गांव पर कविता हिंदी में । Poem On Village In Hindi 2023 : मेरा गावं सबसे प्यारा सबसे सुंदर आज की कविता दोस्तों आज हम आप लोगों के लिए बहुत ही सुंदर गावं के ऊपर कविता लेकर आए हैं। हम सभी कविता को पड़ते और गावं या शहर के लॉगो को सुनाते है। आज की जो कविता है उसमें हम ये देख सकते है की गावं कितना सुंदर होता हमारे गावं में बकरिया, भैस ,गाय, जानवर रहते है जिनकी सेवा हम गांव वाले लोग रखते है
आज की दुनिया मॉडर्न हो रही है जिसका बहोत बड़ा असर हमारे देश भारत पे पड़ा है यहां के लोग अब शहर की तरह जीने लगे है और अपने गांव को छोड़ के घरों से निकल कर अब सहर की ओर जा रहे हैं।
गांव के ऊपर कविता। Poem On Village In Hindi
(1)
Gaon Ka Jeevan Par Kavita
वो भी क्या दिन थे जब,
हम अपने गांव में रहते थे ,
इंटरनेट और पब्जी नहीं था,
साइकिल के पहिए चलते थे ।।
गिल्ली और डंडे के हम भी,
तेंदुलकर कहलाते थे,
जीते जाने पर यारों के,
कांधे पर टंग जाते थे ,
एक कटी पतंग के पीछे,
जब दस-दस दौड़ा करते थे ।।
रेस्टोरेंट् और माल नहीं था,
पॉपकॉर्न और सिनेमा हॉल नहीं था ,
अम्मा की साड़ी पहनकर,
हम राम और सीता बनते थे,
वेद पुराणों की घटना जब,
हम मैदानों में रचते थे ।।
पिज्जा, बर्गर नहीं था,
पास्ता और चाऊमीन नहीं था,
अम्मा के चूल्हे में जब,
चोखा और मकुनी पकती थी ,
सोंधी सोंधी खुशबू लेकर,
हम देसी घी से खाते थे ।।
चोरी और व्यभिचार नहीं था,
बड़े, बुजुर्गों का तिरस्कार नहीं था ,
खेतों के मजदूर भी जब,
काका- काका कहलाते थे,
हर लड़की कर्णावती थी,
तब हम भी हुमायूं बन जाते थे।।
कविता लेखक – ऋतु सिंह
(2)
मेरा गांव – Short Poem On Village In Hindi
वो सूरज की अरुणाई थी
या धरती की तरुनाई थी ,
उन पेड़ों की उस सर सर में
जाने कैसी शहनाई थी…….!
कुछ ओस की भीगी बूंदों में
वो कैसी अदभुत सरगम थी ,
मन भीगा था , तन भीगा था
वसुधा थोड़ी शरमाई थी…..!
खेतो की पीली सरसों भी
यौवन पर इतराती थी ,
वो धान रोपती बाला भी
थोडा़ सा इठलाती थी…..!
पीपल के बूढ़े पेड़ों में
एक धूप का बड़ा झरोखा था ,
ये मेरे गांव का यौवन था
बचपन में मैंने देखा था…..!
काका काकी , दादा दादी
घंटो हमसे बतलाते थे ,
कुछ अपनी बाते कहते थे
कुछ नई कथा सिखलाते थे…..!
अब शहर शहर मै जाता हूं
पर कुछ ना ऐसा पाता हूं ,
मै शहर में आज अकेला हूं
वो गांव अभी भी मेला है …….!
कविता लेखक-सुनीता गुप्ता
(3)
देहाती साँझ – गांव पर सुंदर कविता
पंख समेटे तरु शिखरों पर,
जा बैठी चिड़िया मतवाली।
तेज चला रवि का बाजीरथ,
सिमटी धीरे-धीरे लाली।
लुप्त हो रही रवि की आभा,
क्षितिज बीच हो जाती ओझल।
लोट चले खग वृंद नीड़ पर,
कुहूँक भूल गयी अब कोयल।
लोट रहे बगुलें खेतो से,
हलवाये का साथ निभाकर।
बैलों की रुनझुन गलमाला,
बज उठती है राग बदलकर।
लोट रही गायो के खुर से,
उड़ती चमक उठी है गोरज।
पैरों की गति तेज हो गयी,
लोट चला अस्ताचल सूरज।
दिनभर वह माटी से खेला,
थका हुआ भरता धीरे डग।
हल की हाल रखे कंधे पर,
घर की ओर बढ़े उसके पग।
सोच रहा कल फिर आना हेै,
मन में पाल रखे है सपनें।
याद करे हँसते खेतो को,
मिट जाएगे दु:ख सब अपने।
छोड़ गया रवि अब शासन को,
और चाँद ने डोर पकड़ली।
डूब गऐ गहरे विषाद में,
गाँव गृह चौपाले देहली।
धीरे-धीरे नीलमणि पर
तारें आभा को पाते हैं।
जाड़े की भीगी रातों में,
लगते सपनों से जागे है।
थोड़ी चमक उठी रजनी अब,
चंद्र चला अपने यौवन पर।
कुत्ते भौक रहे गलियों में,
नीड़ छोड़ आए चमकादड़।
दूर कही झुन्डों में बैठे,
जोर-जोर से रोते गीदड़।
बीच बीच मगरोठी ठिठकें,
उल्लू बोल उठे शाखों पर।
घर के कोने में चूल्हें पर,
साग छोकती घर की नारी।
पास पड़ी छोटी मचिया पर,
हुक्के में तम्बाकू डाली।
आस पास बैठे है टाबर,
ले हाथों में खाली थाली।
दो काली चिद्दी रोटी ले,
चटनी से भर दे दी प्याली।
छपरे के आले की ढिबरी,
धीरे-धीरे लौ खोती है।
नहीं निशा से है लड़ पायी,
धुआँ उगलती वह रोती है।
कभी कभी जुगनू दे आभा,
उसका साथ निभा जाते हैं।
दीपों की माला से गुथँ कर,
बार- बार चमका आते हैं।
बाहर खड़े नीम के नीचे,
चौके पर एक धुनी जलती।
आस पास बैठे देहाती,
बाते सपनों को है बुनती ।
हुक्के की गुड़गुड़ में अपनी,
भूल गए वो यादें बीती।
अनुभव आते जब यादों में,
छा जाती खामोशी रीती।
धीरे-धीरे शाम खो गयी,
चारों ओर निशा गहरायी।
सभी हुए खामोश दूर से,
पेंचक की आवाजे आयी।
नीरव शांति भर गई बस्ती,
डूब गई गहरी निद्रा में।
निकल गया सारी बस्ती को,
अलसाया अजगर संध्या में।
कविता लेखक – हेमराज सिंह
(4)
खुले आकाश के नीचे – Best Poem On Village In Hindi
जहाँ खुले आकाश के नीचे
हम खेले दौड़े नंगे पाँव
अमराई में कोयल कूके
वही हमारा गाँव
बड़ी भोर ही चूल्हा सुलगे
सोंधी गरम जो रोटी महके
भूख भी आए नंगे पाँव
वही हमारा गाँव
हुक्का पानी बातों के संग
कक्का दद्दा बैठें मिल के
सहलाएँ एक दूजैं के घाव
वही हमारा गाँव
धरती उगले सोना चाँदी
महकें खेतों की माटी
हर घर प्रेम की दिखती छाँव
वही हमारा गाँव
मन आजाद परिंदा सा
उड़ उड़ ढूँढे अपनी ठाँव
वही हमारा गाँव
(5)
हमको प्यारे लगते गाँव – गांव कविता हिंदी में
आँगन में पीपल की छाँव
हमको प्यारे लगते गाँव
अमवा पर कौआ की काँव
हमको प्यारे लगते गाँव
कोयल की मीठी बोली
पक्के रंगों की होली
गाँव की कच्ची राहों पर
भीगे बच्चों की टोली
और सने मिट्टी में
हमको प्यारे लगते गाँव
हरे भरे लहराते खेत
पनघट पर सखियों का हेत
उड़ती अच्छी लगती है
सोन सी मुट्ठी में रेत
पानी में कागज की नाव
हमको प्यारे लगते गाँव
चोरी से अंबिया लाना
छत पर छुप छुप कर खाना
नन्ही मुनिया जब मांगे
उसे अंगूठा दिखलाना
माली की मुछों पर ताव
हमको प्यारे लगते गाँव
बच्चों की लम्बी सी रेल
गिल्ली डंडों का वो मेल
खेतों में पकड़ा पकड़ी
आँख मिचौली का वह खेल
पहलवान के दीखते दांव
हमको प्यारे लगते गाँव
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मैं उम्मीद करता हूं कि आपको हमारे यहां मेरा गाँव कविता, गांव शहर हिंदी कविता, गांव के ऊपर कविता बहोत पसंद आई होगी। आज हर कोई अपने आप को बदल रहा है जो कि सही लेकिन उससे अपने आस पास को साफ रखना चाहिए।
तो दोस्तों आप सब को आज की हमारी कविता गांव पर आधारित सुंदर कविता कैसे लगी हमें कमेंट कर के जरूर बताये और अपने मित्रों संग शेयर जरूर करे.