Samas In Hindi : समास क्या है ? समास के कितने भेद होते है ? समास की परिभाषा और उसके भेद, समास के कितने प्रकार है ? समास की परिभाषा क्या है ? ऐसे कई सवाल आपके दिमाग में होंगे। आज हम इन्ही सवाल के जवाब देने के लिए यह आर्टिकल लिख रहे है।
समास हिंदी व्याकारण का सरल पर बहोत ही महत्वपूर्ण टोपिक है। अंग्रेजी भाषा में समास को Compound के नाम से जाना जाता है। समास के 6 भेद ( प्रकार ) है, जिनके बारे में उदाहरण सहित जानकारी प्राप्त करेंगे। साथ ही साथ समास की परिभाषा की भी जानकारी प्राप्त करेंगे।
समास किसे कहते हैं । समास की परिभाषा
समास शब्द का अर्थ होता है : “संक्षिप्त” या “संछेप” या “छोटा करना“। लेकिन यहाँ समास का तात्पर्य “संक्षिप्तीकरण” के अर्थ में है।
समास की परिभाषा : दो या दो से ज्यादा शब्दों को मिलाकर जो नया अर्थपूर्ण शब्द बनता है इसे समास कहते है। समास के द्वारा कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा अर्थ प्रकट किया जाता है।
समास की अंग्रेजी में परिभाषा : The New Meaningful Word Formed by Mixing Two or More Words Is Called Compound।
समास के एक छोटा सा उदाहरण देख लेते है, ताकि आप समास की परिभाषा को अच्छे से समज पाए।
- सिंह का आसन = सिंहासन
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
संस्कृत, गुजराती इत्यादि भाषा में भी समास का महत्व है। इसके साथ साथ जर्मन भाषा में समास का अधिक प्रयोग किया जाता है। संस्कृत भाषा में समास के लिए एक सूक्ति प्रसिद्ध है
वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।
तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥
समास के भेद के बारे में जानकारी लेने से पहले समास से सम्बंधित कुछ शब्दों के बारे में आपको ज्ञात करना बेहद आवश्यक है।
समास विग्रह
समास के शब्दों के बिच के संबंधों को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। समास के विग्रह करने के पश्चात सामासिक शब्दों का लोप हो जाता है।
जैसे : देशवासी = देश के वासी
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सामासिक शब्द
समास के नियमो का प्रयोग करके जिन शब्दों का निर्माण किया जाता है, ऐसे शब्दों को सामासिक शब्द या समस्तपद कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न लुप्त हो जाते हैं।
जैसे : हिम का आलय = हिमालय ( यहाँ हिमालय सामासिक शब्द है )
पूर्वपद और उत्तरपद
समास का शब्द का निर्माण दो शब्द या पद से होता है। पहले पद को पूर्वपद, जबकि दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं।
जैसे : राजा का कुमार = राजकुमार = राज+कुमार ( यहाँ राज पूर्वपद है और कुमार उत्तरपद है)
समास के बारे में प्रयोग होने वाले शब्दों के बारे में जानकारी लेने के बाद अब समास के प्रकार भी देख लेते है।
समास के भेद
मुख्य रूप समास के 6 भेद ( प्रकार ) होते है, जो इस प्रकार है : 1. अव्ययीभाव, 2. तत्पुरुष, 3. कर्मधारय, 4. द्विगु, 5. द्वन्द्व और 6. बहुब्रीहि। इस के आलावा भी समास के उपभेद भी है। जब हमे इन समास के भेद की पहेचन करनी होती है तब हम दुविधा में पड जाते है। लेकिन समास के प्रकार को अच्छे से समजने के बाद हमारी यह दुविधा भी दूर हो जाएगी। इस लिए अब हम एक-एक करके समास के सभी भेद को उदाहरण सहित समजेंगे।
1. अव्ययीभाव समास
अव्ययीभाव समास की परिभाषा : जिस समास का प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। वे शब्द जो लिंग, कारक, वचन, काल के अनुसार नही बदलते, उन्हें अव्यव कहा जाता है।
यदि एक शब्द का पुनरावर्तन हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर भी अव्ययीभाव समास होता है। इसके अलावा संस्कृत भाषा में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही माने जाते हैं।
अव्ययीभाव समास के उदाहरण
- यथाक्रम = क्रम के अनुसार
- यथाविधि = विधि के अनुसार
- घर-घर = प्रत्येक घर। हर घर। किसी भी घर को न छोड़कर
- हाथों-हाथ = एक हाथ से दूसरे हाथ तक। हाथ ही हाथ में
- यथावसर = अवसर के अनुसार
- यथेच्छा = इच्छा के अनुसार
- यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार।
- यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो
- प्रतिदिन = प्रत्येक दिन। दिन-दिन। हर दिन
- दर असल = असल में
- बाकायदा = कायदे के अनुसार
- रातों-रात = रात ही रात में
- बीचों-बीच = ठीक बीच में
- प्रत्येक = हर एक। एक-एक। प्रति एक
- प्रत्यक्ष = अक्षि के आगे
- साफ-साफ = साफ के बाद साफ। बिल्कुल साफ
- आमरण = मरने तक। मरणपर्यन्त
- अनुकूल = जैसा कूल है वैसा
- यावज्जीवन = जीवनपर्यन्त
- निर्विवाद = बिना विवाद के
- आसमुद्र = समुद्रपर्यन्त
- भरपेट = पेट भरकर
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2. तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास की परिभाषा : इस समास का उत्तरपद अथवा अंतिम पद अथवा दूसरा पद प्रधान होता है। यानि की विभक्ति का वचन, लिंग दुसरे पद के अनुसार होता है।
तत्पुरुष समास का विग्रह करने से दो पद बनते है, उन दो पद को जोड़ने के लिए जिस कारक चिन्ह का प्रयोग होता है उसके अनुरूप तत्पुरुष समास का उपभेद तय किया जाता है।
जैसे – राजपुत्र = राजा का पुत्र ( यहाँ “का” कारक चिन्ह का प्रयोग हुआ है जो की सम्बन्ध कारक का चिन्ह है इस लिए यह समास सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहेलायेगा।)
तत्पुरुष समास के उदाहरण
- मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
- स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
- राह के लिए खर्च = राहखर्च
- तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
- राजा का महल = राजमहल
- मरणासन्न = मरण को आसन्न
- धनहीन = धन से हीन
- बाणाहत = बाण से आहत
- माखनचोर =माखन को चुराने वाला
- वनगमन =वन को गमन
- देशगत = देश को गया हुआ
- जनप्रिय = जन को प्रिय
- रथचालक = रथ को चलने वाला
- देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
- शर से आहत = शराहत
तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास के कुल मिलकर आठ भेद है, लेकिन इन में से दो भेद को लुप्त रखा गया है। तत्पुरुष समास के भेद के नाम इस प्रकार है : 1. समानाधिकरण तत्पुरुष समास, 2. व्यधिकरण तत्पुरुष समास, 3. अपादान तत्पुरुष समास, 4. सम्बन्ध तत्पुरुष समास, 5. अधिकरण तत्पुरुष समास, 6. कर्म तत्पुरुष समास, 7. करण तत्पुरुष समास, 8. सम्प्रदान तत्पुरुष समास
यहाँ हम समानाधिकरण और व्यधिकरण को छोडकर बाकि सब प्रकार के बारे में उदाहरण सहित जानकारी प्राप्त करेंगे।
अपादान तत्पुरुष समास
जिस समास के दो पदों के बिच में सम्बन्ध कारक का चिन्ह (से) छिपा होता है उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते है। सरल भाषा में कहे तो अपादान तत्पुरुष समास के दोनों पदों को “से” अलग करता है।
अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण
- रोगमुक्त = रोग से मुक्त
- जन्मांध = जन्म से अंधा
- कर्महीन = कर्म से हीन
- दूरागत =दूर से आगत
- धनहीन = धन से हीन
- स्वादरहित = स्वाद से रहित
- पदच्युत =पद से च्युत
- जन्मरोगी = जन्म से रोगी
- रणविमुख = रण से विमुख
- वनरहित = वन से रहित
- अन्नहीन = अन्न से हीन
- जातिभ्रष्ट = जाति से भ्रष्ट
- पापमुक्त = पाप से मुक्त
- देशनिकाला = देश से निकाला
- जलहीन = जल से हीन
- गुणहीन = गुण से हीन
सम्बन्ध तत्पुरुष समास
जिस समास के दो पदों के बिच में सम्बन्ध कारक का चिन्ह (का, के, की) छिपा होता है उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते है। सरल भाषा में कहे तो सम्बन्ध तत्पुरुष समास के दोनों पदों को “का, के, की” अलग करता है।
सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण
- श्रधकण = श्रधा के कण
- सेनापति = सेना का पति
- कन्यादान = कन्या का दान
- सुखयोग = सुख का योग
- गंगाजल = गंगा का जल
- गोपाल = गो का पालक
- राजनीति = राजा की नीति
- राजाज्ञा = राजा की आज्ञा
- गृहस्वामी = गृह का स्वामी
- राजकुमार = राजा का कुमार
- आमवृक्ष = आम का वृक्ष
- पराधीन = पर के अधीन
- आनंदाश्रम = आनंद का आश्रम
- सीमारेखा = सीमा की रेखा
- राजपूत्र = राजा का पुत्र
- विद्यासागर = विद्या का सागर
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अधिकरण तत्पुरुष समास
जिस समास के दो पदों के बिच में अधिकरण कारक का चिन्ह यानि की “में, पर” छिपा होता है उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते है। सरल भाषा में कहे तो इस समास के दोनों पदों को “में, पर” अलग करता है।
अधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण
- कविश्रेष्ठ = कवियों में श्रेष्ठ
- वनवास = वन में वास
- ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
- पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- दीनदयाल = दीनों पर दयाल
- क्षणभंगुर = क्षण में भंगुर
- दानवीर = दान देने में वीर
- कार्य कुशल = कार्य में कुशल
- आचारनिपुण = आचार में निपुण
- कृषिप्रधान = कृषि में प्रधान
- जलमग्न = जल में मग्न
- सिरदर्द = सिर में दर्द
- युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर
- क्लाकुशल = कला में कुशल
- शरणागत = शरण में आगत
कर्म तत्पुरुष समास
जिस समास के दो पदों के बिच में कर्म कारक का चिन्ह यानि की “को” छिपा होता है उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते है। सरल भाषा में कहे तो कर्म तत्पुरुष समास के दोनों पदों को “को” अलग करता है।
कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण
- गृहागत = गृह को आग
- यशप्राप्त = यश को प्राप्त
- मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
- स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
- मनोहर = मन को हरने वाला
- गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला
- माखनचोर =माखन को चुराने वाला
- कठफोड़वा = कांठ को फ़ोड़ने वाला
- ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
- वनगमन =वन को गमन
- देशगत = देश को गया हुआ
- जनप्रिय = जन को प्रिय
- रथचालक = रथ को चलने वाला
- मरणासन्न = मरण को आसन्न
- शत्रुघ्न = शत्रु को मारने वाला
- सर्वभक्षी = सब का भक्षण करने वाला
करण तत्पुरुष समास
जिस समास के दो पदों के बिच में करण कारक का चिन्ह यानि की “से, के द्वारा” छिपा होता है उसे करण तत्पुरुष समास कहते है। सरल भाषा में कहे तो करण तत्पुरुष समास के दोनों पदों को “के द्वारा, से” अलग करता है।
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करण तत्पुरुष समास के उदाहरण
- रोगग्रस्त = रोग से ग्रस्त
- आँखोंदेखी = आँखों से देखी
- भुखमरी = भूख से मरी
- मदांध = मद से अंधा
- गुणयुक्त = गुणों से युक्त
- अंधकार युक्त = अंधकार से युक्त
- भयाकुल = भय से आकुल
- पददलित = पद से दलित
- सूररचित = सूर द्वारा रचित
- तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित
- कर्मवीर = कर्म से वीर
- रसभरा = रस से भरा
- मनचाहा = मन से चाहा
- रक्तरंजित = रक्त से रंजीत
- जलाभिषेक = जल से अभिषेक
- करुणा पूर्ण = करुणा से पूर्ण
सम्प्रदान तत्पुरुष समास
जिस समास के दो पदों के बिच में सम्प्रदान कारक का चिन्ह (विभक्ति) यानि की “के लिए” छिपा होता है उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते है। सरल भाषा में कहे तो सम्प्रदान तत्पुरुष समास के दोनों पदों को “के लिए” अलग करता है।
सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण
- देवालय = देव के लिए आलय
- भिक्षाटन = भिक्षा के लिए ब्राह्मण
- रसोईघर = रसोई के लिए घर
- गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
- राहखर्च = राह के लिए खर्च
- विद्यालय = विद्या के लिए आलय
- विधानसभा = विधान के लिए सभा
- स्नानघर = स्नान के लिए घर
- सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
- हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी
- देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
- गौशाला = गौ के लिए शाला
- धर्मशाला = धर्म के लिए शाला
- पुस्तकालय = पुस्तक के लिए आलय
- सभाभवन = सभा के लिए भवन
- युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि
तत्पुरुष समास के उपभेद
तत्पुरुष समास के तिन उपभेद है, जो यहाँ दिए हुए है :
- उपपद तत्पुरुष समास
- नञ् तत्पुरुष समास
- लुप्तपद तत्पुरुष समास
उपपद तत्पुरुष समास
जिस समास का उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है, उसे अपपद तत्पुरुष समास कहते है।
जैसे- कृतघ्न , जलद , लकड़हारा, नभचर , कृतज्ञ इत्यादि ।
नञ तत्पुरुष समास
नञ तत्पुरुष समास में पहला पद निषेधात्मक होता है।
जैसे –
- असभ्य =न सभ्य
- अनंत = न अंत
- अनादि =न आदि
- असंभव =न संभव
लुप्तपद तत्पुरुष समास
जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है ।
जैसे –
- दहीबड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा
- पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की
- ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
3. द्विगु समास
द्विगु समास की परिभाषा : जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी परपद (दूसरा पद) भी संख्यावाचक होता है, उसे द्विगु समास कहते है। यहाँ प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध करती है किसी अर्थ का नहीं। द्विगु समास का विग्रह करने पर ‘समूह‘ या ‘समाहार‘ शब्द प्रयुक्त होते है।
द्विगु समास के उदाहरण
- नवरात्र = नौ रात्रियों का समाहार
- भुवन-त्रय = तीन भुवनों का समाहार
- चौमासा/चतुर्मास = चार मासों का समाहार
- दशक = दश का समाहार
- शतक = सौ का समाहार
- पंचपात्र = पाँच पात्रों का समाहार
- पंचवटी = पाँच वटों का समाहार
- चतुर्भुज = चार भुजाओं का समाहार (रेखीय आकृति)
- सप्तर्षि = सात ऋषियों का समूह
- अष्ट-सिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार
- दोराहा = दो राहों का समाहार
- त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
- त्रिलोक या त्रिलोकी = तीन लोकों का समाहार
- पक्षद्वय = दो पक्षों का समूह
- सम्पादक द्वय = दो सम्पादकों का समूह
- त्रिरत्न = तीन रत्नों का समूह
- संकलन-त्रय = तीन का समाहार
- नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
- चतुर्वर्ण = चार वर्णों का समाहार
- पंचामृत = पाँच अमृतों का समाहार
जिस तरह हमने तत्पुरुष समास में भेद और उपभेद देखे इसी तरह द्विगु समास के भी दो भेद है।
द्विगु समास के भेद
- उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
- समाहारद्विगु समास
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
उत्तरपदप्रधानद्विगु के उदाहरण इस प्रकार है:
- दो माँ का =दुमाता
- दो सूतों के मेल का = दुसूती।
- पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
- पांच हत्थड = पंचहत्थड
समाहारद्विगु समास
समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना। जैसे:
- तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
- तीन भुवनों का समाहार = त्रिभुवन
- पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
4. कर्मधारय समास
कर्मधारय समास की परिभाषा : जो समास विशेषण -विशेष्य या उपमेय -उपमान मिलकर बनता है, उसे कर्मधारय समास कहते है। कर्मधारय समास का एक पद विशेषण होता है तो दूसरा पद विशेष्य होता है। इस समास का विग्रह करने पर ‘रूपी’ शब्द दिखाई देते है।
कर्मधारय समास के उदाहरण
- पुरुषोत्तम = पुरुष जो उत्तम
- नीलकमल = नीला जो कमल
- महापुरुष = महान् है जो पुरुष
- चरम-सीमा = चरम है जो सीमा
- नीलोत्पल = नीला है जो उत्पल
- मृग नयन = मृग के समान नयन
- कृष्ण-पक्ष = कृष्ण (काला) है जो पक्ष
- मन्द-बुद्धि = मन्द जो बुद्धि
- शुभागमन = शुभ है जो आगमन
- चन्द्र मुख = चन्द्र जैसा मुख
- लाल-मिर्च = लाल है जो मिर्च
- घन-श्याम = घन जैसा श्याम
- पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
- अधमरा = आधा है जो मरा
- रक्ताम्बर = रक्त के रंग का (लाल) जो अम्बर
- कुमति = कुत्सित जो मति
- कुपुत्र = कुत्सित जो पुत्र
- दुष्कर्म = दूषित है जो कर्म
- महर्षि = महान् है जो ऋषि
- नराधम = अधम है जो नर
कर्मधारय समास के भेद
कर्मधारय समास के चार भेद है, जो इस प्रकार है :
- विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
- विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
- विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
- विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास
विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास में पहला पद विशेष्य होता है। इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं।
जैसे : कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा
विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास
विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास में पहला पद प्रधान होता है।
जैसे
- नीलीगाय = नीलगाय
- प्रिय सखा = प्रियसखा
- पीत अम्बर =पीताम्बर
विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
विशेष्योभयपद कर्मधारय समास के दोनों पद विशेष्य होते है।
जैसे : आमगाछ ,वायस-दम्पति
विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास के दोनों पद विशेषण होते हैं।
जैसे :
- सुनी – अनसुनी
- नील – पीत
- कहनी – अनकहनी
कर्मधारय समास के उपभेद
कर्मधारय समास के चार भेद के आलावा तिन उपभेद भी है :
- उपमानकर्मधारय समास
- रूपककर्मधारय समास
- उपमितकर्मधारय समास
उपमानकर्मधारय समास
इस समास में उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘ इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है।
जैसे :
- विद्युचंचला = विद्युत् जैसी चंचला
- चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
रूपककर्मधारय समास
रूपककर्मधारय समास में एक शब्द का दूसरे पर आरोप होता है।
जैसे : मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र
उपमितकर्मधारय समास
उपमितकर्मधारय समास में उपमेय पहला पद होता है जबकि उपमान दूसरा पद होता है। यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है।
जैसे :
- नर सिंह के समान = नरसिंह
- अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव
5. बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास की परिभाषा : जिस समास में कोई प्रधान पद नही होता और दो पद मिलकर बनने वाला तीसरा पद प्रधान पद होता है, ऐसे समास को बहुव्रीहि समास कहते है। इस समास का विग्रह करने पर यह शब्द आते है : ” वह, वाला है, जो, जिसका, जिसके, जिसकी ”
बहुव्रीहि समास के उदाहरण
- मधुसूदन = मधु को मारने वाला है जो वह
- आजानुबाहु = जानुओं (घुटनों) तक बाहुएँ हैं जिसकी वह
- नीलकण्ठ= नीला कण्ठ है जिसका वह
- कमलनयन = कमल के समान नयन हैं जिसके वह
- कनकटा = कटे हुए कान है जिसके वह
- मन्द बुद्धि = मन्द है बुद्धि जिसकी वह
- जितेन्द्रिय = जीत ली हैं इन्द्रियाँ जिसने वह
- जलज = जल में जन्मने वाला है जो वह (कमल)
- वाल्मीकि = वल्मीक से उत्पन्न है जो वह
- दिगम्बर = दिशाएँ ही हैं जिसका अम्बर ऐसा वह
- दशानन = दश आनन हैं जिसके वह (रावण)
- घनश्याम = घन जैसा श्याम है जो वह (कृष्ण)
- पीताम्बर = पीत अम्बर हैं जिसके वह (विष्णु)
- चन्द्रचूड़ = चन्द्र चूड़ पर है जिसके वह
- गिरिधर = गिरि को धारण करने वाला है जो वह
- वज्रपाणि = वज्र है पाणि में जिसके वह
- सुग्रीव = सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वह
- मुरारि = मुर का अरि है जो वह
- आशुतोष = आशु (शीघ्र) प्रसन्न होता है जो वह
- नीललोहित = नीला है लहू जिसका वह
बहुव्रीहि समास के भेद
बहुव्रीहि समास के कुल 5 भेद है, जो इस प्रकार है :
- व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
- समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
- व्यतिहार बहुब्रीहि समास
- तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
- प्रादी बहुब्रीहि समास
व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
जिस समास में पहला पद कर्ता कारक की विभक्ति का जबकि दूसरा पद अधिकरण या संबंध कारक की विभक्ति का होता है, इसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहा जाता है।
जैसे :
- शूलपाणी = शूल है पाणी में जिसके
- वज्रपाणि= वज्र है पाणि में जिसके
- वीणापाणी = वीणा है पाणी में जिसके
समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
जिस समास के सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के हो लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है वो कर्ता कारक की विभक्ति का न हो ऐसे समास को समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते है।
जैसे :
- सतखंडा = सात है खण्ड जिसमें
- निर्धन = निर्गत है धन जिससे
- जितेंद्रियाँ = जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा
व्यतिहार बहुब्रीहि समास
व्यतिहार बहुब्रीहि समास में घात या प्रतिघात की सुचना मिलती हैं। इस समास में ‘किसी चीज से लड़ाई हुई’ ऐसा प्रतीत होता है।
जैसे :
- मुक्का-मुक्की = मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई
- बाताबाती = बातों-बातों से जो लड़ाई हुई
तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
जिस समास का पहला शब्द ‘सह’ या ‘स’ हो ऐसे ऐसे समास को तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहते है। इस समास का विग्रह करने पर ‘साथ’ शब्द मिलता है।
- सबल = जो बल के साथ है
- सपरिवार = जो परिवार के साथ है
- सदेह = जो देह के साथ है
प्रादी बहुब्रीहि समास
प्रादी बहुब्रीहि समास का प्र्व्पद उपसर्ग होता है।
जैसे :
- निर्जन = नहीं है जन जहाँ
- बेरहम = नहीं है रहम जिसमें
6. द्वन्द समास
द्वन्द समास की परिभाषा : जिस समास के दोनों पद प्रधान हो और कोई भी पद गौण न हो, ऐसे समास को द्वन्द समास कहते है। इस समास का विग्रह करने पर ‘अथवा, और, या, एवं‘ जैसे शब्द मिलते है।
द्वन्द समास उदाहरण
- नील-लोहित = नीला और लोहित (लाल)
- पाप-पुण्य = पाप या पुण्य/पाप और पुण्य
- अन्न-जल = अन्न और जल
- धर्माधर्म = धर्म या अधर्म
- शीतोष्ण = शीत या उष्ण
- शस्त्रास्त्र = शस्त्र और अस्त्र
- कृष्णार्जुन = कृष्ण और अर्जुन
- भला-बुरा = भला या बुरा
- यशापयश = यश या अपयश
- शीतातप = शीत या आतप
- माता-पिता = माता और पिता
- दाल-रोटी = दाल और रोटी
- जलवायु = जल और वायु
- सुरासुर = सुर या असुर/सुर और असुर
- फल-फूल = फल और फूल
- रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
द्वन्द समास के भेद
द्वन्द समास के तिन भेद है जो इस प्रकार है :
- समाहारद्वंद्व समास
- इतरेतरद्वंद्व समास
- वैकल्पिकद्वंद्व समास
समाहार द्वन्द्व समास
जो द्वन्द्व समास अपने दोनों पद से समूह का बोध करवाता है, ऐसे समास को समाहार द्वन्द्व समास कहते है। समाहार का आर्थ समूह होता है।
जैसे :
- दालरोटी = दाल और रोटी
- चोरपुलिस = चोर और पुलिस
- हाथपॉंव = हाथ और पॉंव
इतरेतरद्वंद्व समास
जिस समास के दो पद ‘और’ शब्द से जुड़े हो लेकिन अलग अलग अस्तित्व रखते हो ऐसे समास को इतरेतरद्वंद्व समास कहते है। इस समास के पद बहुवचन में प्रयोग होते है।
जैसे :
- गाय और बैल = गाय-बैल
- बेटा और बेटी = बेटा-बेटी
- ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि
वैकल्पिक द्वंद्व समास
वैकल्पिक द्वंद्व समास के दो पद के बीच में या, अथवा जैसे विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं। इस समास में दो विरोधीशब्दों का योग होता है।
जैसे :
- सही-गलत = सही या गलत
- छोटा-बड़ा = छोटा या बड़ा
- भला-बुरा = भला या बुरा
तो इस प्रकार सभी समास और उसके भेद देखने के बाद कुछ ऐसे भी समास रह जाते है, जो की अन्य समास के तौर पे यहाँ दिए गये है।
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अन्य समास
वर्णनमूलक समास
जिस समास में प्रथम पद अव्यव और दूसरा पद संज्ञा हो इसे वर्णनमूलक समास कहा जाता है। इस समास से अव्ययीभाव और बहुब्रीहि समास का निर्माण होता है।
जैसे : प्रतिमास, भरपेट, घड़ी-घड़ी, यथाशक्ति, प्रत्येक, यथासाध्य
आश्रयमूलक समास
आश्रयमूलक समास का पहला पद विशेषण होता है जबकि दुसरे पद का अर्थ बलवान होता है। यह समास मूलरूप से कर्मधारय समास ही होता है।इस समास को विशेषण समास भी कहा जाता है।
जैसे : शीशमहल , कच्चाकेला , लाल-पीला, मौलवीसाहब , घनस्याम
संयोगमूलक समास
संयोगमूलक समास के दोनों पद संज्ञा होते है इस लिए इसे संज्ञा समास भी खा जाता है।
जैसे : माँ-बाप, माता-पिता, भाई-बहन, दिन-रात
निष्कर्ष । Conclusion
मैं आशा करता हूं कि आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी समास किसे कहते हैं । समास की परिभाषा। Samas In Hindi जरूर पसंद आयी होगी और आपके सभी सवालों का भी जवाब मिल गया होगा।
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FAQ ON Samas । अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
समास के कितने प्रकार होते हैं?
समास के कुल 6 प्रकार होते है. जो की 1. अव्ययीभाव, 2. तत्पुरुष, 3. कर्मधारय, 4. द्विगु, 5. द्वन्द्व और 6. बहुब्रीहि है।
यथाशक्ति का समास विग्रह क्या होता है?
यथाशक्ति का समास विग्रह ‘शक्ति के अनुसार’ होता है, जो की अव्ययीभाव समास है।
दशानन का समास विग्रह क्या होता है?
दशानन का समास विग्रह ‘दस है आनन जिसके ( रावन )’ होता है, जो की बहुव्रीहि समास है।
चौराहा में कौन सा समास है?
चौराहा में द्विगु समास है, जिसका विग्रह ‘चार राहें’ होता है।
प्रतिदिन में कौन सा समास है?
प्रतिदिन में अव्ययीभाव समास है, जिसका विग्रह ‘दिन-दिन’ होता है
नीलकमल का समास विग्रह क्या होता है?
नीलकमल का समास विग्रह ‘नीला कमल’ होता है, जोकि कर्मधारय समास है।
रसोईघर का समास विग्रह क्या होता है?
रसोईघर का समास विग्रह ‘रसोई के लिए घर’ होता है, जोकि सम्प्रदान तत्पुरूष समास है।
चक्रपाणि कौन सा समास है?
चक्रपाणि बहुब्रीहि समास है, जिसका समास विग्रह ‘चक्र है हाथ में जिसके -विष्णु’ होता है
पीताम्बर का समास विग्रह क्या होता है?
पीताम्बर का समास विग्रह ‘पीत है अम्बर जिसका (कृष्ण)’ होता है, जोकि बहुव्रीहि समास है।
कमलनयन कौन सा समास है?
कमलनयन कर्मधारय समास है, जिसका विग्रह ‘कमल के समान नयन’ होता है।
घर घर में कौन सा समास है?
घर घर अव्ययीभाव समास है, जिसका विग्रह ‘प्रत्येक घर’ होता है।
कभी कभी में कौन सा समास है?
कभी कभी द्वंद समास है, जिसका विग्रह ‘कभी कभी’ ही होता है।
कर्मधारय समास के कितने भेद हैं?
कर्मधारय समास चार भेद होते है। 1. विशेषण पूर्वपद , 2. विशेष्य पूर्वपद , 3. विशेषणोभय पद , 4. विशेष्योभय पद
राजपुरुष में कौन सा समास है?
राजपुरुष में संबंध तत्पुरूष समास है, जिसका विग्रह ‘राजा का पुरुष’ होता है।
पितरौ कौन सा समास है?
पितरौ द्वंद्व समास है।
विलोम शब्द / विपरीतार्थक शब्द – Vilom Shabd In Hindi
लोरिक चंदा छत्तीसगढ़ी लोक-कथा/कहानी । Chhattisgarhi Lok-Katha Lorik Chanda