आज की कविता स्वामी विवेकानंद जी जिन्हें हम नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से भी जानते है इसलिए आज स्वामी विवेकानंद जी पर कविता यानि नरेन्द्र नाथ दत्त पर कविता लिखी गई है ताकि विद्यार्थी जो कक्षा 1,2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 के स्कूल छात्र छात्राएं है वे अपने निबंध परीक्षा में अच्छा कर सके।
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था और इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त एवं माता का नाम भिनेश्वरी देवी था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त हाईकोर्ट में एक प्रसिद्ध वकील थे। भारत देश में राष्ट्रीय युवा दिवस विवेकानंद जी के जयंती पे मनाया जाता है उनके बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। बाद में विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुये। स्वामी विवेकानंद जी अपने स्कूल में बुद्धिमान विद्यार्थियों में से एक थे।
स्वामी विवेकानंद जी को धर्म और आध्यात्मिक क्षेत्र में अधिक रुचि थी। स्वामी विवेकानंद जी ने 1 मई सन 1897 में रामकृष्ण मिशन की सुरुवात की थीं इन्होंने पैदल ही पूरे भारत देश की यात्रा की थी। स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से ही भगवान को जानने और उनको पाने की लालसा मन में थीं। विवेकानंद इंग्लैंड, अमेरिका और यूरोप में वेदांत के सिद्धान्तों का प्रसार किया। उन्होंने शिकांगों में 1893 में आयोजित विशव धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
स्वामी विवेकानंद कविता। Poem on Swami Vivekanand in Hindi
स्वामी विवेकानंद जी के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे। 25 साल की उम्र में उन्होंने अपने परिवार को त्यागकर एक साधु बन गए थे। 4 जुलाई 1902 में उन्होंने ध्यानावस्था में ही महासमाधि ले ली।
स्वामी विवेकानंद जी की गिनती भारत के महा पुरुषों में किया जाता हैं उस समय जब कि भारत अंग्रेजी दसता अपने को दिन हीन पा रहा था तब भारत माता ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया जिसने भारत के लोगों को ही नहीं,पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया।
उन्होंने विश्व के लोगों को अध्यात्म का रसस्वादन कराया।इस महापुरुष पे सम्पूर्ण भारत को गर्व है। नरेंद्र जी ने मैट्रिक की परीक्षा 1889में उतीर्ण कर कोलकाता के ‘जनरल असेम्बली ‘नामक कॉलेज में प्रवेश लिया उन्होंने इतिहास,दर्शन, सहित्य आदि विषयो का अध्ययन किया। नरेंद्र ने बी•ए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की।उम्मीद करता हु की आपको ऊपर लिखी गई कविताएँ बहोत पसंद आएगी।
स्वामी विवेकानंद कविता । Poem On Swami Vivekananda In Hindi
(राष्ट्रीय युवा दिवस)
स्वामी विवेकानंद जयंती का, अवसर है,
आज सर्वप्रथम हम एक काम करते हैं।
उनके महान् व्यक्तित्व को नमन हमारा,
उनके ज्ञान रूपी तन को प्रणाम करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जयंती……….
12 जनवरी 1863, कोलकाता में जन्म,
पच्चीस वर्ष आयु में संन्यास को वरण।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस उनके गुरु थे,
उनके आदर्शों को भी राम राम करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जयंती………….
महात्मा बुद्ध के बाद जो दूसरी पसंद,
उनको कहती दुनिया स्वामी विवेकानंद।
जीवन का चालीसवां वसंत रूठ गया था,
उनकी कृतियों को हम सम्मान करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जयंती……….
युवाओं को जागने व भागने का संदेश,
मंजिल मिलने तक, लड़ने का उपदेश।
उनकी जयंती ही राष्ट्रीय युवा दिवस है,
युवा ज्ञान से, जीवन आसान करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जयंती…………
संकट का सामना करने को सदा तैयार,
जीवन में कभी उन्होंने मानी नहीं हार।
हम भारतवासियों को बड़ा गर्व है उन पे,
अज्ञान के अंधकार को, नाकाम करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जयंती…………
प्रिय युवाओं भारत के, सीखो आगे बढ़ो,
स्वामीजी के उपदेश से सारे जीवन गढ़ो।
अनंत काल तक यही रहेंगे आदर्श हमारे,
अज्ञानता की बिदाई का इंतजाम करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जयंती…………
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
स्वामी विवेकानंद जयंती पर कविता । Poem on Swami Vivekananda Jayanti
लहरा उठा हिंदुत्व का परचम.. तब,
भारत का यश, विश्व को सूझा था,
शिकागो के ईसाई धर्म-सभा में जब..
इस सन्यासी का वितर्की, डंका गूंजा था।
भगवे रंग के लिबास में लिपटे.. उस,
महापुरुष के चरणों में नमन करते हैं,
आज उनके जन्मदिवस पर, हम सब..
उस महान विभूति का, स्मरण करते हैं।।
कोलकाता में जन्मे थे वह..
बालपन का नाम जिनका नरेंद्र था,
महाप्रतापी, मेधावी, ईश्वरीय चित्त..
आध्यात्मिक ज्ञान इनका पुरंदर था।
धर्म ज्ञान की तलाश में रहते..
वकालत का इल्म़ ठुकराया था,
धार्मिक जिज्ञासा में भटकते हुए..
दक्षिणेश्वर इन्हें पहुंचाया था!
गुरु माना था श्री रामकृष्ण परमहंस जी को..
जिन्होंने दिव्यलोक का दर्श कराया था,
समाधान मिला अपनी जिज्ञासाओं का..
देवत्व का आत्मिक संचार कराया था।
अभिभूत हो गए धार्मिक जीवन से..
वेदांतों का अध्ययन किया इन्होंने..
सन्यासी जीवन को..अपना लिया!
प्रभावित हो गए गुरु परमहंस जी..
अपनी सारी सिद्धियों का ज्ञान दिया,
विवेक के इस…महासागर को..
गुरु ने विवेकानंद था नाम दिया।
प्रारंभ किया जब देश भ्रमण..तब,
समाज में कई विकृतियां नजर आईं,
हिंदुत्व के प्रति इसाई पादरियों की..
लोगों में फैलाई..भ्रांतियां नज़र आई!
रहा न गया जब विवेकानंद जी से..
ईसाइयों को शास्त्रार्थ की चुनौती दे डाली,
कोई ना आया सम्मुख, तो इन्होंने..
शिकागो के धर्मसभा को ललकार दे डाली।
सभा के मंच पर पहुंच इन्होंने..
‘मेरे अमेरिकी भाइयों-बहनों’ का संबोधन किया,
तालियों की गड़गड़ाहट, गूंजी चारों ओर..
संबोधन ने ही, सबका दिल जीत लिया!
भाषण सुनकर लोगों के दिल से..
हिंदू धर्म के प्रति, भ्रम जाल दूर हुआ,
कई देशों में भ्रमण किया विवेकानंद ने..
लोगों ने स्वामी जी कहकर मशहूर किया।
नहीं भूलेगी इन की विजय कीर्ति..
इसी सुकीर्ति से वे ‘विश्व विजेता’ कहाते हैं,
विवेक वान, धर्म परायण, वेदंती..
विश्व में स्वामी विवेकानंद कहलाते हैं!!
स्वामी विवेकानंद पर हिंदी कविता
सोयी दुनिया को जगाया
सिंहों को सिंह बनाया
प्रेम योग हो या भक्ति योग हो
एक रहस्यमयी सूत्र उपजाया
दूसरों के लिए जीना और
नर – पशु में मतभेद बताया
वही आत्मज्ञान का महापुरुष
स्वामी विवेकानंद कहलाया
रुको न जब तक लक्ष्य न पाओ
मन दुर्बलता को दूर भगाओ
इंसानियत का यही मर्म
जीवन पथ पर हो सत्कर्म
सोच लो तो शैतान बनो
सोच लो तो इंसान बनो
आत्म भक्ति ही शक्ति का दर्पण दर्शाया
इंसानियत का धर्म सिखलाया
वही ज्ञानी महापुरुष
स्वामी विवेकानंद कहलाया
नव भारतवर्ष का निर्माण
नव आत्म ज्ञान की उत्पत्ति
सत हृदय ईश्वर की भक्ति
कर अग्रसर नवरक्त वाहकों को
एक उत्कृष्ठ राष्ट्र का बीड़ा उठाया
हां वही महात्मा इस जग का प्यारा
स्वामी विवेकानन्द कहलाया
स्वामी विवेकानंद पर कविता
गेरूआ वस्त्र, उन्नत मस्तक, कांतिमय शरीर ।
है जिनकी मर्मभेदी दृष्टि, निश्छल, दिव्य,धीर।।
युवा के उत्थान हेतु तेरे होते अलौकिक विचार ।
आपके विचार से चल रहा आज अखिल संसार।।
शिकागो में पुरी दुनिया को दिया धर्म का ज्ञान।
राजयोग और ज्ञानयोग हेतु, किए व्याख्यान।।
हे नरेन्द्र, परमहंस शिष्य ,स्वामी विवेकानंद।
आप सा युगवाहक,युगदृष्टा होते जग में चंद।।
हे महान तपस्वी मनस्वी, राष्ट्रभक्त, हे स्वामी।
हे दर्शनशास्री, अध्यात्म के अद्वितीय ज्ञानी।।
सृष्टि के गूढ़ रहस्यों को आत्मसात कर डाली।
हे महान! तुम ब्रह्मचारी विलक्षण प्रतिभाशाली।।
हे महामानव महात्मा, भारत के युवा संन्यासी ।
विश्व में जो पहचान दिलायें गर्व करे भारतवासी।।
स्वामी विवेकानंद कविताएं । Poem On Swami Vivekananda
अंधेरों में रहने वाला,
उजालों की बात कर लूं ,
स्वाभिमान भर लूं ।
सोए युवाओं को मैं राष्ट्रीय स्वर दूं ,
डगमग भंवर में नैया पतवार इनको कर दूं ।।
उठो युवाओ – – उठो किशोरों,
भारत- मां का मैला आँचल ,
तुम्हें करुण आवाज़ दे रहा ।
देखो सीमाओं पर अपनी ,
चीन-पाक है आँख दिखाता ।
भक्त सिंह का देश आज ,
हाथों में चूड़ी स्वांग रचाता ।
सेनाएं सीमा पर देखो ,
खेल रहीं हैं खूनी होली ।
मगर हमारे दिग्गज नेता ,
सजा रहे भाषण रंगोली ।
राजनीति में सत्ता- लोलुप ,
स्वाभिमान को क्या पहचानें ।
विश्व- पटल पर भारत लज्जित ,
यह तो वोट-बैंक पहचानें ।
उठो विवेकानंद सपूतो ,
भारत- मां के लाल उठो ।
थाम तिरंगे को हाथों में ,
अरि की छाती चीर उठो ।
शक्तिशाली शत्रु को केवल ,
वज्रपात समझा सकता है ।
सेना सर्व श्रेष्ठ है अपनी ,
शासनादेश फुसला सकता है
इच्छा-शक्ति राष्ट्र की दुर्बल
सांप सूंघ गया ज्यों इसको ।
तुम्ही झिंझोडो युवा शक्ति बन
संजीवनी- वोट से इसको ।
कर्णधार स्वाभिमान को भूले,
राणा प्रताप की याद दिलाओ
इतिहास भूल बैठे हैं नेता ,
आजादी का पाठ पढ़ाओ ।
भारत- मां के युवा सपूतों ,
विवेकानंद की नव आशाओं।
सौगंध आर्य संस्कृति की तुमको ,
घर-घर वैदिक संस्कृति लाओ
हम हिन्दू हैं कहो गर्व से ,
निज भाषा हिन्दी अपनाओ ।
ग्राम- वासिनी भारत – माता ,
वहां ज्ञान के दीप जलाओ ।
विवेकानंद की पुण्यतिथि पर,
भारत को उत्कृष्ट बनाओं ।
उनके सपनों के भारत की ,
ध्वजा पथिक जग में फहराओ ।।
स्वामी विवेकानंदइस अवसर पर समर्पित है मेरी चंद पंक्तियां
अमेरिका के शिकागो में भारत दर्शन परिचय सबसे कराया था।
देकर दिव्य व्याख्यान परचम भारत का उसने लहराया था।
धर्म अध्यात्म ज्ञान का योगी स्वामी युवा शक्ति को पहचाना।
करके स्थापना बेलूर मठ परमहंस को गुरु अपना बनाया था।
अब भी वक्त है सुधर जाओ वरना तुमको सुधार देंगे हम।
बन्द करो खूनी खेल वरना आतंकी खेल बिगाड़ देंगे हम।
बहुत हो चुका निर्दोषों का लहू बहाना अब संभल जाओ।
वरना घुसके घर में तुम्हारा तम्बू सारा उखाड़ देंगे हम।
स्वामी विवेकानंद पर हिंदी कविता । Best Kavita of Swami Vivekananda in Hindi
भारत यश फैलाने ने जग में,
ऐसा पूत सपूत हुआ ।
12 जनवरी 1863 में,
पैदा एक अवधूत हुआ।
विश्वनाथ दत्ता थे पिता ,
और भुनेश्वरी थी महतारी।
कोलकाता थी जन्मस्थली,
हर्ष हुआ जन-जन भारी ।।
चंचल बालक नाम नरेंद्र,
हमजोली सरताज थे।
कुश्ती लाठी मुक्केबाजी,
हर दिल के हमराज थे।।
साहित्य कला गणित विज्ञान,
अभिनय में प्रवीण हुए।
इतिहास दर्शन अंग्रेजी में,
वो ज्ञानी और गंभीर हुए ।।
मानव से महामानव बनता,
हर बाधा जो सहता है।
अग्नि में तप कर सोने का,
कुंदन सा रूप संवरता है।।
उसी तरह नर इंद्र में,
औचक विपदा आती है।
साया सिर से उठा पिता का
,माता भी स्वर्ग सिधाती है।।
इस दुख से दिल उद्विग्न हो,
मन ईश्वर में लग जाता है।
गुरु रामकृष्ण सा पा करके,
अध्यात्म से जुड़ जाता है।।
मानस पुत्र बन कर उनका,
तब नाम विवेकानंद हुआ।
धर्म कर्म का मर्म जगा,
जन सेवा सचिदानंद हुआ।।
अमेरिका के शिकागो में ,
भारत परचम लहरा दिया।
शुन्य से ब्रह्मांड बना,
वेदों का सार बता दिया।।
क्या है हिंदू क्या है हिंदी ,
समझे सब नर नारी है ।
वसुधा को परिवार समझते,
यही संस्कृति हमारी है।।
BEST Poem on Swami Vivekananda in Hindi
त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण,
कलयुग में कबीर और विवेकानंद
महापुरुष जन्म लेते हैं सदियों में,
सदियों तक रहती उनकी सुगंध
19वीं सदी ऋणी स्वामी जी की,
जिनने अध्यात्म का मिटाया अंतर्द्वंद
भारतीय वेदांत दुनिया में फैला कर,
धर्म पताका की बुलंद
भिक्षुक और सपेरों का कलंक मिटाया,
स्वाभिमान से कराया अनुबंध
40 वर्ष की छोटी सी उम्र में,
सदियों से फेले अंधियार मिटाएं
आओ सूरज को दिया दिखाएं,
विवेकानंद पर कलम चलाएं
स्वामी विवेकानंद की कविता
उठो, जागो और रुको मत,
सदी का रहा यह महान विचार
युवाओं के लिए प्रेरणा था यह नारा,
आज भी सर्वाधिक प्रेरणास्पद उदगार
100 युवा सन्यासियों की चाह रखी समाज से,
समाज का कर सके जो जीर्णोद्धार
दीन दुखियों को ही ईश्वर माना,
कुरीतियों पर सदा किया प्रहार
महिला शिक्षा के रहे हिमायती,
पर युवाओं के लिए तो ईश्वर अवतार
आज के युवा सीखें उनसे,
जो डॉलर की खातिर छोड़ देते हैं घर-परिवार
हावर्ड और कोलंबिया के प्रतिष्ठित ऑफर भी,
स्वामी जी ने नहीं किए स्वीकार
उनसा ही पुत्र प्राप्ति की इच्छुक महिला से,
स्वयं ही पुत्र बन मिसाल रखी शानदार
आधुनिक भारत का निर्माता माना सुभाष ने,
जिनने संस्कृति को दिया वैश्विक विस्तार
भारत जानने के लिए विवेकानंद पढ़ने का,
टैगोर ने किया सदा प्रचार
गांधी, नेहरू, पटेल से मोदी तक ने,
प्रेरणा पाई उनसे बार बार, हर बार
अन्ना हजारे के सिपाही से संत बनने का कारण,
हम सब पढ़ते, सुनते आए
आओ सूरज को दिया दिखाएं,
विवेकानंद पर कलम चलाएं
गांव पर सुंदर कविता हिंदी में । Poem On Village In Hindi 2023
स्वामी विवेकानंद जी की कविताएँ
स्वामी विवेकानंद द्वारा मूल कविता अंग्रेज़ी में लिखी गयी
जिसे मंजुला सक्सेना ने हिंदी में अनुवादित किया है।
जागो स्वर! उस गीत के जो जन्मा दूर कहीं,
सांसारिक मल जिसे छू न सके कभी,
गिरी कंदराओं में, सघन वनों की छायाओं में,
व्याप्त गहन शान्ति को, विषय वासना, यश, ऐश्वर्य
कर न सकें लेश भी भंग; उमड़े निर्मल-निर्झर जहां
आनंद का, जो जन्मे सत्य-ज्ञान से,
गाओ ऊंचे स्वर वही, सन्यासी निर्भीक, गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
तोड़ फेंको बेड़ियाँ! बंधन जो बांधे तुम्हे
चाहे स्वर्णिम कनक के या हों भद्दे धातु के,
प्रेम-घृणा; शुभ-अशुभ और अनेकों द्वन्द
जानो बंदी-बंदी है, चाहें चुम्बित या हो पीड़ित, नहीं कभी वह मुक्त,
क्यूंकि बेड़ी सोने की भी नहीं बध कमज़ोर,
तोड़ो फिर उनको सदा, सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
अन्धकार को दो विदा, मृगतृष्णा का राज्य
क्षणिक चमक देकर जो भरे विषाद-विषाद
जीवन की यह तृष्णा है, अविरत ऐसी प्यास
जो घसीटती जीव को जन्म-मरण; फिर मरण-जन्म के घात
जो अपने को जीत ले, उसके वश संसार, जानो यह
और न फंसो, सन्यासी निर्भीक, गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
‘जो बोया वह काटना’ कहते हैं और ‘कारण-वश है
कार्य ‘शुभ का शुभ; अशुभ का अशुभ; नहीं कोई
कर सकता अतिक्रमण नियम का इस,
किन्तु देह धारी सारे हैं निश्चित ही बद्ध, पूर्ण सत्य पर,
परे है नाम रूप से आत्म, सदा मुक्त, बंधन रहित
जानो तुम तो हो वही, सन्यासी निर्भीक, गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
नहीं जानते सत्य वे जो देखे स्वप्न निरीह
माने ‘स्व’ को तात, माँ, संतति, वामा, मित्र
लिंग रहित है आत्मा! कौन तात? कौन संतान?
आत्मा ही सर्वत्र है, नहीं और कुछ शेष
और वही तो हो तुम्हीं, सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
मात्र एक ही तत्व है- मुक्त-जिज्ञासु-आत्म
नाम नहीं; न रूप है, न कोई पहचान,
उसका स्वप्न प्रकृति है, सृष्टि स्वप्न समान
साक्षी सबका आत्मा उससे प्रकृति अभिन्न,
जानो तुम तो हो वही, सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
कहाँ खोजते हो भला? मुक्ति, मित्र यह विश्व
दे सकता तुम को नहीं, ग्रन्थ और मंदिर में
खोज तुम्हारी व्यर्थ; हाथ तुम्हारे ही सदा
मुक्ति की है डोर, छोड़ो रोना और फिर
त्यागो सारे मोह, सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
कहो – शांति हो हर तरफ ! डरे न मुझ से कोई,
जितने परितः प्राणी हैं वे जो ऊपर उड़ रहे
या रेंगे जो जीव, मैं ही तो सब में रमा
मोह भरे जीवन सभी यहाँ-वहां के त्यागो
स्वर्ग सभी, पृथ्वी, नरक, आशाएं और त्रास
तोड़ो सारे पाश ये, सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
मत सोचो-आगे देह साथ रहे या न
भोग इसे पूरा करना, कर्म बढ़ाते आयु
चाहे फूल माला मिले या घोर अपमान
देह को, प्रतिक्रिया से शून्य हो, दोष प्रशंसा है नहीं
जब प्रशंसक -प्रशंसित और दोषी- दोषित एक
यह जानो, हो शांत, सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
सत्य प्रकट न हो जहाँ है मल, यश, लालच
का कतिशय अस्तिव, नहीं पुरुष जो नारी को माने
अपनी भोग्या पासकता है पूर्णता
न वह जो संग्रह करे सामग्री न वह, जो क्रोधी है जा सके माया से पार
इसलिये त्यागो इन्हें सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
मत अपना घर को कहो, किस घर के तुम मित्र?
अम्बर की छत है तुम्हें, घास तुम्हारी खाट और खाने को?
जो दे समय! पका -अधपका, ना गुनो
न भोजन, न पेय ही छू सकते वह तेज
जो जागृत है आत्म में, बहती सरिता की तरह
तुम भी बहते जाओ सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
सत्य जानते कोई ही, शेष करेंगे द्वेष
व्यंग बाण जो साधते तुम पर तेजस्वी! ना दो कोई ध्यान
रहो अग्रसर, मुक्त, भ्रमण करो, दो सहयोग
जीते जो अज्ञान वश, माया से आक्रान्त, बिना विचारे
कष्ट-भय या खोजे ही आनंद
जाओ इन दोनों के पार
सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
ऐसे ही जीते रहो जब तक कर्म हों नाश
मुक्त करो आत्म को, जन्म की हो न आस
‘न मैं न तू न प्रभु, न ही मानव मान, मैं तो
सब कुछ हो चुका, मैं तो हूँ आनंद
जानो तुम तो हो वही, सन्यासी निर्भीक गाओ
ॐ तत्सत् ॐ
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