्ति बना देगा.

महिला बोली – “दैट्स ओके, क्योंकि मैं संसार की सबसे खुबसूरत स्त्री बन जाऊँगी और वो मुझे ही देखेगा.”

मेंढक ने कहा – “तथास्तु”

अपने दूसरे वरदान में उसने कहा कि मैं संसार की सबसे धनी महिला बनना चाहती हूँ.

मेंढक ने कहा – “यह तुम्हारे पति को विश्व का सबसे धनी पुरुष बना देगा और वो तुमसे दस गुना पैसे वाला होगा .”

महिला ने कहा – “कोई बात नहीं. मेरा सब कुछ उसका है और उसका सब कुछ मेरा .”

मेंढक ने कहा – “तथास्तु”

जब मेंढक ने अंतिम वरदान के लिये कहा तो उसने अपने लिए एक “हल्का सा हर्ट अटैक मांगा.”

मोरल ऑफ स्टोरीः महिलाएं बुद्धिमान होती हैं, उनसे बच के रहें .

महिला पाठकों से निवेदन है आगे ना पढें, आपके लिये जोक यहीं खत्म हो गया है . यहीं रुक जाएँ और अच्छा महसूस करें .

पुरुष पाठकः कृपया आगे पढें.

उसके पति को उससे “10 गुना हल्का हार्ट अटैक” आया.

मोरल ऑफ द स्टोरी : महिलाएं सोचती हैं वे वास्तव में बुद्धिमान हैं.

उन्हें ऐसा सोचने दो, क्या फर्क पडता है. ...यह एक जोक था , इसे अन्यथा ना लें . 

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7. मेहनत का फल (बच्चों के लिए हिंदी कहानियां )

बहुत पुरानी बात है । एक बरगद के पेड़ पर एक कौआ रहता था । कौआ कामचोर था । उसने पेड़ पर अपना घोंसला बनाया । जल्दबाजी और कामचोरी के कारण उसका घोंसला मजबूत नही बना । कुछ दिनों बाद उस पेड़ पर रहने के लिए एक बया आई । बया बहुत मेहनती थी । वह अपना घोंसला उस पेड़ पर बनाने लगी।

वह कही दूर से सरकंडे की पतली सींक लाती थी और अपनी तेज चोंच से उसे चीर कर सावधानी से घोंसले में बनुती थी । इस तरह करते देखकर कौए ने उसका मजाक बनाया और बोला , ” इस तरह घोंसला बनाओगी तो सारी उम्र बीत जाएगी ।

“कौए की बात सुनकर बया ने बोला की ” भैया मेरी माँ ने मुझे लगन और मेहनत के साथ काम करने की सीख दी हैं । “
यह सुनकर कौआ बया पर हँसने लगा । बया ने कौए की बात को अनसुना कर दिया और अपना काम करती रही । अगले दिन जाकर उसका घोंसला पूरा हुआ । अब बया उसमें रहने लगी ।
दिन बीतने लगें ।

एक दिन बड़े जोर की आँधी आई । छोटे – छोटे पेड़ टूटकर गिर गए । कौए का घोंसला भी उड़कर बिखर गया । कौए ने पेड़ के कोटर में छिपकर अपनी जान बचाई । जब आँधी रूकी तो कौआ बया के घोंसले के पास गया ।

उसका घोंसला सही सलामत अपने स्थान पर मौजूद था । कौए को अब अपनी गलती का एहसास हुआ उसने बया से कहा , ” बया मैने मेहनत से जी चुराया और तुम्हारा मजाक उड़ाया , उसके लिए मुझे माफ कर देना । मै तुम्हारी सीख जीवनभर याद रखूगा ।

8. संगीतमय गधा (Bacchon Ki Hindi Kahani)

गाँव में रहने वाले एक धोबी के पास उद्धत नामक एक गधा था। धोबी गधे से काम तो दिन भर लेता, लेकिन खाने को कुछ नहीं देता था। हाँ, रात्रि के पहर वह उसे खुला अवश्य छोड़ देता था। ताकि इधर-उधर घूमकर वह कुछ खा सके। गधा रात भर खाने की तलाश में भटकता रहता और धोबी की मार के डर से सुबह-सुबह घर वापस आ जाया करता था। 

एक रात खाने के लिए भटकते-भटकते गधे की भेंट एक सियार से हो गई। सियार ने गधे से पूछा, “मित्र! इतनी रात गए कहाँ भटक रहे हो?” सियार के इस प्रश्न पर गधा उदास हो गया। उसने सियार को अपने व्यथा सुनाई, “मित्र! मैं  दिन भर अपनी पीठ पर कपड़े लादकर घूमता हूँ। दिन भर की मेहनत के बाद भी धोबी मुझे खाने को कुछ नहीं देता। इसलिए मैं रात में खाने की तलाश में निकलता हूँ। आज मेरी किस्मत ख़राब है। 

मुझे खाने को कुछ भी नसीब नहीं हुआ। मैं इस जीवन से तंग आ चुका हूँ।” गधे की व्यथा सुनकर सियार को तरस आ गया। वह उसे सब्जियों के एक खेत में ले गया। ढेर सारी सब्जियाँ देखकर गधा बहुत ख़ुश हुआ। उसने वहाँ पेट भर कर सब्जियाँ खाई और सियार को धन्यवाद देकर वापस धोबी के पास आ गया। 

उस दिन के बाद से गधा और सियार रात में  सब्जियों के उस खेत में मिलने लगे। गधा छककर ककड़ी, गोभी, मूली, शलजम जैसी कई सब्जियों का स्वाद लेता। धीरे-धीरे उसका शरीर भरने लगा और वह मोटा-ताज़ा हो गया। अब वह अपना दुःख भूलकर मज़े में रहने लगा। 

एक रात पेट भर सब्जियाँ खाने के बाद गधे मदमस्त हो गया। वह स्वयं को संगीत का बहुत बड़ा ज्ञाता समझता था। उसका मन गाना गाने मचल उठा। उसने सियार से कहा, “मित्र! आज मैं बहुत ख़ुश हूँ। इस खुशी को मैं गाना गाकर व्यक्त करना चाहता हूँ। तुम बताओ कि मैं कौन सा आलाप लूं?”

गधे की बात सुनकर सियार बोला, “मित्र! क्या तुम भूल गए कि हम यहाँ चोरी-छुपे घुसे हैं। तुम्हारी आवाज़ बहुत कर्कश है। यह आवाज़ खेत के रखवाले ने सुन ली और वह यहाँ आ गया, तो हमारी खैर नहीं। बेमौत मारे जायेंगे। मेरी बात मानो, यहाँ से चलो।”

गधे को सियार की बात बुरी लग गई। वह मुँह बनाकर बोला, “तुम जंगल में रहने वाले जंगली हो। तुम्हें संगीत का क्या ज्ञान? मैं संगीत के सातों सुरों का ज्ञाता हूँ। तुम अज्ञानी मेरी आवाज़ को कर्कश कैसे कह सकते हो? मैं अभी सिद्ध करता हूँ कि मेरी आवाज़ कितनी मधुर है।”

सियार समझ गया कि गधे को समझाना असंभव है। वह बोला, “मुझे क्षमा कर दो मित्र। मैं तुम्हारे संगीत के ज्ञान को समझ नहीं पाया। तुम यहाँ गाना गाओ। मैं बाहर खड़ा होकर रखवाली करता हूँ। ख़तरा भांपकर मैं तुम्हें आगाह कर दूँगा।”

इतना कहकर सियार बाहर जाकर एक पेड़ के पीछे छुप गया। गधा खेत के बीचों-बीच खड़ा होकर अपनी कर्कश आवाज़ में रेंकने लगा। उसके रेंकने की आवाज़ जब खेत के रखवाले के कानों में पड़ी, तो वह भागा-भागा खेत की ओर आने लगा। सियार ने जब उसे खेत की ओर आते देखा, तो गधे को चेताने का प्रयास किया। 

लेकिन रेंकने में मस्त गधे ने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया। सियार क्या करता? वह अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गया। इधर खेत के रखवाले ने जब गधे को अपने खेत में रेंकते हुए देखा, तो उसे दबोचकर उसकी जमकर धुनाई की। गधे के संगीत का भूत उतर गया और वह पछताने लगा कि उसने अपने मित्र सियार की बात क्यों नहीं मानी। 

Moral – अपने अभिमान में मित्र के उचित परामर्श को न मानना संकट को बुलावा देना है। 

9. प्यासा कौवा की कहानी (Kauwe Ki Baccho ki Kahani)

एक बार भीषण गर्मी पड़ी।  पूरा जंगल सूख चूका था।  

सभी प्यासे थे और पानी के लिए तड़प रहे थे। 

वहीँ एक कौआ भी बहुत प्यासा था। काफी ढूंढने पर भी उसको कहीं पानी नहीं मिल पा रहा था। पूरा दिन इधर उधर घूमने पर उसे आखिरकार एक घड़ा दिखाई दिया। 

लेकिन ये क्या – उस घड़े में बहुत थोड़ा सा पानी था। घड़े का मुँह बहुत छोटा था।  इसीलिए कौए की चोंच पानी तक नहीं पहुँच पा रही थी। 

क्या कौवा पानी पी पायेगा ? आप यही सोच रहे हैं ना.  देखते हैं 🙂

अब वह बड़े ध्यान से सोचने लगा और दिमाग घोड़े की तरह दौड़ाने लगा. तभी उसे एक उपाय सूझा। 

उसने देखा की पास ही पत्थर के कुछ टुकड़े पड़े थे। थोड़ी मेहनत का काम था लेकिन सफलता मिल सकती थी. यह सोच  कौए ने एक एक पत्थर उठाया और घड़े में डालता गया। 

यह क्या – सफलता 🙂 धीरे धीरे पानी ऊपर आने लगा। 

और तेजी के साथ कौआ लगातार पत्थर डालता गया। 

देखते ही देखते जल्दी ही पानी ऊपर आ गया कि कौए की चोंच वहाँ तक पहुँच  गई। 

प्यासे कौए ने पानी पिया और अपनी प्यास बुझाई और वहां से उड़ गया ।

10. दो मछलियों और मेंढक की कहानी (Chhote Bacchon Ki Kahani)

एक तालाब में शतबुद्धि (सौ बुद्धियों वाली) और सहस्त्रबुद्धि (हज़ार बुद्धियों वाली) नामक दो मछलियाँ रहा करती थी। उसी तालाब में एकबुद्धि नामक मेंढक भी रहता था। एक ही तालाब में रहने के कारण तीनों में अच्छी मित्रता थी।

दोनों मछलियों शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को अपनी बुद्धि पर बड़ा अभिमान था और वे अपनी बुद्धि का गुणगान करने से कभी चूकती नहीं थीं। 

एकबुद्धि सदा चुपचाप उनकी बातें सुनता रहता। उसे पता था कि शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि के सामने उसकी बुद्धि कुछ नहीं है। एक शाम वे तीनों तालाब किनारे वार्तालाप कर रहे थे। तभी समीप के तालाब से मछलियाँ पकड़कर घर लौटते मछुआरों की बातें उनकी कानों में पड़ी। वे अगले दिन उस तालाब में जाल डालने की बात कर रहे थे, जिसमें शतबुद्धि, सहस्त्रबुद्धि और एकबुद्धि रहा करते थे। 

यह बात ज्ञात होते ही तीनों ने उस तालाब रहने वाली मछलियों और जीव-जंतुओं की सभा बुलाई और मछुआरों की बातें उन्हें बताई। सभी चिंतित हो उठे और शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि से कोई उपाय निकालने का अनुरोध करने लगे। सहस्त्रबुद्धि सबको समझाते हुए बोली, “चिंता की कोई बात नहीं है। दुष्ट व्यक्ति की हर कामना पूरी नहीं होती। मुझे नहीं लगता वे आयेंगे। यदि आ भी गए, तो किसी न किसी उपाय से मैं सबके प्राणों की रक्षा कर लूँगी।”

शतबुद्धि ने भी सहस्त्रबुद्धि की बात का समर्थन करते हुए कहा, “डरना कायरों और बुद्धिहीनों का काम है। मछुआरों के कथन मात्र से हम अपना वर्षों का गृहस्थान छोड़कर प्रस्थान नहीं कर सकते। मेरी बुद्धि आखिर कब काम आयेगी? कल यदि मछुआरे आयेंगे, तो उनका सामना युक्तिपूर्ण रीति से कर लेंगे। इसलिए डर और चिंता का त्याग कर दें।”

तालाब में रहने वाली मछलियों और जीवों को शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि के द्वारा दिए आश्वासन पर विश्वास हो गया। लेकिन एकबुद्धि को इस संकट की घड़ी में पलायन करना उचित लगा। 

अंतिम बार वह सबको आगाह करते हुए बोला, “मेरी एकबुद्धित कहती है कि प्राणों की रक्षा करनी है, तो यह स्थान छोड़कर अन्यत्र जाना सही है। मैं तो जा रहा हूँ। आप लोगों को चलना है, तो मेरे साथ चलें।”

इतना कहकर वह वहाँ से दूसरे तालाब में चला गया। किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया और शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि की बात मानकर उसी तालाब में रहे। अलगे दिन मछुआरे आये और तालाब में जाल डाल दिया। 

तालाब की सभी मछलियाँ उसमें फंस गई। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने अपने बचाव के बहुत यत्न करे, लेकिन सब व्यर्थ रहा। मछुआरों के सामने उनकी कोई युक्ति नहीं चली और वे उनके बिछाए जाल में फंस ही गई। 

जाल बाहर खींचने के बाद सभी मछलियाँ तड़प-तड़प कर मर गई। मछुआरे भी जाल को अपने कंधे पर लटकाकर वापस अपने घर के लिए निकल पड़े। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि बड़ी मछलियाँ थीं। इसलिए मछुआरों ने उन्हें जाल से निकालकर अपने कंधे पर लटका लिया था। 

जब एकबुद्धि ने दूसरे तालाब से उनकी ये दुर्दशा देखी, तो सोचने लगा अच्छा हुआ कि मैं एकबुद्धि हूँ और मैंने अपनी उस एक बुद्धि का उपयोग कर अपने प्राणों की रक्षा कर ली। शतबुद्धि या सहस्त्रबुद्धि होने की अपेक्षा एकबुद्धि होना ही अधिक व्यवहारिक है। 

11. बंदर और मगरमच्छ की कहानी (बच्चों की कहानियां)

यह एक बहुत पुरानी बात है एक गांव में एक बहुत बड़ा जामुन के पेड़ के पास एक नदी थी जामुन के पेड़ पर एक बंदर का घर हुआ करता था बंदर वही रहता और जामुन खाता और उसी पेड़ पर रहता था

एक दिन नदी में एक मगरमच्छ भूख के कारण इधर-उधर घूम रहा था तो वह जामुन के पेड़ के पास आया और  बंदर से बोला क्या तुम मुझे जामुन खिला सकते हो और बंदर ने हा कहां बन्दर ने मगरमच्छ को भर पेट जामुन खिलाया

इसी तरह वह हमेशा मगरमच्छ को जामुन खिलाया करता और  बदले में कभी-कभी मगरमच्छ बंदर को नदी में घुमाया (Trip)  करता और जब मगरमच्छ जामुन खाया करता तो बंदर कभी-कभी जामुन उसकी पत्नी के लिए भी दे दिया करता अब मगरमच्छ और बंदर बहुत अच्छे Friend बन चुके थे

एक दिन जब मगरमच्छ जामुन खाकर अपने घर जामुन अपनी पत्नी के लिए लेकर गया तो उसकी पत्नी ने कहा कि यह जामुन बहुत स्वादिष्ट है यह आपको कौन देता है तो मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को बंदर के बारे में सब कुछ बताया

मगरमच्छ की पत्नी बहुत ही लालची थी उसने सोचा की जब जामुन इतना स्वादिष्ट है तो उसे खाने वाला बंदर कितना स्वादिष्ट होगा और उसने काफी दिनों से मांस भी नहीं खाया था उसने मगरमच्छ से कहा कि क्या आप बंदर को हमारे घर ला सकते हो मुझे उसका दिल खाना है

मगरमच्छ काफी चिंता में आ गया और बोला नहीं बंदर मेरा बहुत अच्छा मित्र है मैं उसके साथ ऐसा नहीं कर सकता मै अपने प्रिय दोस्त बन्दर के साथ दोस्ती नहीं कर सकता बड़ी मुश्किल से मैंने एक दोस्त बनाया है

मगरमच्छ की पत्नी चालाक थी उसने मगरमच्छ को कहा कि मैं बहुत बीमार हूं और मुझे दिल खाने का मन कर रहा है मैंने कितने दिनों से मांस नहीं खाया है है यदि आज आप बंदर को नहीं लेकर आते हो तो मैं शायद कुछ दिनों बाद जिंदा भी न रहू

आप बंदर को हमारे घर में निमंत्रण दे मगरमच्छ बहुत चिंतन में आ गया कि आज तक उसका कोई मित्र (Friend) नहीं था सिर्फ बंदर ही उसका इकलौता (Single) मित्र था

परंतु उसने अंत में यह सोचा कि उसे अपनी पत्नी की जान बचानी (Save) चाहिए और बंदर को लाने के बारे में सोचने लगा और धीरे धीरे जामुन के पेड़ के पास गया

और बंदर को कहा कि मेरी पत्नी ने तुम्हें हमारे घर में बुलाया है बंदर जाने को राजी हुआ बंदर मगरमच्छ के ऊपर बैठा और नदी की ओर जाने लगा जैसे-जैसे नदी की गहराई  में जाता

 तो बंदर को डर लगने लगता और बन्दर ने कहा कहा कि यदि तुम मुझे और आगे ले गए तो मैं मर जाऊंगा और मगरमच्छ ने कहा कि तुम्हें वैसे भी मेरे घर जाकर मरना ही है

और मगरमच्छ ने बंदर को सारी बात बताई कि उसकी पत्नी ने क्यों उसे अपने घर पर बुलाया है क्योकि वो तुम्हारा दिल खाना चाहती है

परंतु बंदर बहुत चालाक था और बन्तुदर ने बोला तुम्हारी पत्नी को तो मेरा दिल खाना है मैं अपना दिल जामुन के पेड़ पर ही छोड़ आया हूं मुझे उसे दोबारा वही लेने जाना पड़ेगा मगरमच्मछ बिना सोचे समझे जामुन की पेड़ की तरफ वापस जाने लगा

 जामुन के पेड़ के पास पहुचते ही बंदर जल्दी से जामुन के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया और बोला मेरे बेवकूफ दोस्त तुम कितने बड़े पागल हो मेरा दिल तो मेरे पास ही है इसलिए तुम्हे दोस्त नहीं मिलते

और इस तरह से मगरमच्छ ने अपने इकलौते दोस्त को खो दिया और बन्दर ने बुद्धिमानी (Intellegence) से अपनी जान बचा ली

12. बंदर और बिल्ली की कहानी (बच्चों की नई कहानियां)

Bandar Aur Billi? एक छोटा सा गांव था  जहां पर कुछ लोग रहा करते थे वहीं पर दो बिल्लिया भी रहा करती थी उन दोनों में बहुत ही अच्छी मित्रता थी और कभी कभी आपस में झगडा भी कर लिया करते थे

उनका गुजारा उस छोटे से गांव से मिले भोजन के द्वारा ही होती थी और अच्छे से अपना पालन पोषण कर लेते थे उन्हें जब भी कोई भी भोजन मिलता था तो वो हमेशा मिल बाटकर खाते थे ताकि कोई भी भूखा न रह पाए

एक दिन उन्हें एक रोटी का टुकड़ा मिला उन दोनों ने एक दूसरे के बीच आपस में आधा-आधा रोटी का टुकड़ा बांट लिया एक बिल्ली को रोटी का टुकड़ा थोड़ा सा कम लगा उसने सोचा दूसरी बिल्ली ने ज्यादा रोटी का टुकड़ा ले लिया है जिसकी वजह से वह आपस में लड़ने लगे

इस तरह से वह किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचे और उन्होंने सोचा हमें यह मसला किसी और के द्वारा सुलझाना चाहिए तब वह एक बंदर के पास जाते है जो उनके घर के बिल्कुल पास रहता था बंदर ने देखा यह दोनों रोटी के लिए झगड़ रहे हैं और बन्दर भी सुबह से भूखा था

फिर दोनों ने यह बताया कि हम अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए कृपया आप हमारी मदद कीजिए इस तरीके से बंदर एक तराजू लाता है और दोनों पलरो में एक एक रोटी का टुकड़ा रखता हैऔर देखता है एक हिस्से में रोटी का टुकड़ा थोड़ा ज्यादा है

जिसकी वजह से वह हिस्सा भारी है इसलिए वह उस तरफ से रोटी का थोड़ा सा टुकड़ा खा जाता है ताकि बराबर हो जाए पर जैसे ही रोटी का थोडा टुकड़ा खाकर रखता है दूसरी तरफ से तराजू के पलरे का वजन ज्यादा हो जाता है

इस तरह से बंदर चालाकी से धीरे-धीरे करके दोनों तरफ से रोटी के टुकड़ों को खाता जाता है और अंत में रोटी का बहुत ही छोटा सा भाग बचता है अब दोनों बिल्ली देखकर हैरान हो जाती हैं कि इस बन्दर ने हमें बेवकूफ बना दिया

और धीरे-धीरे हम दोनों की सारी रोटी को खा गया इसलिए दोनों बिल्लिया कहती है आप रहने दो हमें कोई बंटवारा नहीं करना और आप हमें हमारी रोटी दे दो पर बंदर बहुत चालक होता है कहता है मैंने इतनी देर तक मेहनत किया है तो मुझे इसकी मजदूरी जरुर मिलनी चाहिए

बस इतना कह कर बंदर बाकी बची हुई रोटी का टुकड़ा भी पूरा खा जाता है फिर क्या दोनों बिल्लिया बस एक दूसरे का मुंह देख रही होती हैं और बंदर खुशी-खुशी चला जाता है 

इस तरह से दोनों बिल्लियों को एहसास होता है कि हमें कभी भी एक दूसरे के साथ नहीं झगड़ना चाहिए क्योंकि अगर हम झगड़ते हैं तो कोई तीसरा हमसे फायदा उठा सकता है 

कहानी से यह सीख । Moral Of Story

इस तरह से हमें इस कहानी से यह सीख (Moral) मिलती हैं कि हमें हमेशा एकता बनाकर रखना चाहिए ताकि कोई दूसरा व्यक्ति हमसे फूट डालकर फायदा नहीं उठा सके

13. जादुई चप्पल की जादुई कहानी (बच्चों की बाल कहानियां )

दोस्तों बहुत समय पहले की बात है  एक छोटा सा लड़का अपने माता पिता के साथ रहता था जिसका नाम गौरव था  वह एक छोटे से गांव में रहता था  वह बहुत ही ज्यादा चालाक और नटखट था उसके पापा का छोटा सा व्यवसाय था जिसमें वह अपने पापा की मदद किया करता था

और उसमें एक खराब बात यह थी कि वह हमेशा किसी भी चीज को लेने के लिए बहुत ही ज्यादा लालच किया करता था और हमेशा चीजों को जरूरत से ज्यादा लिया करता था 

एक दिन उसके माता-पिता को दूसरे गांव में अपने रिश्तेदारों के यहां पर जाना था जिसकी वजह से वह घर पर अकेला रह जाता है इसलिए उसके मामा उसके घर पर आ गए जो सुबह जल्दी वापस भी चले जाते 

उसके माता पिता शाम को चले गए और अगले दिन सुबह आने वाले थे गौरव ने अपने मामा की बहुत ही अच्छे से सेवा की और उन्हें समय पर खाना भी दिया यह सब देख कर उसके मामा उस पर बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए

और कहने लगे बेटा मुझे तुम पर बहुत ही ज्यादा गर्व है तुम बहुत ही ज्यादा मेहनती हो और तुमने मेरी सेवा बहुत ही अच्छे से सेवा की हैं इसलिए आज मैं तुम्हें एक बहुत ही अच्छा उपहार देना चाहूंगा

और मामा ने उपहार के रूप में गौरव को एक जादुई चप्पल (Magic Slippers) दी और मामा जी ने बताया कि यह एक ऐसी जादुई चप्पल है कि अगर आप इसे पहन कर कूदते हैं तब इस चप्पल से सोने का एक सिक्का निकलता है

यह सब सुनकर गौरव को बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ और कहने लगा मामा जी ऐसा कोई चप्पल नहीं बनी जिससे सोने के सिक्के (Golden Coin) निकले उस समय मामा जी ने उस चप्पल को पहन कर एक बार खुद कूद कर दिखाया

वह जैसे ही कूदे उस चप्पल से सही में एक सोने का सिक्का बाहर गिरा, गौरव तेज़ी से थोड़ा और सिक्के को उठाकर बोला मामा जी सही में यह तो एक सोने का सिक्का (Golden Coin) है और उसे इस पर पूरी तरह से यकीन हो गया कि यह एक जादुई चप्पल है

और अब उसने मामा से कहा कि मामा जी आप मुझे एक बार पहन कर कूदने दो मामा जी ने चप्पल देने से पहले बताया कि बेटा एक बात ध्यान रखना आप इससे 7 दिन में सिर्फ एक बार ही सोना ले सकते हो क्योंकि अगर आप इसे पहनकर कूदते हो तो आपकी इससे लंबाई कम हो जाती हैं इसलिए आपको इसे पहनकर हर 7 दिन बाद बस एक बार कूदना है

गौरव कहने लगा ठीक है मामा मैं हर हफ्ते सिर्फ एक ही बार ही पहनकर कुदूंगा और मामा जी ने उसे जादुई चप्पल पहनने के लिए दे दी गौरव ने जल्दी से चप्पल को पहनी और कूदा और फिर से एक सोने का का सिक्का आया

गौरव ने सोने के सिक्का को फिर उठाया और कहने लगा मामा मैं इस जादुई चप्पल को ठीक से छुपा  कर रख देता हूं और हर हफ्ते एक एक सोने का सिक्का इकट्ठा करता रहूंगा इससे मै बहुत ही ज्यादा धनी इंसान बन जाऊंगा

मामा जी कुछ समय बाद सुबह होते ही चले गए गौरव जादुई चप्पल को लेकर बहुत ही ज्यादा खुश था और उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था क्योंकि वह सोच रहा था अब वह बहुत जल्दी अमीर बन जाएगा और शहर में अपना एक घर ले लेगा और अब उसके पापा को कोई छोटा सा व्यवसाय करना नहीं पड़ेगा

रात भर यही सोचता रहा जिसकी वजह से वह सो भी नहीं पाया उसके मन में लालच आ गया था उसने सोचा चलो चप्पल पहन कर कूदते हैं और बहुत सारा सोना हो जाएगा और उससे बिल्कुल भी नहीं रहा गया उसने जल्दी से चप्पल को पहना और कूदने लगा

उसने कुद कर सोने के सिक्कों को एक बड़ा ढेर लगा दिया जो बहुत ही ज्यादा हो चुका था और अंत वह पूरी तरह से थक गया और सोचा बहुत सोने के सिक्के हो गए है अब मै सोने चलता हु 

 पर जैसे ही वो सोने के लिए अपने बिस्तर की तरफ गया तो उसने देखा उसका बिस्तर तो बहुत ही ज्यादा ऊंचा है और वह खुद एक चींटी के समान है यह सब देखकर उसे कुछ भी यकीन नहीं हुआ 

लेकिन अब बहुत ही ज्यादा देर हो चुकी थी और कुछ भी नहीं किया जा सकता था क्योंकि वह इतना छोटा हो चुका था कि उसके मां-बाप भी उसे आसानी से नहीं देख सकते थे

सुबह जब उसके मां-बाप सुबह-सुबह घर पर आते हैं तब देखते हैं कि सोने का एक ढेर लगा हुआ है पर उनका बेटा  गौरव कहीं भी नजर नहीं आ रहा

सुबह-सुबह वह हर जगह पर गौरव गौरव करके चिल्लाते रहे पर गौरव कहीं पर नहीं मिला

और उस दिन के बाद से गौरव अपने माता-पिता को कभी भी कहीं पर भी नजर नहीं आया 

अगर आपको यह जादुई कहानी (Magic Story) अच्छी लगे तो आप अगली जादुई अंगूठी (Magic Ring) की कहानी जरूर पढ़ें

जिसमें जादुई अंगूठी से किसी भी वस्तु को बड़े आसानी से सोना (Gold) बनाया जा सकता है और यह भी इसी कहानी की तरह लालच की कहानी है जहा पर एक पती बहुत बड़ी बेवकूफी करता है

इस तरह से हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है

कि हमें कभी भी ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए हमें हमेशा अपने आप को संतुष्ट (Satisfied) करने की कोशिश करनी चाहिए  क्योंकि लालच कभी-कभी हमें बहुत ही बड़ी मुसीबत में डाल देता है इसलिए हमें हमेसा मेहनत करने में विशवास करना चाहिए और जब तक हमें एहसास (Realise)  होता है कि हमने बहुत बड़ी गलती कर दिया तब तक बहुत ज्यादा देर हो जाती उम्मीद करता हु आपके ये Hindi Story पसंद आई 

14. लालची कुत्ते की कहानी (बच्चों की कहानियां मजेदार)

Greedy Dog Story In Hindi : एक कुत्ता जो कि बहुत ही ज्यादा भूखा था खाने की तलाश में जंगल में इधर उध भटक रहा था तभी उसे मांस (Meat) की खुशबू आती है और वह उस खुशबू के पीछे पीछे चल देता है थोड़ी देर बाद में सामने देखता है कि एक मांस का टुकड़ा (Piece Of Meat) पड़ा हुआ है

कुत्ता यह देखकर बहुत ही ज्यादा खुश (Happy) होता है और उसे अब लगता है कि अब बह अपनी भूख को मिटा लेगा को तो जल्दी से जाता है और उस मांस के टुकड़े को उठाकर वहां से चुपचाप (Silently) धीरे धीरे चल देता है  और वह सोचता है कि अब वह इस मांस के टुकड़े को कहीं पर छुप कर आराम (Comfortably) से खाएगा

इसलिए  वह अपने घर की तरफ चल देता है रास्ते में एक नदी (River) पड़ती हैं वह नदी को पार कर रहा होता है तो वह देखता है कि नदी में एक और कुत्ता है जो मांस का टुकड़ा लिए हुए हैं एक और मांस का टुकड़ा देखकर उसके मन में उस मांस के टुकड़े को पाने की चाहत होती है

 जबकि नदी में उस कुत्ते की ही परछाई (Shadow) नजर आ रही होती है जो मांस का टुकड़ा मुंह में लिए हुए होता है पर कुत्ता बहुत ही लालची होता है और वह दूसरे मांस के टुकड़े को पाने की चाहत में दूसरे कुत्ते पर भोकता (Bark) है

 कुत्ता जैसे ही भोक्ता (Bark) है उसके मुंह से मांस का टुकड़ा निकल कर नदी में गिर जाता है कुत्ते के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचता और वह अपने लालच के चक्कर में अपने हाथ आए मांस के टुकड़े को भी खो (Lose) देता है

और उसे पूरी रात भूखे सोना पड़ता है जिसकी वजह से वह कमजोर होने लगता है

इस तरह में इस कहानी से शिक्षा (Moral) मिलती है कि हमें अपनी जिंदगी में कभी भी लालच नहीं करना चाहिए हमें भगवान (God) ने जो भी दिया है हमें उसके साथ खुश (Happy) रहना चाहिए क्योंकि कभी-कभी ऐसा होता है कि हम ज्यादा पाने की चाहत में अपने पास जो भी चीजें हैं उसे गंवा देते हैं और बाद में पछताने के सिवा कुछ और नहीं बचता 

15. घमंडी बाघ और लकड़हारा कहानी (छोटे बच्चों के लिए कहानी)

एक समय की बात है, एक जंगल में एक बाघ रहता था। एक दिन, बाघ अपनी गुफा से बाहर निकल आया और शिकार की तलाश में चला गया। थोड़ा देर चलने के बाद बाघ ने एक हिरन की शिकार की। जैसे-जैसे बाघ अपने भोजन का आनंद ले रहा था, एक छोटी हड्डी उसके जबड़े में फंस गई।

उसने अपने पंजे से हड्डी बाहर निकालने कोशिश की, पर उस की सारी कोशिशे नाक़ामयाग रही। एक छोटी सी हड्डी ने इस शक्तिशाली बाघ की आँखों में आँसू ले आई।

दिन बीतते गए और बाघ फसी हुइ हड्डी को बाहर नहीं निकाल सका। “मुझे यकीन है कि मैं भुखमरी से मर जाऊँगा,” बाघ ने सोचा। “मुझे इस हड्डी को बाहर निकालना है।” वह जानता था कि उसके गले से हड्डी को बहार नहीं निकला तो वह मर जायेगा। 

लेकिन वह उस हड्डी को बहार निकलना नहीं जानता था। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, बाघ कमजोर से कमजोर होता गया। उसे पता नहीं चल रहा था कि इस हड्डी का क्या करना है। वह बस अब मौत का इंतजार कर सकता था।

फिर एक दिन जब बाघ बुरी तरह से एक पेड़ के नीचे पड़ा था। तो उसने एक लकड़हारा देखा। लकड़हारा ने ज़ख़्मी बाघ को  देखकर उसके पास गया। “तुम ठीक हो? ये तुम मुँह खोल के क्यों बैठे हो?” लकड़हारा ने बाघ से पूछा। 

“कुछ दिनों पहले मेरे दांतों के बीच में एक हड्डी फंस गई है। तब से मैं ठीक से खाना नहीं खा पा रहा हूँ। मुझे यकीन है कि मैं इस वजह से भुखमरी से मर जाऊँगा।” बाघ ने जवाब दिया।

“मैं केवल एक शर्त पर हड्डी निकालूँगा, तुम जब भी आज से कोई शिकार करोगे उस मे से मांस का छोटा टुकड़ा मुझे लाना होगा।” लकड़हारा ने बाघ से कहा। अब, बाघ हताश हो गया। लेकिन ज़िंदा रहने के लिए उसके पास और कोई तरीके नहीं थे। तो उसने लकड़हारा से सौदा पक्का किया।

तो लकड़हारा ने बाघ की बात मानकर उसके मुँह से हड्डी निकाली और बाघ को उसके दर्द से राहत मिली। जिस क्षण हड्डी निकली, बाघ शिकार की तलाश में चला गया। कुछ घंटों बाद, लकड़हारे ने बाघ को अकेले ही अपने भोजन का आनंद लेते हुए पाया।

“क्या आप अपने वादे के बारे में भूल गए हैं?” लकड़हारे ने गुस्से से पूछा।

“तुमको अपने आप को भाग्यशाली समझना चाहिए,” बाघ ने लकड़हारे से कहा। “मेरे मुंह में घुसने पर ही मैं तुम्हें आसानी से खा सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। अब दूर जाओ यहा से। 

लकड़हारा इस पर बहुत गुस्सा हो गया। उसने उसी वक्त हात में था लकड़ी का टुकड़ा बाघ के एक आंख में मारा। 

“मेरी आँख, मेरी आँख! तुमने मेरी आंख में छेद कर दिया! मैं तुम्हे माफ़ नहीं करूँगा!” बाघ चिल्लाया।

जिस पर लकड़हारे ने उत्तर दिया “लेकिन तुम्हे अपने आप को भाग्यशाली समझना चाहिए, क्योंकि मैं आसानी से दूसरी आँख भी निकाल सकता था।”

Moral – हमें अपनी ताकत पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। 

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