10 Best Panchatantra Stories In Hindi । पंचतंत्र हिंदी कहानियां

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Best Panchatantra Stories In Hindi (पंचतंत्र हिंदी कहानियां) : दोस्तों क्या आपने कभी पंचतंत्र कहानियों को सुना है? यदि नहीं, तो आप बहुत कुछ खो रहे हैं। पंचतंत्र कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है। ये कहानियां संस्कृत भाषा में लिखी गई थीं और ब्रह्मनाथ के समय से शुरू हुई। पंचतंत्र का अर्थ होता है “पांच प्रभावों वाली कहानियां”।

पंचतंत्र कहानियां भारत की सबसे प्राचीनऔर मशहूर कहानियों में से एक हैं। ये कहानियां जीवन के नियमों को समझाने और नैतिक शिक्षा के लिए हैं जो हमारी अति आवश्यक हैं। इस पोस्ट में, हम पंचतंत्र की 10 बेहतरीन कहानियों के बारे में पढ़ेंगे और इनके लाभों के बारे में भी बताएंगे।

Best Panchatantra Stories In Hindi । पंचतंत्र हिंदी कहानियां
Best Panchatantra Stories In Hindi । पंचतंत्र हिंदी कहानियां

Panchatantra Short Stories in Hindi With Moral

Panchatantra stories in hindi मनोज नाम का व्यापारी (business) एक गांव में रहता था जिसके पास बहुत ज्यादा पैसा था इसलिए वह अपने धन को लोगों में बांटा करता था वह  गांव के सभी लोगों को त्योहारों पर बुलाता था और उन्हें धन दौलत देता था और साथ में अपने दोस्त (Friend) और रिश्तेदारों को भी बुलाता था

 इस तरह से मनोज को सभी लोग बहुत ज्यादा दुआ दिया करते थे मनोज के पास इतना पैसा (money)  इसलिए हो गया था क्योंकि शहर में उसका एक  व्यवसाय था जहां पर उसने अपने गांव के ही लोगों (people) को रख रखा था जो सस्ते में मनोज का काम कर दिया करते थे जिससे मनोज को बहुत ज्यादा मुनाफा (profit) हुआ करता था और वह उन पैसों को गांव के लोगों में बांट दिया करता था

 पर एक दिन मनोज का व्यवसाय बहुत ही ज्यादा धीमा (Slow) हो गया और धीरे-धीरे कुछ महीनों बाद जब मनोज बीमार हो गया था वह अपने व्यवसाय को नहीं देख पाया जिसकी वजह से उसका व्यवसाय भी बंद (stop) हो गया

अब उन्होंने बहुत ज्यादा घाटे  में जा चुका था और वह धीरे-धीरे गरीब (poor) होता चला गया मनोज को बड़ा दुख होता था कि अब वह  त्योहारों के समय गांव (friends) के लोगों को कुछ भी नहीं दे पाता जिसकी वजह से बहुत ही ज्यादा परेशान था और  वह कभी-कभी अपनी पत्नी से यह कहता कि मुझे अब जिंदा नहीं रहना चाहिए मुझे मर (die) जाना चाहिए 

1 दिन जब मनोज रात के समय सो रहा था तो उसका सपने में एक साधु संत (monk) आते हैं और कहते हैं मनोज तुमने अपनी जिंदगी में बहुत ही ज्यादा अच्छे काम किए हैं और तुम जैसे लोगों कि दुनिया में बहुत ज्यादा जरूरत है इसलिए तुम्हे मरने की कोई जरूरत (need) नहीं है 

 और मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं जिससे तुम दोबारा से अमीर (rich) हो जाओगे और बाबा ने कहा कल सुबह मैं तुम्हारे घर पर आऊंगा तुम्हें एक डंडा लेकर मेरे सर पर मार देना है जिससे मैं सोने में बदल जाऊंगा और इस तरह से तुम दोबारा (again) से अमीर हो जाओगे

 अगले दिन जब सुबह होती है मनोज को लगता है वह तो सिर्फ एक सपना था सच्चाई (true) में नहीं बदल सकता तभी कोई दरवाजा खटखटाता है मनोज को लगता है कहीं यह बाबा सपने वाले संत तो नहीं पर वह गांव का नाइ होता है जो मनोज के बाल काटने आता है

 जब  नाइ मनोज के बाल काट (cut) रहा होता है तो उस समय दोबारा से कोई दरवाजा खटखटाता है  और जब मनोज जाकर दरवाजा खोलता है तो वह हैरान (shocked) हो जाता है क्योंकि वह देखता है यह तो वही बाबा है जो उसके सपने में रात में आए थे

 उसके बाद वह बाबा को घर के अंदर बुलाता है और चुपके से हाथ में डंडा (stick) लेकर बाबा के सर पर मार देता है मारते के साथ ही बाबा सोने के रूप में बदल जाते हैं नाइ वहीं पर यह सब कुछ देख रहा होता है और मनोज की पत्नी (wife) भी यह सब देख रही होती है

 जैसे ही बाबा सोने (gold) में बदलते हैं हर कोई हैरान हो जाता है और मनोज कहता है अब मैं दोबारा से अमीर बन जाऊंगा क्योंकि नाइ यह सब देख लेता है इसलिए मनोज को नाइ (barber) को कुछ  सोना देना पड़ता है

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Panchatantra stories in hindi

नाइ खुशी-खुशी सोना लेकर अपने घर पर चला जाता है और सोचता है मैं भी अपने घर पर कुछ संत बाबा को बुलाता हूं और मैं भी उनके सर पर ठंडा (stick) मारता हूं जिससे मैं भी अमीर बन जाऊंगा इसलिए नाइ अगले ही दिन गांव के आश्रम से चार संत बाबा को अपने घर बुलाता है और कहता है बाबा मैंने आपके लिए आज अपने घर पर दावत (party) का इंतजाम किया है 

जब सभी बाबा नाइ के घर पर आते हैं तो वह अपना दरवाजा (door) बंद कर लेता है और डंडा लेकर सभी संत बाबा के सर पर मारने लगता है कोई भी बाबा सोने में नहीं बदलते हैं और नाइ लगातार मारता  (beat) रहता है जिसकी वजह से वह सभी संत बेहोश  हो जाते हैं

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इस तरह से नाइ तो सैनिकों द्वारा गिरफ्तार (arrest) कर लिया जाता है और राजा के दरबार में पेश किया जाता है जहां पर नाइ से पूछा जाता है कि तुमने ऐसा क्यों किया  तब नाइ मनोज के घर पर हुई सभी घटना (incident) को बता देता है उसका तुरंत बाद मनोज को राजा के दरबार में पेश होने के लिए बुलाया जाता है

पर जब मनोज राजा के दरबार में आता है तो वह अपनी पूरी कहानी  को बताता है कि बाबा (monk) खुद मेरे सपने में आए थे इसलिए मैंने ऐसा किया नाइ यह सब सुनकर हैरान हो जाता और कहता हैं मैं भी कितना मूर्ख (fool) था जो बिना कुछ समझे सोचे अमीर (rich) बनने चला था

 इस तरह से  नाइ को 1 महीने के लिए कालकोठरी में डाल दिया जाता है 

2. शेर, ऊंट, सियार और कौवा । Panchatantra Story In Hindi

शेर, ऊंट, सियार और कौवा । Panchatantra Story In Hindi
Panchatantra Story In Hindi

शेर ऊंट सियार और कौवा पंचतंत्र की कहानियां : किसी वन में मदोत्कट नाम का सिंह निवास करता था। बाघ, कौआ और सियार, ये तीन उसके नौकर थे।

एक दिन उन्होंने एक ऐसे उंट को देखा जो अपने गिरोह से भटककर उनकी ओर आ गया था। उसको देखकर सिंह कहने लगा, अरे वाह!

यह तो विचित्र जीव है। जाकर पता तो लगाओ कि यह वन्य प्राणी है अथवा कि ग्राम्य प्राणी यह सुनकर कौआ बोला, स्वामी!

यह ऊंट नाम का जीव ग्राम्य-प्राणी है और आपका भोजन है। आप इसको मारकर खा जाइए।

सिंह बोला, मैं अपने यहां आने वाले अतिथि को नहीं मारता। कहा गया है कि विश्वस्त और निर्भय होकर अपने घर आए शत्रु को भी नहीं मारना चाहिए।

अतः उसको अभयदान देकर यहां मेरे पास ले आओ जिससे मैं उसके यहां आने का कारण पूछ सकूं।

सिंह की आज्ञा पाकर उसके अनुचर ऊंट के पास गए और उसको आदरपूर्वक सिंह के पास ले लाए। ऊंट ने सिंह को प्रणाम किया और बैठ गया।

सिंह ने जब उसके वन में विचरने का कारण पूछा तो उसने अपना परिचय देते हुए बताया कि वह साथियों से बिछुड़कर भटक गया है।

सिंह के कहने पर उस दिन से वह कथनक नाम का ऊंट उनके साथ ही रहने लगा।

उसके कुछ दिन बाद मदोत्कट सिंह का किसी जंगली हाथी के साथ घमासान युद्ध हुआ।

उस हाथी के मूसल के समान दांतों के प्रहार से सिंह अधमरा तो हो गया किन्तु किसी प्रकार जीवित रहा, पर वह चलने-फिरने में अशक्त हो गया था।

उसके अशक्त हो जाने से कौवे आदि उसके नौकर भूखे रहने लगे। क्योंकि सिंह जब शिकार करता था तो उसके नौकरों को उसमें से भोजन मिला करता था।

अब सिंह शिकार करने में असमर्थ था। उनकी दुर्दशा देखकर सिंह बोला, किसी ऐसे जीव की खोज करो कि जिसको मैं इस अवस्था में भी मारकर तुम लोगों के भोजन की व्यवस्था कर सकूं।

सिंह की आज्ञा पाकर वे चारों प्राणी हर तरफ शिकार की तलाश में घूमने निकले। जब कहीं कुछ नहीं मिला तो कौए और सियार ने परस्पर मिलकर सलाह की।

श्रृगाल बोला, मित्र कौवे! इधर-उधर भटकने से क्या लाभ? क्यों न इस कथनक को मारकर उसका ही भोजन किया जाए? 

सियार सिंह के पास गया और वहां पहुंचकर कहने लगा, स्वामी! हम सबने मिलकर सारा वन छान मारा है, किन्तु कहीं कोई ऐसा पशु नहीं मिला कि जिसको हम आपके समीप मारने के लिए ला पाते।

अब भूख इतनी सता रही है कि हमारे लिए एक भी पग चलना कठिन हो गया है। आप बीमार हैं। यदि आपकी आज्ञा हो तो आज कथनक के मांस से ही आपके खाने का प्रबंध किया जाए।

पर सिंह ने यह कहते हुए मना कर दिया कि उसने ऊंट को अपने यहां पनाह दी है इसलिए वह उसे मार नहीं सकता। 

पर सियार ने सिंह को किसी तरह मना ही लिया। राजा की आज्ञा पाते ही श्रृगाल ने तत्काल अपने साथियों को बुलाया लाया।

उसके साथ ऊंट भी आया। उन्हें देखकर सिंह ने पूछा, तुम लोगों को कुछ मिला? 

कौवा, सियार, बाघ सहित दूसरे जानवरों ने बता दिया कि उन्हें कुछ नहीं मिला।

पर अपने राजा की भूख मिटाने के लिए सभी बारी-बारी से सिंह के आगे आए और विनती की कि वह उन्हें मारकर खा लें।

पर सियार हर किसी में कुछ न कुछ खामी बता देता ताकि सिंह उन्हें न मार सके।

अंत में ऊंट की बारी आई। बेचारे सीधे-साधे कथनक ऊंट ने जब यह देखा कि सभी सेवक अपनी जान देने की विनती कर रहे हैं तो वह भी पीछे नहीं रहा। 

उसने सिंह को प्रणाम करके कहा, स्वामी! ये सभी आपके लिए अभक्ष्य हैं। किसी का आकार छोटा है, किसी के तेज नाखून हैं, किसी की देह पर घने बाल हैं।

आज तो आप मेरे ही शरीर से अपनी जीविका चलाइए जिससे कि मुझे दोनों लोकों की प्राप्ति हो सके। 

कथनक का इतना कहना था कि व्याघ्र और सियार उस पर झपट पड़े और देखते-ही-देखते उसके पेट को चीरकर रख दिया।

बस फिर क्या था, भूख से पीड़ित सिंह और व्याघ्र आदि ने तुरन्त ही उसको चट कर डाला।

पंचतंत्र कहानी से सीख : धूर्तों के साथ जब भी रहें पूरी तरह से चौकन्ना रहें, और उनकी मीठी बातों में बिलकुल न आयें और विवेकहीन तथा मूर्ख स्वामी से भी दूर रहने में ही भलाई है। 

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3. रंगा सियार पंचतंत्र । Ranga Siyar Panchtantra Ki Kahani

रंगा सियार – पंचतंत्र । Ranga Siyar Panchtantra Ki Kahani
Ranga Siyar Panchtantra Ki Kahani

रंगा सियार पंचतंत्र ranga siyar panchtantra ki kahani : एक बार की बात है कि एक सियार जंगल में एक पुराने पेड़ के नीचे खड़ा था। पूरा पेड़ हवा के तेज झोंके से गिर पड़ा। सियार उसकी चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। वह किसी तरह घिसटता-घिसटता अपनी मांद तक पहुंचा।

कई दिन बाद वह मांद से बाहर आया। उसे भूख लग रही थी। शरीर कमजोर हो गया था तभी उसे एक खरगोश नजर आया। उसे दबोचने के लिए वह झपटा। सियार कुछ दूर भाग कर हांफने लगा। उसके शरीर में जान ही कहां रह गई थी? फिर उसने एक बकरी का पीछा करने की कोशिश की। यहां भी वह असफल रहा। हिरण का पीछा करने की तो उसकी हिम्मत भी न हुई।

वह खड़ा सोचने लगा। शिकार वह कर नहीं पा रहा था। भूखों मरने की नौबत आई ही समझो। क्या किया जाए? वह इधर-उधर घूमने लगा पर कहीं कोई मरा जानवर नहीं मिला। घूमता-घूमता वह एक बस्ती में आ गया। उसने सोचा शायद कोई मुर्गी या उसका बच्चा हाथ लग जाए। सो, वह इधर-उधर गलियों में घूमने लगा।

तभी कुत्ते भौं-भौं करते उसके पीछे पड़ गए। सियार को जान बचाने के लिए भागना पड़ा। गलियों में घुसकर उनको छकाने की कोशिश करने लगा पर कुत्ते तो कस्बे की गली-गली से परिचित थे। सियार के पीछे पड़े कुत्तों की टोली बढ़ती जा रही थी और सियार के कमजोर शरीर का बल समाप्त होता जा रहा था।

सियार भागता हुआ रंगरेजों की बस्ती में आ पहुंचा था। वहां उसे एक घर के सामने एक बड़ा ड्रम नजर आया। वह जान बचाने के लिए उसी ड्रम में कूद पड़ा। ड्रम में रंगरेज ने कपड़े रंगने के लिए रंग घोल रखा था।

कुत्तों का टोला भौंकता चला गया। सियार सांस रोक कर रंग में डूबा रहा। वह केवल सांस लेने के लिए अपनी थूथनी बाहर निकालता। जब उसे पूरा यकीन हो गया कि अब कोई खतरा नहीं है तो वह बाहर निकला। वह रंग में भीग चुका था।

जंगल में पहुंचकर उसने देखा कि उसके शरीर का सारा रंग हरा हो गया है। उस ड्रम में रंगरेज ने हरा रंग घोल रखा था। उसके हरे रंग को जो भी जंगली जीव देखता, वह भयभीत हो जाता। उनको खौफ से कांपते देखकर रंगे सियार के दुष्ट दिमाग में एक योजना आई। रंगे सियार ने डरकर भागते जीवों को आवाज दी, भाईयों, भागो मत मेरी बात सुनो। उसकी बात सुनकर सभी भागते जानवर ठिठके। उनके ठिठकने का रंगे सियार ने फायदा उठाया और बोला, देखो-देखो मेरा रंग।

ऐसा रंग किसी जानवर का धरती पर है? नहीं ना। मतलब समझो। भगवान ने मुझे यह खास रंग देकर तुम्हारे पास भेजा है। तुम सब जानवरों को बुला लाओ तो मैं भगवान का संदेश सुनाऊं।

उसकी बातों का सब पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे जाकर जंगल के दूसरे सभी जानवरों को बुलाकर लाए। जब सब आ गए तो रंगा सियार एक ऊंचे पत्थर पर चढ़कर बोला, वन्य प्राणियों, प्रजापति ब्रह्मा ने मुझे खुद अपने हाथों से इस अलौकिक रंग का प्राणी बनाकर कहा कि संसार में जानवरों का कोई शासक नहीं है।

तुम्हें जाकर जानवरों का राजा बनकर उनका कल्याण करना है। तुम्हार नाम सम्राट ककुदुम होगा। तीनों लोकों के वन्य जीव तुम्हारी प्रजा होंगे। अब तुम लोग अनाथ नहीं रहे। मेरी छत्रछाया में निर्भय होकर रहो।

सभी जानवर वैसे ही सियार के अजीब रंग से चकराए हुए थे। उसकी बातों ने तो जादू का काम किया। शेर, बाघ व चीते की भी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई। उसकी बात काटने की किसी में हिम्मत न हुई। देखते ही देखते सारे जानवर उसके चरणों में लोटने लगे और एक स्वर में बोले, हे बह्मा के दूत, प्राणियों में श्रेष्ठ ककुदुम, हम आपको अपना सम्राट स्वीकार करते हैं। भगवान की इच्छा का पालन करके हमें बड़ी प्रसन्नता होगी।

एक बूढ़े हाथी ने कहा, हे सम्राट, अब हमें बताइए कि हमारा क्या कर्तव्य है? रंगा सियार सम्राट की तरह पंजा उठाकर बोला, तुम्हें अपने सम्राट की खूब सेवा और आदर करना चाहिए। उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। हमारे खाने-पीने का शाही प्रबंध होना चाहिए। शेर ने सिर झुकाकर कहा, महाराज, ऐसा ही होगा। आपकी सेवा करके हमारा जीवन धन्य हो जाएगा।

बस, सम्राट ककुदुम बने रंगे सियार के शाही ठाठ हो गए। वह राजसी शान से रहने लगा। कई लोमड़ियां उसकी सेवा में लगी रहतीं, भालू पंखा झुलाता। सियार जिस जीव का मांस खाने की इच्छा जाहिर करता, उसकी बलि दी जाती।

जब सियार घूमने निकलता तो हाथी आगे-आगे सूंड उठाकर बिगुल की तरह चिंघाड़ता चलता। दो शेर उसके दोनों ओर कमांडो बॉडी गार्ड की तरह होते।

रोज ककुदुम का दरबार भी लगता। रंगे सियार ने एक चालाकी यह कर दी थी कि सम्राट बनते ही सियारों को शाही आदेश जारी कर उन सभी को जंगल से भगा दिया था। उसे अपनी जाति के जीवों द्वारा पहचान लिए जाने का खतरा था।

एक दिन सम्राट ककुदुम खूब खा-पीकर अपने शाही मांद में आराम कर रहा था कि बाहर उजाला देखकर उठा। बाहर आया तो चांदनी रात खिली थी। पास के जंगल में सियारों की टोलियां हूँ हूँ हूँ की बोली बोल रही थी।

उस आवाज को सुनते ही ककुदुम अपना आपा खो बैठा। उसके अंदर के जन्मजात स्वभाव ने जोर मारा और वह भी मुंह चांद की ओर उठाकर और सियारों के स्वर में मिलाकर ‘हूँ हूँ हूँ …’ करने लगा। 

फिर क्या था शेर और बाघ ने उसे ‘हू हू …’ करते देख लिया। और वे लोग चौंके, बाघ बोला, अरे यह तो सियार है। हमें धोखा देकर सम्राट बना रहा इतने दिनों से हमे मुर्ख बना रहा था।

मारो नीच को, शेर और बाघ उसकी ओर लपके और देखते ही देखते उसका तिया-पांचा कर डाला।

पंचतंत्र कहानी से सीख : नकलीपन की पोल देर या सबेर जरूर खुलती है।

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4. खटमल और बेचारी जूं पंचतंत्र । Panchatantra Story In Hindi

पंचतंत्र की शिक्षाप्रद कहानियां panchatantra short stories in hindi
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खटमल और बेचारी जूं-पंचतंत्र की कहानी : एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था। रोज रात को जब राजा सो जाता तो वह चुपके से बाहर निकलती और राजा का खून चूसकर फिर अपने स्थान पर जा छिपती।

संयोग से एक दिन अग्निमुख नाम का एक खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ पहुंचा। जूं ने जब उसे देखा तो वहां से चले जाने को कहा। उसने अपने अधिकार-क्षेत्र में किसी अन्य का दखल सहन नहीं था।

लेकिन खटमल भी कम चतुर न था, बोलो, देखो मेहमान से इसी तरह बर्ताव नहीं किया जाता, मैं आज रात तुम्हारा मेहमान हूं। जूं अततः खटमल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई और उसे शरण देते हुए बोली, ठीक है, तुम यहां रातभर रुक सकते हो, लेकिन राजा को काटोगे तो नहीं उसका खून चूसने के लिए। खटमल बोला, लेकिन मैं तुम्हारा मेहमान है,

मुझे कुछ तो दोगी खाने के लिए। और राजा के खून से बढ़िया भोजन और क्या हो सकता है। ठीक है। जूं बोली, तुम चुपचाप राजा का खून चूस लेना, उसे पीड़ा का आभास नहीं होना चाहिए। जैसा तुम कहोगी, बिलकुल वैसा ही होगा। कहकर खटमल शयनकक्ष में राजा के आने की प्रतीक्षा करने लगा। 

रात ढलने पर राजा वहां आया और बिस्तर पर पड़कर सो गया। उसे देख खटमल सबकुछ भूलकर राजा को काटने लगा, खून चूसने के लिए। ऐसा स्वादिष्ट खून उसने पहली बार चखा था, इसलिए वह राजा को जोर-जोर से काटकर उसका खून चूसने लगा। इससे राजा के शरीर में तेज खुजली होने लगी और उसकी नींद उचट गई।

उसने क्रोध में भरकर अपने सेवकों से खटमल को ढूंढकर मारने को कहा।

यह सुनकर चतुर खटमल तो पंलग के पाए के नीचे छिप गया लेकिन चादर के कोने पर बैठी जूं राजा के सेवकों की नजर में आ गई। उन्होंने उसे पकड़ा और मार डाला। 


पंचतंत्र कहानी से सीख : हमें हमेशा  अजनबियों की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर उनपर भरोसा नहीं करना चाहिए अपितु उनसे सावधान ही रहना चाहिए।

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5. चतुर खरगोश और शेर । Panchatantra stories in hindi

panchatantra short stories in hindi with moral
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चतुर-खरगोश-और-शेर-पंचतंत्र्, किसी घने वन में एक बहुत बड़ा शेर रहता था। वह रोज शिकार पर निकलता और एक ही नहीं, दो नहीं कई-कई जानवरों का काम तमाम देता। जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि जंगल में कोई भी जानवर नहीं बचेगा। 

सारे जंगल में सनसनी फैल गई। शेर को रोकने के लिये कोई न कोई उपाय करना ज़रूरी था। एक दिन जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए और इस प्रश्न पर विचार करने लगे।

अन्त में उन्होंने तय किया कि वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस बारे में बात करें। दूसरे दिन जानवरों के एक दल शेर के पास पहुंचा। उनके अपनी ओर आते देख शेर घबरा गया और उसने गरजकर पूछा, क्या बात है? तुम सब यहां क्यों आ रहे हो 

अगर ऐसा ही होता रहा तो कुछ ही दिनों में जंगल में आपके सिवाय और कोई भी नहीं बचेगा। प्रजा के बिना राजा भी कैसे रह सकता है ? यदि हम सभी मर जायेंगे तो आप भी राजा नहीं रहेंगे। हम चाहते हैं कि आप सदा हमारे राजा बने रहें। आपसे हमारी विनती है कि आप अपने घर पर ही रहा करें।

जानवर दल के नेता ने कहा, महाराज, हम आपके पास निवेदन करने आये हैं। आप राजा हैं और हम आपकी प्रजा। जब आप शिकार करने निकलते हैं तो बहुत जानवर मार डालते हैं। आप सबको खा भी नहीं पाते। इस तरह से हमारी संख्या कम होती जा रही है।

हर रोज स्वयं आपके खाने के लिए एक जानवर भेज दिया करेंगे। इस तरह से राजा और प्रजा दोनो ही चैन से रह सकेंगे। 

शेर को लगा कि जानवरों की बात में सच्चाई है। उसने पलभर सोचा, फिर बोला अच्छी बात है। मैं तुम्हारे सुझाव को मान लेता हूं। लेकिन याद रखना, अगर किसी भी दिन तुमने मेरे खाने के लिये पूरा भोजन नहीं भेजा तो मैं जितने जानवर चाहूंगा, मार डालूंगा। जानवरों के पास तो और कोई चारा नहीं। इसलिये उन्होंने शेर की शर्त मान ली और अपने-अपने घर चले गये।

उस दिन से हर रोज शेर के खाने के लिये एक जानवर भेजा जाने लगा। इसके लिये जंगल में रहने वाले सब जानवरों में से एक-एक जानवर, बारी-बारी से चुना जाता था। कुछ दिन बाद खरगोशों की बारी भी आ गई। शेर के भोजन के लिये एक नन्हें से खरगोश को चुना गया।

वह खरगोश जितना छोटा था, उतना ही चतुर भी था। उसने सोचा, बेकार में शेर के हाथों मरना मूर्खता है। अपनी जान बचाने का कोई न कोई उपाय अवश्य करना चाहिये, और हो सके तो कोई ऐसी तरकीब ढूंढ़नी चाहिये जिसे सभी को इस मुसीबत से सदा के लिए छुटकारा मिल जाये। आखिर उसने एक तरकीब सोच ही निकाली।

खरगोश धीरे-धीरे आराम से शेर के घर की ओर चल पड़ा। जब वह शेर के पास पहुंचा तो बहुत देर हो चुकी थी।

भूख के मारे शेर का बुरा हाल हो रहा था। जब उसने सिर्फ एक छोटे से खरगोश को अपनी ओर आते देखा तो गुस्से से बौखला उठा और गरजकर बोला, किसने तुम्हें भेजा है ? एक तो पिद्दी जैसे हो, दूसरे इतनी देर से आ रहे हो।

जिन बेवकूफों ने तुम्हें भेजा है मैं उन सबको ठीक करूंगा। एक-एक का काम तमाम न किया तो मेरा नाम भी शेर नहीं। नन्हे खरगोश ने आदर से ज़मीन तक झुककर, महाराज, अगर आप कृपा करके मेरी बात सुन लें तो मुझे या और जानवरों को दोष नहीं देंगे।

वे तो जानते थे कि एक छोटा सा खरगोश आपके भोजन के लिए पूरा नहीं पड़ेगा, इसलिए उन्होंने छह खरगोश भेजे थे। लेकिन रास्ते में हमें एक और शेर मिल गया। उसने पांच खरगोशों को मारकर खा लिया।

यह सुनते ही शेर दहाड़कर बोला, क्या कहा ? दूसरा शेर ? कौन है वह ? तुमने उसे कहां देखा ? महाराज, वह तो बहुत ही बड़ा शेर है’ खरगोश ने कहा, वह ज़मीन के अन्दर बनी एक बड़ी गुफा में से निकला था।

वह तो मुझे ही मारने जा रहा था। पर मैंने उससे कहा, ‘सरकार, आपको पता नहीं कि आपने क्या अन्धेर कर दिया है। हम सब अपने महाराज के भोजन के लिये जा रहे थे, लेकिन आपने उनका सारा खाना खा लिया है।

हमारे महाराज ऐसी बातें सहन नहीं करेंगे। वे ज़रूर ही यहाँ आकर आपको मार डालेंगे। 

इस पर उसने पूछा, ‘कौन है तुम्हारा राजा ?’ मैंने जवाब दिया, ‘हमारा राजा जंगल का सबसे बड़ा शेर है।

महाराज, ‘मेरे ऐसा कहते ही वह गुस्से से लाल-पीला होकर बोला बेवकूफ इस जंगल का राजा सिर्फ मैं हूं। यहां सब जानवर मेरी प्रजा हैं। मैं उनके साथ जैसा चाहूं वैसा कर सकता हूं। जिस मूर्ख को तुम अपना राजा कहते हो उस चोर को मेरे सामने हाजिर करो।

मैं उसे बताऊंगा कि असली राजा कौन है।’ महाराज इतना कहकर उस शेर ने आपको लिवाने के लिए मुझे यहां भेज दिया।

खरगोश की बात सुनकर शेर को बड़ा गुस्सा आया और वह बार-बार गरजने लगा। उसकी भयानक गरज से सारा जंगल दहलने लगा। मुझे फौरन उस मूर्ख का पता बताओ, शेर ने दहाड़कर कहा, जब तक मैं उसे जान से न मार दूँगा मुझे चैन नहीं मिलेगा।

बहुत अच्छा महाराज, खरगोश ने कहा मौत ही उस दुष्ट की सज़ा है। अगर मैं और बड़ा और मज़बूत होता तो मैं खुद ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर देता।

चलो, ‘रास्ता दिखाओ, शेर ने कहा, फौरन बताओ किधर चलना है ? इधर आइये महाराज, इधर, खरगोश रास्ता दिखाते हुआ शेर को एक कुएँ के पास ले गया और बोला, महाराज, वह दुष्ट शेर ज़मीन के नीचे किले में रहता है।

जरा सावधान रहियेगा, किले में छुपा दुश्मन खतरनाक होता है। परछाईं को देखकर शेर ज़ोर से दहाड़ा। कुएं के अन्दर से आती हुई अपने ही दहाड़ने की गूंज सुनकर उसने समझा कि दूसरा शेर भी दहाड़ रहा है।

मैं उससे निपट लूँगा, शेर ने कहा, तुम यह बताओ कि वह है कहाँ ? पहले जब मैंने उसे देखा था तब तो वह यहीं बाहर खड़ा था। लगता है आपको आता देखकर वह किले में घुस गया। आइये मैं आपको दिखाता हूँ।

खरगोश ने कुएं के नजदीक आकर शेर से अन्दर झांकने के लिये कहा। शेर ने कुएं के अन्दर झांका तो उसे कुएं के पानी में अपनी परछाईं दिखाई दी।

दुश्मन को तुरंत मार डालने के इरादे से वह फौरन कुएं में कूद पड़ा।

घोर संकट की परिस्थितियों में भी हमें सूझ बूझ और चतुराई से काम लेना चाहिए और आखिरी दम तक प्रयास करना चाहिए। सूझ बूझ और चतुराई से काम लेकर हम भयंकर संकट से उबर सकते हैं और बड़े से बड़े शक्तिशाली शत्रु को भी पराजित कर सकते हैं।
कूदते ही पहले तो वह कुएं की दीवार से टकराया फिर धड़ाम से पानी में गिरा और डूबकर मर गया। इस तरह चतुराई से शेर से छुट्टी पाकर नन्हा खरगोश घर लौटा। उसने जंगल के जानवरों को शेर के मारे जाने की कहानी सुनाई।

दुश्मन के मारे जाने की खबर से सारे जंगल में खुशी फैल गई। जंगल के सभी जानवर खरगोश की जय-जयकार करने लगे।

6. बगुला भगत और केकड़ा । Panchatantra stories in hindi

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New panchatantra stories in hindi 2023

Crane And Crab in Hindi, बगुला भगत और केकड़ा – पंचतंत्र, एक बार की बात हैं एक गाँव के पास में ही एक बहुत बडा तालाब था। हर प्रकार के जीवों के लिए उसमें भोजन सामग्री होने के कारण वहां नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकड़े आदि निवास करते थे।

उसी तालाब के पास में ही एक बगुला रहता था, जिसे परिश्रम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसकी आंखें भी कुछ कमज़ोर थीं। मछलियां पकडने के लिए तो मेहनत करनी पडती हैं, जो उसे खलती थी।

इसलिए आलस्य के मारे वह प्रायः भूखा ही रहता। एक टांग पर खडा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रोज भोजन मिले। एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।

बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और लगा आंखों से आंसू बहाने। एक केकड़े ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खडे आंसू बहा रहे हो?

बगुले ने ज़ोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करुंगा। मेरी आत्मा जाग उठी हैं।

इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड रहा हूं। तुम तो देख ही रहे हो। केकडा बोला मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?

बगुले ने एक और हिचकी ली ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पड़ेगा। 

बगुले ने केकड़े को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई हैं, जिसकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती। केकडे ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पडने वाला हैं।

उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकड़े, बत्तखें व सारस आदि दौडे-दौडे बगुले के पास आए और बोले भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लडाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।

बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय हैं जिसमें पहाड़ी झरना बहकर गिरता हैं। वह कभी भी नहीं सूखता। यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता हैं।

अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा। 

सभी जीवों जंतु खुशी से गद्-गद् होकर बगुला भगतजी की जै’ के नारे लगाए।

अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी।

चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज से चमकने लगे।

उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते देखो तो जरा, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है। 

बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता। वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैं। ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोडी चालाकी से काम लिया जाए तो मजे ही मजे हैं। बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उडाई जा सकती है संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौक़ा मिलता है बैठे-बिठाए पेट भरने का जुगाड़ हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता हैं।

बहुत दिन यही क्रम चला। एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई। 

बगुला भगतजी सोचने लगा की चलो आज कुछ अलग खाने को मिलेगा इतना सोचते ही बगुला भगतजी केकड़े से बोले बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा। केकड़े खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया।

जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड देखकर केकड़े का माथा ठनका। वह हकलाया ‘यह हड्डियों का ढेर कैसा है? वह जलाशय कितनी दूर है, मामा? 

बगुला भगत ठां-ठां करके खूब हंसा और बोला ‘मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं है। मैं एक- एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं। आज तू मरेगा।

केकड़ा सारी बात समझ गया। वह सिहर उठा परन्तु उसने हिम्मत न हारी और तुरंत अपने जंबूर जैसे पंजों को आगे बढाकर उनसे दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु न उड गए।

फिर केकड़ा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा।

Moral of Crane And Crab in Hindi

पंचतंत्र कहानी से सीख : इस कहानी से हम दो बात सीखते हैं 

  • दूसरों की बातों पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए, वास्तविक परिस्थिति के बारे में पहले पता लगा लेना चाहिए, हो सकता है सामने वाला मनगढंत कहानियां बना रहा हो और आपको लुभाने की कोशिश कर रहा हो।  
  • कठिन से कठिन परिस्थिति और मुसीबत के समय में भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए और धीरज व बुद्धिमानी से कार्य करना चाहिए।

7. मूर्ख साधू और ठग पंचतंत्र की कहानी । panchatantra stories in hindi 2023

panchatantra stories in hindi 2023

मूर्ख साधू और ठग-पंचतंत्र, एक बार की बात है, किसी गाँव के एक मंदिर में दिनानाथ शर्मा नाम का एक प्रतिष्ठित साधू रहा करते थे। गाँव में सभी लोग उनका आदर सम्मान करते थे, दूर-दूर के लोग उनसे मिलने को आते थे। इसी तरह उन्हें अपने भक्तों से दान के सवरुप तरह तरह के वस्त्र, उपहार, खाद्य सामग्री और पैसे मिलते थे।

उन वस्त्रों और उपहार को बेचकर साधू दिनानाथ शर्मा ने काफी धन जमा कर लिया था।

साधू कभी किसी पर विश्वास नहीं करता था और हमेशा अपने धन की सुरक्षा के लिए चिंतित रहता था।

वह अपने धन को एक पोटली में रखता था और उसे हमेशा अपने साथ लेकर ही चलता था।

उसी गाँव में एक ठग रहता था। बहुत दिनों से उसकी निगाह साधू के धन पर थी।

वह ठग हमेशा साधू का पीछा किया करता था, लेकिन साधू उस गठरी को कभी भी अपने से अलग नहीं करता था और हमेशा अपने पास ही रखता था

आखिरकार, उस ठग ने एक योजना बनायी और छात्र का वेश धारण कर लिया और उस साधू के पास गया। उसने साधू से मिन्नत की और बोला कि वह उसे अपना शिष्य बना ले क्योंकि वह ज्ञान प्राप्त करना चाहता था।

दिनानाथ शर्मा साधू तैयार हो गया और इस तरह से वह ठग शिष्य के रूप में साधू के साथ ही मंदिर में रहने लगा।

ठग मंदिर की साफ सफाई से लेकर अन्य सारे काम किया करता था और ठग ने साधू की भी खूब सेवा की और जल्दी ही उसका विश्वासपात्र बन गया।

एक दिन साधू को पास के ही गाँव में एक अनुष्ठान के लिए आमंत्रित किया गया, साधू ने वह आमंत्रण स्वीकार कर लिया और निश्चित दिन साधू अपने शिष्य ( ठग ) के साथ अनुष्ठान में भाग लेने के लिए निकल पड़े।

रास्ते में एक नदी पड़ी और साधू ने अपने शिष्य ( ठग ) से स्नान करने की इक्षा व्यक्त की। उसने अपने पैसों की गठरी को एक कम्बल के भीतर रखा और उसे नदी के किनारे रख दिया।

उसने शिष्य (ठग) से सामान की रखवाली करने को कहा और खुद नहाने चला गया।

आज ठग  मौका मिल गया था ठग को तो कब से इसी पल का इंतज़ार था। जैसे ही साधू नदी में डुबकी लगाने गया, वह रुपयों की गठरी लेकर चम्पत हो गया।

पंचतंत्र कहानी से सीख : इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि सिर्फ किसी अजनबी की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर ही उस पर हमेशा विश्वास नहीं कर लेना चाहिए। मुह में राम बगल में छूरी रखने वाले लोगों की इस दुनिया में कोई कमी नहीं है, ऐसे लोगो से हमेशा बच के रहना चाहिये।

आपलोगों को ये मूर्ख-साधू-और-ठग-पंचतंत्र की कहानी – The Foolish Sage & Swindler in Hindi की कहानी कैसी लगी हमे जरूर बताये अगर आपका कोई विचार या सुझाव हो तो हमसे साझा करे निचे Comment करें

8. दुष्ट सर्प और कौवे पंचतंत्र की कहानी । Best panchatantra stories in hindi

दुष्ट सर्प और कौवे पंचतंत्र्र की कहानी । Best panchatantra stories in hindi
Best panchatantra stories in hindi

दुष्ट-सर्प-और-कौवे-पंचतंत्र की कहानी,  एक बार की बात हैं एक बहुत ही बड़ा जंगल था उसमें सभी जानवर राहा करते थे जंगल के बीच में एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर घोंसला बनाकर एक कौआ-कव्वी का जोड़ा रहता था वो दोनों अपना सुखी जीवन जी रहे थे।

उसी पेड़ के खोखले तने में कहीं से आकर एक दुष्ट सर्प रहने लगा। हर वर्ष मौसम आने पर कव्वी घोंसले में अंडे देती और दुष्ट सर्प मौक़ा पाकर उनके घोंसले में जाकर अंडे खा जाता।

एक बार जब कौआ व कव्वी जल्दी भोजन पाकर शीघ्र ही लौट आए तो उन्होंने उस दुष्ट सर्प को अपने घोंसले में रखे अंडों पर झपटते देखा। अंडे खाकर सर्प चला गया कौए ने कव्वी को ढाडस बंधाया प्रिये, हिम्मत रखो। अब हमें शत्रु का पता चल गया हैं। कुछ उपाय भी सोच लेंगे।

कौए ने काफ़ी सोचा विचारा किया और फैसला किया की पहले वाले घोंसले को छोड़ उससे काफ़ी ऊपर वाली टहनी पर घोंसला बनाया और कव्वी से कहा यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। हमारा घोंसला पेड़ की चोटी के किनारे निकट हैं और ऊपर आसमान में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की बैरी हैं। दुष्ट सर्प यहां तक आने का साहस नहीं कर पाएगा।

एक दिन सर्प खोह से निकला और उसने कौओं का नया घोंसला खोज लिया। घोंसले में कौआ दंपती के तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट सर्प उन्हें एक-एक करके घपाघप निगल गया और अपने खोह में लौटकर डकारें लेने लगा।

कौआ व कव्वी लौटे तो घोंसला ख़ाली पाकर सन्न रह गए। घोंसले में हुई टूट-फूट व नन्हें कौओं के कोमल पंख बिखरे देखकर वह सारा माजरा समझ गए। कव्वी की छाती तो दुख से फटने लगी।

कव्वी बिलख के रो उठी तो क्या हर वर्ष मेरे बच्चे सांप का भोजन बनते रहेंगे?कौवे की बात मानकर कौव्वी ने नए घोंसले में अंडे दिए जिसमे अंडे सुरक्षित रहे और उनमें से बच्चे भी निकल आए।

उधर सर्प उनका घोंसला ख़ाली देखकर यह समझा कि उसके डर से कौआ कव्वी शायद वहां से चले गए हैं पर दुष्ट सर्प टोह लेता रहता था। उसने देखा कि कौआ-कव्वी उसी पेड़ से उड़ते हैं और लौटते भी वहीं हैं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने नया घोंसला उसी पेड़ पर ऊपर बना रखा हैं।

कौआ बोला ‘नहीं! यह माना कि हमारे सामने विकट समस्या हैं पर यहां से भागना ही उसका हल नहीं हैं। विपत्ति के समय ही मित्र काम आते हैं। हमें अपने लोमड़ी मित्र से सलाह लेनी चाहिए।

दोनों तुरंत ही लोमड़ी के पास गए। लोमड़ी ने अपने मित्रों की दुख भरी कहानी सुनी। उसने कौआ तथा कव्वी के आंसू पोंछे। लोमड़ी ने काफ़ी सोचने के बाद कहा मित्रो! तुम्हें वह पेड़ छोड़कर जाने की जरुरत नहीं हैं।

मेरे दिमाग में एक तरकीब हैं, जिससे उस दुष्टसर्प से छुटकारा पाया जा सकता हैं। लोमड़ी ने अपने चतुर दिमाग में आई तरकीब बताई। लोमड़ी की तरकीब सुनकर कौआ-कव्वी खुशी से उछल पड़ें। उन्होंने लोमड़ी को धन्यवाद दिया और अपने घर लौट आएं।

अगले ही दिन कौवे को योजना अमल में लानी थी। उसी वन में बहुत बड़ा सरोवर था। उसमें कमल और नरगिस के फूल खिले रहते थे। हर मंगलवार को उस प्रदेश की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां जल-क्रीड़ा करने आती थी। उनके साथ अंगरक्षक तथा सैनिक भी आते थे।

इस बार राजकुमारी आई और सरोवर में स्नान करने जल में उतरी तो योजना के अनुसार कौआ उड़ता हुआ वहां आया। उसने सरोवर तट पर राजकुमारी तथा उसकी सहेलियों द्वारा उतारकर रखे गए कपड़ों व आभूषणों पर नजर डाली।

कपड़े के ऊपर राजकुमारी का प्रिय हीरे व मोतियों का विलक्षण हार रखा था कौव्वी ने राजकुमारी तथा सहेलियों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ‘कांव-कांव’ का शोर मचाया।

जब सबकी नजर उसकी ओर घूमी तो कौआ राजकुमारी का हार चोंच में दबाकर ऊपर उड़ गया। सभी सहेलियां चीखी ‘देखो, देखो! वह राजकुमारी का हार उठाकर ले जा रहा हैं। सैनिकों ने ऊपर देखा तो सचमुच एक कौआ हार लेकर धीरे-धीरे उड़ता जा रहा था।

सैनिक उसी दिशा में दौड़ने लगे। कौआ सैनिकों को अपने पीछे लगाकर धीरे-धीरे उड़ता हुआ उसी पेड़ की ओर ले आया।

जब सैनिक कुछ ही दूर रह गए तो कौए ने राजकुमारी का हार इस प्रकार गिराया कि वह सांप वाले खोह के भीतर जा गिरा। सैनिक दौड़कर खोह के पास पहुंचे। उनके सरदार ने खोह के भीतर झांका।

उसने वहां हार और उसके पास में ही एक काले सर्प को कुडंली मारे देखा।

वह चिल्लाया पीछे हटो! अंदर एक नाग हैं। सरदार ने खोह के भीतर भाला मारा। सर्प घायल हुआ और फुफकारता हुआ बाहर निकला। जैसे ही वह बाहर आया, सैनिकों ने भालों से उसके टुकडे-टुकडे कर डाले।

दुष्ट सर्प और कौवे पंचतंत्र कहानी से सीख : सूझ बूझ का उपयोग कर हम बड़ी से बड़ी ताकत और दुश्मन को हरा सकते हैं, बुद्धि का प्रयोग करके हर संकट का हल निकाला जा सकता है।

आपलोगों को ये दुष्ट सर्प और कौवे – पंचतंत्र की कहानी-The Cobra and the Crows in Hindi की कहानी कैसी लगी हमे जरूर बताये अगर आपका कोई विचार या सुझाव हो तो हमसे साझा करे निचे Comment करें

9. व्यापारी का पतन और उदय । पंचतंत्र की शिक्षाप्रद कहानियां

व्यापारी का पतन और उदय । पंचतंत्र की शिक्षाप्रद कहानियां

व्यापारी-का-पतन-और-उदय-पंच-तंत्र की कहानी के पहला तंत्र मित्रदोष का यह तीसरा कहानी हैं बहुत पहले की है वर्धमान नामक शहर में एक बहुत ही कुशल व्यापारी रहता था।

राजा को उसकी कार्य क्षमताओं के बारे में पता था जिसके चलते राजा ने उसे राज्य का प्रशासक बना दिया। अपने कुशल तरीकों से व्यापारी ने राजा और आम आदमी को बहुत खुश रखा करता था।

कुछ समय के बाद व्यापारी ने अपनी लड़की का विवाह तय किया। इस विवाह के उपलक्ष्य में उसने एक बहुत बड़े भोज का आयोजन किया।

इस भोज में उसने राज परिवार से लेकर प्रजा तक सभी को आमंत्रित किया। राजघराने का एक सेवक, जो राजा के कक्ष में झाड़ू लगाता था, वह भी इस भोज में शामिल हुआ।

मगर गलती से वह एक ऐसी कुर्सी पर बैठ गया जो केवल राज परिवार सदस्यों के लिए रखी हुयी थी। सेवक को उस कुर्सी पर बैठा देखकर व्यापारी को बहुत गुस्सा आया और वह सेवक को दुत्कार कर वह वहाँ से भगा देता है।

सेवक को बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती है और वह व्यापारी को सबक सिखाने का प्रण लेता है और वहा से चला जाता हैं | 

अगले ही दिन सेवक राजा के कक्ष में झाड़ू लगा रहा होता है। तभी राजा अपने कक्ष में आ रहे होते हैं राजा को आते देख वह सेवक बड़बड़ाना शुरू करता है। वह बोलता है, इस व्यापारी की इतनी मजाल की वह रानी के साथ दुर्व्यवहार करे।

ये बात राजा ने सुन ली और वह सेवक से पूछता है, क्या यह वाकई में ये सच है? क्या तुमने व्यापारी को रानी के साथ दुर्व्यवहार करते देखा है? सेवक तुरंत राजा के चरण पकड़ता है और बोलता है, मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं कल रात को सो नहीं पाया।

मेरी नींद पूरी नहीं होने के कारण कुछ भी बड़बड़ा रहा था। यह सुनकर राजा सेवक को कुछ नहीं बोलता लेकिन उसके मन में शक पैदा हो जाता है।  

उसी दिन से राजा ने व्यापारी के महल में निरंकुश घूमने पर पाबंदी लगा देता है और उसके अधिकार कम कर देता है। अगले दिन जब व्यापारी महल में आता है तो उसे संतरिया रोक देते हैं।

यह देख कर व्यापारी बहुत आश्चर्य -चकित हो जाता है। तभी वहीँ पर खड़ा हुआ सेवक मज़े लेते हुए बोलता है, अरेवो संतरियों, जानते नहीं की ये कौन हैं? ये बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं जो तुम्हें बाहर भी फिंकवा सकते हैं।

ठीक वैसे ही जैसा की इन्होने मेरे साथ अपने भोज में किया था। तनिक सावधान रहना इनसे यह बोल के वह सेवक वहां से चला गया। 

फिर वह बड़ी विनम्रता से भोज वाले दिन किये गए अपमान के लिए क्षमा मांगता है और बोलता है की उसने जो भी किया, गलत किया फिर उसने सेवक को उपहार भी दिया। सेवक बहुत खुश होता है और व्यापारी दंतिल से बोलता है| 
यह सुनते ही व्यापारी को सारा माजरा समझ में आ जाता है। 

व्यापारी तो खुद ही बहुत चालाक था उसने एक योजना बनाई | वह सेवक से माफ़ी मांगता है और सेवक को अपने घर खाने पर बुलाता है।व्यापारी सेवक की खूब आव-भगत करता है।

यह सुनकर राजा क्रोधित हो जाता है और बोलता है, मूर्ख सेवक, तुम्हारी ये हिम्मत? तुम अगर मेरे कक्ष के सेवक ना होते, तो तुम्हें नौकरी से निकाल देता। आप चिंता ना करें, मैं राजा से आपका खोया हुआ सम्मान आपको ज़रूर वापस दिलाउंगा। अगले दिन राजा के कक्ष में झाड़ू लगाते हुआ सेवक फिर से बड़बड़ाने लगता है, हे भगवान, हमारा राजा तो इतना मूर्ख है कि वह गुसलखाने में खीरे खाता है।

सेवक फिर राजा के चरणों में गिर जाता है और दुबारा कभी ना बड़बड़ाने की कसम खाता है। 

फिर राजा भी सोचता है कि जब यह मेरे बारे में इतनी गलत बातें बोल सकता है तो इसने व्यापारी के बारे में भी अवश्य ही गलत बोला होगा। राजा सोचता है की उसने बेकार में व्यापारी को दंड दिया। अगले ही दिन राजा ने व्यापारी को महल में उसकी खोयी प्रतिष्ठा वापस दिला देता है।  

व्यापारी का पतन और उदय पंच तंत्रकहानी से सीख :

1. चाहे व्यक्ति बड़ा हो या छोटा, हमें हर किसी के साथ समान भाव से ही पेश आना चाहिए, क्यूंकि जैसा व्यव्हार आप खुद के साथ होना पसंद करेंगे वैसा ही व्यव्हार दूसरों के साथ भी करें.
2. दूसरी ये कि हमें सुनी-सुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए. पूरी तरह जाँच-पड़ताल करके ही निर्णय लेना चाहिए.

10. बन्दर और लकड़ी का खूंटा । पंचतंत्र की नई कहानियां

बन्दर और लकड़ी का खूंटा । पंचतंत्र की नई कहानियां
बन्दर और लकड़ी का खूंटा । पंचतंत्र की नई कहानियां

बन्दर-और-लकड़ी-का-खूंटा-bandar-aur-lakdi-ka-khunta-in-h-indi, एक समय की बात हैं एक शहर में कुछ ही दूरी पर एक मंदिर का निर्माण किया जा रहा था।

मंदिर में लकड़ी का काम हो रहा था और लकड़ी का काम बहुत था इसलिए लकडी चीरने वाले बहुत से मज़दूर काम पर लगे हुए थे।

यहां-वहां लकड़ी के बहुत सारे लठ्टे पडे हुए थे और लठ्टे व शहतीर चीरने का काम चल रहा था।

सभी मज़दूरों को दोपहर के भोजन करने के लिए शहर की ओर जाना परता था, इसलिए दोपहर के समय वहां पे एक घंटे तक कोई नहीं होता था।

एक दिन खाने का समय हुआ तो सारे मज़दूर काम छोडकर चल दिए।

एक लठ्टा आधा चिरा रह गया था। आधे चिरे लठ्टे में मज़दूर लकडी का कीला फंसाकर चले गए। ऐसा करने से दोबारा आरी घुसाने में उन्हें आसानी रहती है। 

तभी वहां पे बंदरों का एक दल उछलता-कूदता आया। उनमें एक शरारती बंदर भी था, जो बिना मतलब चीजों से छेड़ छार करता रहता था। बिना मतलब के पंगे लेना उसकी आदत थी।

बंदरों के सरदार ने सबको वहां पडी चीजों से छेडछाड न करने का आदेश दिया। सारे बंदर पेडों की ओर चल दिए, पर वह शैतान बंदर सबकी नजर बचाकर पीछे रह गया और लगा अडंगेबाजी करने वहां पे। 

उसकी नजर अधचिरे लठ्टे पर पडी। बस, वह उसी पर टिक गया और बीच में अडाए गए कीले को देखने लगा।

फिर उसने पास पडी आरी को देखा। उसे उठाकर लकडी पर रगडने लगा।

उससे किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज़ निकलने लगी तो उसने गुस्से से आरी पटक दी। उन बंदरो की भाषा में किर्रर्र-किर्रर्र का अर्थ ‘निखट्टू’ था।

वह दोबारा लठ्टे के बीच फंसे कीले को देखने लगा। 

उसके दिमाग में कौतुहल होने लगा कि इस कीले को लठ्टे के बीच में से निकाल दिया जाए तो क्या होगा?

फिर वह कीले को पकडकर उसे बाहर निकालने के लिए ज़ोर आजमाईश करने लगा।

लठ्टे के बीच फंसाया गया कीला तो दो पाटों के बीच बहुत मज़बूती से जकड़ गया होता हैं, क्योंकि लठ्टे के दो पाट बहुत मज़बूत स्प्रिंग वाले क्लिप की तरह उसे दबाए रहते हैं।

बंदर खूब ज़ोर लगाकर उस लकड़ी के कील को हिलाने की कोशिश करने लगा।

कीला पे जोर लगाने पर हिलने व खिसकने लगा तो बंदर अपनी शक्ति पर खुश हो गया। 

वह और ज़ोर से खौं-खौं करता हुआ कीला को जोर जोर से सरकाने लगा।

इस धींगामुश्ती के बीच बंदर की पूंछ दो पाटों के बीच आ गई थी, जिसका उसे पता ही नहीं लगा।

उसने उत्साहित होकर एक जोरदार झटका मारा और जैसे ही कीला बाहर खिंचा, लठ्टे के दो चिरे भाग फटाक की तरह आपस में जुड गए और बीच में फंस गई बंदर की पूंछ।

बंदर चिल्ला उठा।


तभी वहां पे सभी मजदुर खाना खाकर वापस आये।

सभी मजदूरों वहां आते हुये देखते ही बंदर ने वहाँ से भागने के लिए ज़ोर लगाया तो दोनों लकड़ी के पाट के बीच में फांसा हुआ उसकी पूंछ टूट गई।

और वह चीखता चिल्लाता हुआ अपनी टूटी हुई पूंछ लेकर भागा।

बन्दर और लकड़ी का खूंटा कहानी से सीख : हमे इस कहानी को पढ़कर यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपने से बड़ों (सरदार) का कहना मानना चाहिये।

आपलोगों को ये बन्दर-और-लकड़ी-का-खूंटा-bandar-aur-lakdi-ka-khunta-in-h-indi की कहानी कैसी लगी हमे जरूर बताये अगर आपका कोई विचार या सुझाव हो तो हमसे साझा करे निचे Comment and share करें।

FAQ’s: Panchatantra Stories In Hindi

Q.1 पंचतंत्र कहानियां क्या हैं?

पंचतंत्र कहानियां एक विशिष्ट प्रकार की कहानियां होती हैं, जो बहुत पुराने समय से चली आ रही हैं। यह कहानियां दुनिया भर में लोकप्रिय हैं और लोग इन्हें अपनी पीढ़ियों को बताते रहे हैं। पंचतंत्र की कहानियों का मुख्य उद्देश्य नैतिक शिक्षा देना है। ये कहानियां बच्चों को अधिक संवेदनशील बनाती हैं, उनकी सोचने की क्षमताओं को बढ़ाती हैं और उन्हें समाज में अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करने में मदद करती हैं।

Q.2 पंचतंत्र कहानियों से कौनसी शिक्षाएं मिलती हैं?

पंचतंत्र कहानियों से बच्चों को अनेक शिक्षाएं मिलती हैं। कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं निम्नलिखित हैं: नैतिकता और ईमानदारी, विश्वास और मित्रता, जीवन कौशल, सामाजिक अध्ययन

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