छत्तीसगढ़ी भाषा की उत्पति एवं विकास इतिहास 2022

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 छत्तीसगढ़ी भाषा शब्द की उत्पत्ति
Chhattisgarhi Bhasha Ki Utpati,Vikash

छत्तीसगढ़ी भाषा शब्द की उत्पत्ति (Chhattisgarhi Bhasha Ki Utpati Vikash) : भाष धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है बोलना कहना या अपनी वाणी से कुछ कहना भाषा कहलाता है। जिन का कुछ अर्थ निकलता है भाषा का निर्माण जिन व्यक्त ध्वनियों से होता है उसे वर्ण कहते हैं। Chhattisgarhi Bhasha ka Vikash, Chhattisgarhi Bhasha Ki Utpati भी अन्य आधुनिक भाषाओं की तरह ही प्राचीन आर्य भाषा से हुआ है |

आर्यों की भाषा प्राचीन भाषा समय के साथ साथ परिवर्तित होती गई और उसे अन्य उप भाषाओं का विकास होता गया। उन भाषाओं के विकास में छत्तीसगढ़ी भाषा भी एक बोली के रूप में पनपी भाषाओं तथा बोलियों के इस विकास की यात्रा को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं ।

भारतीय भाषाओं के विकास क्रम को व्याकरण आचार्यो ने तीन भागों में विभाजित किया है

  • प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल जो 1500 , 500 ईसा पूर्व तक चला
  • मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल 500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व
  • आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल जो की 1000 ईसा पूर्व से अब तक चल रहा है

अब चलिए इसको हम विस्तार से जानते हैं कि प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल मध्यकालीन आर्य भाषा काल और आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल के बारे में।

1. प्राचीन आर्य भाषा काल 1500 से 500 ईसा पूर्व

इस युग के भारतीय आर्यों के भाषाओं के उदाहरण हमें प्राचीनतम ग्रंथों में देखने को मिलता है प्राचीन युग के अंतर्गत वैदिक और लौकिक दोनों भाग आते हैं संस्कृत सिस्ट समाज के प्रश्न पर विचार विनिमय की भाषा हुआ करती थी उस समय वह यह काम कई सदी तक करती रही संस्कृत का प्रथम शिलालेख हमें 150 ईसवी रुद्रदामन का गिरनार शिलालेख है

तब से प्रायः 12 वीं सदी तक इसको राज दरबारों से विशेष प्रश्रय मिलता रहा। बौद्ध धर्म के उदय के साथ ही स्थानीय बोलियों को महत्व मिला भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार को प्रभावी बनाने के लिए जन बोलियों को चुना जिसमें पाली सर्वोपरि थी।

पाली में जन भाषा और साहित्यिक भाषा का मिश्रित रूप मिलता है। Chhattisgarhi Bhasha Ki Utpati, Vikash छत्तीसगढ़ी भाषा की उत्पति एवं विकाश

2. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल जो कि 500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक चला

इस पाली भाषा का प्रतिनिधि उदाहरण हमें अशोक की धर्म लिपियों और पाली ग्रंथों से मिलती है। और धीरे-धीरे हमारे भारत में प्रादेशिक विभिन्नता बढ़ती गई जिसके कारण अलग-अलग प्राकृतिक भाषाओं का विकास होता गया।

संस्कृत ग्रंथों में भी विशेषतः नाटकों में इन प्राकृतिक भाषाओं का प्रयोग हमें देखने को मिलता है और सामान्य जनता द्वारा इनका प्रयोग हुआ इन प्राकृतिक भाषाओं में शौरसेनी माग्धी अर्धमगधी महाराष्ट्री पैशाची आदि प्रमुख रहीं ।

साहित्य में प्रयुक्त होने पर व्याकरण आचार्य ने प्राकृतिक भाषाओं को कठिन अस्वाभाविक नियमों से बांध दिया किंतु जिन मूल्यों के आधार पर उनकी रचना हुई वह व्याकरण के नियमों से नहीं बांधी जा सकी। व्याकरण आचार्य ने इन बोलियों को अपभ्रंश नाम दिया।

अपभ्रंश:- मध्यकालीन भारतीय भाषा का चरण विकास अपभ्रंश से हुआ। आधुनिक आर्य भाषा और हिंदी ,मराठी, पंजाबी , उड़िया आदि भाषा की उत्पत्ति इन ही अपभ्रंश भाषाओं से हुई है।इस प्रकार यह अपभ्रंश भाषा में प्राकृतिक भाषाओं और आधुनिक भाषाओं के बीच की कड़ियां हैं।

1. मागधी अपभ्रंश भाषा से बिहारी, उड़िया, बंगाली, असमिया इन भाषाओं का उद्भव हुआ है।

2.अर्धगधी अपभ्रंश:- से पूर्वी हिंदी, अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी, आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है।

3.शौरसेनी:- से पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, ब्रजभाषा ,खड़ी बोली का विकास हुआ।

4.पैशाची अपभ्रंश से लहंदा पंजाबी भाषा अस्तित्व में आए।

5.ब्राचड़ अपभ्रंश से सिंधी भाषा बना है।

6.खस अपभ्रंश से पहाड़ी कुमाऊनी भाषा बना है।

7.महाराष्ट्री अपभ्रंश से मराठी भाषा का विकास हुआ है या मराठी भाषा अस्तित्व में आया है।

3. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल जो कि 1000 ई. से वर्तमान तक चल रहा है

भारतीय आर्य भाषा के वर्तमान युग का प्रारंभ कराया 1000 इससे माना जाता है जिसमें महत्त्व की दृष्टि से आर्य परिवार की भाषाएं सर्वोपरि हैं इनके बोलने वालों की संख्या भारत में सबसे अधिक है बोलने वालों कोबोलने वालों को संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो धर्मेंद्र परिवार की भाषाएं इसके बाद आती हैं।

पैशाची शौरसेनी महाराष्ट्र अर्धमगधी आदि अपभ्रंश भाषा ओं ने क्रमशः आधुनिक सिंधी पंजाबी हिंदी राजस्थानी गुजराती मराठी पूर्वी हिंदी बिहारी बांग्ला उड़िया भाषाओं को जन्म दिया। शौरसेनी प्राकृत अपभ्रंश से हिंदी की पश्चिमी शाखा का जन्म हुआ।

इनकी दो प्रमुख बोलियां हैं

पहला ब्रज और दूसरी खड़ी बोली।हिंदी की दूसरी शाखा है पूर्वी हिंदी जिसका विकास अर्धमागधी से हुआ है। इसकी तीन प्रमुख बोलियां हैं अवधि बघेली व छत्तीसगढ़ी। अवधि में साहित्यिक परंपरा रही है तुलसी व जायसी ने इसमें अमर काव्य लिखे हैं बघेली और छत्तीसगढ़ी में प्राचीन समय में उल्लेखनीय साहित्य सृजन नहीं हुआ जिसकी क्षतिपूर्ति अब हो रही है। मतलब कि अब उल्लेखनीय साहित्य सृजित किए जा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ी की पड़ोसी भाषाएं उड़िया, मराठी, बिहारी आदि हैं साथ ही छत्तीसगढ़ में अनेक आदिवासी बोलियां भी बोली जाती हैं जिनकी वजह से छत्तीसगढ़ी में अनेक विषमताओं उत्पन्न हो गई है. उसी को सुधारने के लिए अब छत्तीसगढ़ी व्याकरण बनाया गया है।

पूर्वी हिंदी में छत्तीसगढ़ी के साथ साथ दो बोलियां सम्मिलित हैं

भारतीय आर्य भाषाओं की मध्यवर्ती शाखा के अर्धमगधी से पूर्वी हिंदी का विकास हुआ जो आगे चलकर – अवधि बघेली एवं हिंदी में विभक्त हो गई अर्थात पूर्वी हिंदी के अंतर्गत 3 बोलियां अवधि बघेली एवं छत्तीसगढ़ी आते हैं।

Chhattisgarhi Bhasha Ki Utpati,Vikash पूर्वी हिंदी को भाषाओं का नहीं बल्कि बोलियों का समुदाय माना गया है और गिर्यसन के अनुसार भारतीय आर्य भाषओं की मध्यवर्ती शाखा भाषओं का नहीं वरन बोलियों का एक समुदाय है

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