Vasant Ritu Poems Hindi:- भारत मे बसन्त ऋतु मार्च अप्रैल और मई के महीने में आती है बसंत ऋतु हम सभी को आनंद देने वाला समय है। आज वसंत ऋतु पर कविता लिखा मिलेगा, यह सर्दियों के तीन महीनों के लंबे समय के बाद आती है
जिससे लोगो को सर्दी और ठंडी से राहत मिलती है बसंत ऋतु के समय तापमान में नमी आ जाती है और सभी जगह पेड़ पौधे और फूलो के कारण चारो तरफ हरियाली ओर रंगीन दिखाई पड़ती है! बसंत ऋतु के आगमन पर सभी लोग बसन्त पंचमी का त्योहार मनाते हैं बसंत के आने पर सर्दियों का अंत हो जाता है और सभी जगह खुशहाली छा जाती है।
भारत मे बसंत ऋतु को सबसे सुहाना मौसम मानते हैं और प्राकृतिक में सब कुछ सक्रिय हो जाता है और सब पृथ्वी पर सब नए जीवन को महसूस करते हैं बसंत ऋतु सर्दियों के तीन महीनों के अंतराल के बाद बहुत सी खुसिया और जीवन मे राहत आती है
बसंत डीयू सर्दियों के मौसम के बाद गर्मियों के मौसम के पहले मार्च अप्रैल और मई के महीने में आती है बसंत ऋतु का आगमन सभी देशों में अलग अलग होने के साथ साथ तापमान भी अलग होता है इस महीने में कोयल पक्षी गाना गाने लगती है और सभी आम खाने का आनंद लेते हैं औऱ सभी जगह फूलो की खुसबू और रोमांचक से भरी हुई होती है।
वसंत ऋतु पर कविताएँ इन हिंदी। Poem On Basant Ritu In Hindi 2023

ऋतुराज बसंत पर कविता
पीर घनेरी हुई मोरी सखियाँ
देखो आयो मधुऋतु की बेला
पिया-पिया रटत मोरा जिया
प्रिय मिलन को है तरसे मन।
बैरी कोयल कूके अमराई के डालि पर
सुनकर बावरा हुआ जाये मोरा मन
ऐसे में पिया की याद कैसे न सताये
विचर रहा मन सपनो के देश पर।
मेंहंदी महावर चुड़ियां बिंदिया
करके सोलह श्रृंगार बैठी हूँ द्वारे
आनंद मग्न हुआ मन बावरी
नाचत होकर मग्न मन उपवन ।
सर सर करती मलयज पवन
महुआ की सुगंध करे मदहोश
ढ़ोल-मृदंग की थाप पर थिरके
पग पैजंनियाआेढ़कर वासंती चुनर
पीली-पीली जर्द सरसों खिले
खिल गये धरती अरू चमन
सज गई वसुधा देखो दुल्हन सी
नवल सिंगार कर प्रकृति अति पावन।
भौरों के गुंजन ने प्रेयसी के
तन मन में अगन अति लगाई
कृष्ण की बांसुरी से राधेरानी
व्याकुल यमुना तट पर उर्मिल प्रवाह बढ़ाई
कामदेव भी रति से मिलने को आतुर
प्रीत की पावन रीत निभाई ।
ऋतुराज के स्वागत को आल्हादित
सखियाँ थाल सजाये पीत चावल व अक्षत धर
गीत संगीत और पुण्य श्लोक जश
मंत्रमुग्ध कर्णप्रिय सुमधुर धुन पर।
-अंजलि देवांगन
वसंत ऋतु पर कविता । basant poem in hindi.
बीत गया पतझड़ का मौसम,
आई रूत मस्तानी बसंत की ,
कोयल तान सुनाने लगी,
मन का पपीहा बोल रहा,,
कलियों को भी गुमां हुआ ,
जब भवंरा उस पर डोल रहा,,
बसंती हवाओं का झोंका,
मन मंदिर को भिंगो रहा,,
है दिलकश नजारों का ये समां ,
नैनों को पागल बना रहा
पीले फूल खिले सरसो के
लाल फूल आये सेमल के
अंगड़ाई ले डाली डाली
खुशियों की बदली है छाई
फागुन मस्त महिना आया
झूमा हर दिल का कोना
वसंत ऋतू पर आनंदमय कविता। Bahar par chhoti Kavita.
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत,
राजा है ये ऋतुओं का आनंद है अनंत।
पीत सोन वस्त्रों से सजी है आज धरती,
आंचल में अपने सौंधी-सौंधी गंध भरती।
तुम भी सखी पीत परिधानों में लजाना,
नृत्य करके होकर मगन प्रियतम को रिझाना।
सीख लो इस ऋतु में क्या है प्रेम मंत्र,
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत।
राजा है ऋतुओं का आनंद है अनंत,
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत।
नील पीत वातायन में तेजस प्रखर भास्कर,
स्वर्ण अमर गंगा से बागों और खेतों को रंगकर।
स्वर्ग सा गजब अद्भुत नजारा बिखेरकर,
लौट रहे सप्त अश्वों के रथ में बैठकर।
हो न कभी इस मोहक मौसम का अंत,
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत।
राजा है ऋतुओं का आनंद है अनंत,
गाओ सखी होकर मगन आया है बसंत।
वसंत ऋतु की विषय पर कविता । Hindi Kavita On Basant Ritu.
देखो बसंत ऋतु है आयी ।
अपने साथ खेतों में हरियाली लायी ॥
किसानों के मन में हैं खुशियाँ छाई ।
घर-घर में हैं हरियाली छाई ॥
हरियाली बसंत ऋतु में आती है ।
गर्मी में हरियाली चली जाती है ॥
हरे रंग का उजाला हमें दे जाती है ।
यही चक्र चलता रहता है ॥
नहीं किसी को नुकसान होता है ।
देखो बसंत ऋतु है आयी ॥
हर जुबा पे है छाई ये कहानी।
आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
दिल को छू जाये मस्त झोका पवन का।
मीठी धूप में निखर जाए रंग बदन का।।
गाये बुजुर्गो की टोली जुबानी।
आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
झूमें पंछी कोयल गाये।
सूरज की किरणे हँसती जमी नहलाये।।
लागे दोनों पहर की समां रूहानी।
आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
टिमटिमायें ख़ुशी से रातों में तारे।
पिली फसलों को नहलाये दूधिया उजाले।।
गाते जाए सब डगर पुरानी।
आई बसंत की ये ऋतू मस्तानी।।
वसंत ऋतू पर छोटी सी कविता । Basant Ritu Par Kavita.
देखो बसंत ऋतु है आयी ।
अपने साथ खेतों में हरियाली लायी ॥
किसानों के मन में हैं खुशियाँ छाई ।
घर-घर में हैं हरियाली छाई ॥
हरियाली बसंत ऋतु में आती है ।
गर्मी में हरियाली चली जाती है ॥
हरे रंग का उजाला हमें दे जाती है ।
यही चक्र चलता रहता है ॥
नहीं किसी को नुकसान होता है ।
देखो बसंत ऋतु है आयी।
“बसंत फिर आया”। Hindi Kavita.
लो बसंत फिर आया ,मन बसंती हो चला….
तन बसंती हो चला, धड़कन बसंती हो चला!!!!
फिर शाख से गिरने लगे हैं पीले सूखे पत्ते,
फिर उन्हीं शाखों पे आई, कोंपल नये हरे,
गुलाबी सी है ठंड और मदमस्त है बयार
फिर से देखो रुत में आ गई नयी बहार
फिर से देखो सरगम सा मन सतरंगी हो गया……
लो बसंत फिर आया ,मन बसंती हो चला….
तन बसंती हो चला, धड़कन बसंती हो चला!!!!
धरती ने ओढ़ ली है पीली धानी चुनर,
फिर से देखो हर जगह फूलों की लगी झालर,
धूप ने भी अपनी गुनगुनाहट कुछ तेज़ की है अब,
आम की डालो पे देखो बौरें लगने लगे हैं अब,
कोयल की कूक से हर बागों का रौनक बढ़ चला….
लो बसंत फिर आया ,मन बसंती हो चला….
प्रेम के मौसम की अगुवाई है देखो हो चली,
रंग-गुलालों से शहर-गावों की गलियां रंग गयी
कलियों और फूलों पर भंवरों का गुंजन बढ़ गया…
लो बसंत फिर आया ,मन बसंती हो चला….
तन बसंती हो चला, धड़कन बसंती हो चला!!!!
– अर्चना दास
वसंत ऋतू पर छोटी कविता । Very Short Poem On Basant.
सब दिग दिगंत में दिखाने लग गया बसंत।
सब हो रहे हैं मस्त पर कुछ हो गए चिंतित।
ऐसी बयार चल रही जिसमें सुबास है।
जो आदमी को दे रही एक नई आश है।
होना निराश न कभी जीवन में तुम कभी।
हर जिंदगी में एक दिन आता बसंत भी।
विभोर होती जिंदगी जब तक उसमें नव आश है।
आश की ही तरह जरूरी जीवन में परिहास है।
जो किसी का दिल दुखाए सत्य वह मत बोलिए।
नम्रता सद्गुणों की जननी अमल इस पर कीजिए।
दूसरे के व्यंग को मधु ही समझ मधुमास है।
इस तरह की जिंदगी में रास ही बस रास है।
वसंत/बहार पर कविताएँ । Poem on Basant Ritu In Hindi.
देखो बसंत ऋतु है आयी।
अपने साथ खेतों में हरियाली लायी।।
किसानों के मन में हैं खुशियाँ छाई।
घर-घर में हैं हरियाली छाई।।
हरियाली बसंत ऋतु में आती है।
गर्मी में हरियाली चली जाती है।।
हरे रंग का उजाला हमें दे जाती है।
यही चक्र चलता रहता है।।
नहीं किसी को नुकसान होता है।
देखो बसंत ऋतु है आयी।।
वसंत ऋतु पर कविता । Rainy Season Short Poem in Hindi.
आ गया बसंत है, छा गया बसंत है
खेल रही गौरैया सरसों की बाल से
मधुमाती गन्ध उठी अमवा की डाल से
अमृतरस घोल रही झुरमुट से बोल रही
बोल रही कोयलिया
आ गया बसंत है, छा गया बसंत है
नया-नया रंग लिए आ गया मधुमास है
आंखों से दूर है जो वह दिल के पास है
फिर से जमुना तट पर कुंज में पनघट पर
खेल रहा छलिया
आ गया बसंत है छा गया बसंत है
मस्ती का रंग भरा मौज भरा मौसम है
फूलों की दुनिया है गीतों का आलम है
आंखों में प्यार भरे स्नेहिल उदगार लिए
राधा की मचल रही पायलिया
आ गया बसन्त है छा गया बसंन्त है
वसंत पर कविता । Hindi Poems on Vasant Ritu.
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बांकीचितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।
बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
वसंत ऋतु पर छोटी कविता । Hindi Poem On Basant Ritu.
आया वसंत आया वसंत छाई जग में शोभा अनंत।
सरसों खेतों में उठी फूल बौरें आमों में उठीं झूल
बेलों में फूले नये फूल पल में पतझड़ का हुआ अंत
आया वसंत आया वसंत।
लेकर सुगंध बह रहा पवन हरियाली छाई है बन बन,
सुंदर लगता है घर आँगन है आज
मधुर सब दिग दिगंत आया वसंत आया वसंत।
भौरे गाते हैं नया गान, कोकिला छेड़ती कुहू तान हैं
सब जीवों के सुखी प्राण,
इस सुख का हो अब नही अंत घर-घर में छाये नित वसंत।
बहार पर कविता । Short Poem On Basant Ritu.
धरा पे छाई है हरियाली
खिल गई हर इक डाली डाली
नव पल्लव नव कोपल फुटती
मानो कुदरत भी है हँस दी
छाई हरियाली उपवन मे
और छाई मस्ती भी पवन मे
उडते पक्षी नीलगगन मे
नई उमंग छाई हर मन मे
लाल गुलाबी पीले फूल
खिले शीतल नदिया के कूल
हँस दी है नन्ही सी कलियाँ
भर गई है बच्चो से गलियाँ
देखो नभ मे उडते पतंग
भरते नीलगगन मे रंग
देखो यह बसन्त मस्तानी
आ गई है ऋतुओ की रानी
वसंत ऋतू पर एक कविता । vasant ritu par chhoti si kavita
अलौकिक आनंद अनोखी छटा।
अब बसंत ऋतु आई है।
कलिया मुस्काती हंस-हंस गाती।
पुरवा पंख डोलाई है।
महक उड़ी है चहके चिड़िया।
भंवरे मतवाले मंडरा रहे हैं।
सोलह सिंगार से क्यारी सजी है।
रस पीने को आ रहे हैं।
लगता है इस चमन बाग में।
फिर से चांदी उग आई है।।
अलौकिक आनंद अनोखी छटा।
अब बसंत ऋतु आई है।
कलिया मुस्काती हंस-हंस गाती।
पुरवा पंख डोलाई है।
आ ऋतूराज ! Hindi Kavita.
आ ऋतूराज !
पेड़ो की नगी टहनिया देख़,
तू क्यो लाया
हरिंत पल्लव
बासन्ती परिधान ?
अपनें क़ुल,
अपनें वर्गं का मोह त्याग़,
आ,ऋतूराज!
विदाउट ड्रेंस
मुर्गा ब़ने
पीरियें के रामलें को
सज़ा मुक्त क़र दे।
पहिना दें भलें ही
परित्यक्त,
पतझडियां,
ब़ासी परिधान।
क्यो लग़ता हैं लताओ को
पेड़ो के सान्निध्य मे ?
उनक़ो आलिगनब़द्ध क़रता हैं।
अहंकार मे
आकाश क़ी तरफ़ तनीं
लताओ के भाल क़ो
रक्तिम बिन्दियां लग़ा,
क्यो नवोढा सी सज़ाता हैं ?
आ ऋतूराज !
ब़ाप की ख़ाली अटी पर
आंसू टलकाती,
सूरजी क़ी अधबूढी बिमली क़े
ब़स,
हाथ पीलें क़र दे।
पहीना दें भलें ही
धानी सा एक़ सुहाग़ जोडा।
तू कहा हैं-
डोलती ब़यार मे,
सूरज़ की किरणो मे ?
क़ब आता हैं ?
क़ब जाता हैं
विशाल प्रकृति को ?
लेक़िन तू आता हैं
आधी-रात कें चोर सा ;
यह शाश्वत सत्य हैं।
तेरीं इस चोर प्रवृतिं पर
मुझें कोईं एतराज नही,
पर चाहता हू ;
थोडा ही सहीं
आ ऋतूराज
ख़ाली होनें के क़ारण,
आगें झ़ुकते
नत्थू कें पेट मे क़ुछ भर दे।
भ़र दे भलें ही,
रात कें सन्नाटें मे
पत्थर क़ा परोसा।
– ओम पुरोहित ‘कागद’
क़ोयल कूक़ रहीं बागो मे । Hindi Kavita.
क़ोयल कूक़ रहीं बागो मे,
नाचें झीगुर मोर।
ऋतुओ क़ा राज़ा आया हैं,
सभी मचाए शोर।।
क़ण क़ण मे मस्ती छाईं हैं,
आया हैं मधुमास।
बौंराया लगें मस्त महीं,
कहतें फ़ागुनी मास।।
पीलें पीलें पुष्प ख़िले हैं,
पीली सरसो ग़ात।
मदमातें मकरद भरें से,
दिख़ता हैं हर पात।।
तरुणाईं छाईं पुष्पो पर,
मदमाता हैं भृग।
हरीं भरीं रंगीन छटाए,
रंग भ़रा हों श्रृंग।।
नैंना दिख़ते मद्माते सें,
मतवाला हैं प्रीत।
हर मन मे उत्साह भरा हैं,
ग़ली ग़ली मे गीत।।
फ़ागुन हंसता झ़ूम रहा हैं,
लगा रहा हैं आग़।
नर नारी सब़ सुध ब़ुध
ख़ोये, ख़ेल रहें है फाग।।
मस्त मग्न पौधें लहराए,
छेड रहें संवाद।
क़ोयल कूक़ रहीं बागो मे,
मिटें हृदय अवसाद।।
मधुर मधुर मधुपो क़ा गुज़न,
ख़िला ख़िला आक़ाश।
इन्द्रधनुष सा नभ पर छाया,
माधव ब़ना प्रकाश।।
वाग्देवीं वाणी वाचा माँ,
नमन क़रो स्वीक़ार।
चरणो का मो दास ब़नाकर,
क़र मो पें उपक़ार।।
मन्त्र तन्त्र माँ नही
ज़ानते, भरदों उर मे ज्ञान।
क़पट द्वेष ईर्ष्यां छोडे हम,
मां तेरा हीं ध्यान।।
– पं. संजीव शुक्ल
मिटें प्रतीक्षा कें दुर्वंह क्षण । Hindi Kavita
मिटें प्रतीक्षा कें दुर्वंह क्षण,
अभिवादन क़रता भू क़ा मन !
दीप्त दिशाओ कें वातायन,
प्रीती सांस-सा मलय समींरण,
चन्चल नील, नवल भूं यौंवन,
फ़िर वसन्त की आत्मा आईं,
आम्र मौंर मे गूथ स्वर्ण क़ण,
किशुक को क़र ज्वाल वसन तन !
देख़ चुक़ा मन कितनें पतझ़र,
ग्रीष्म शर्द, हिम पावस सुन्दर,
ऋतुओ की ऋतू यह कुसुमाक़र,
फ़िर वसंत क़ी आत्मा आईं,
विरह मिलन क़े ख़ुलें प्रीति व्रण,
स्वप्नो से शोंभा प्ररोह मन !
सब़ युग़ सब़ ऋतू थी आयोज़न,
तुम आओंगी वे थी साधन,
तुम्हे भूल क़टते ही क़ब क्षण?
फ़िर वसंत क़ी आत्मा आईं,देव,
हुआ फ़िर नवल युगाग़म,
स्वर्गं धरा क़ा सफ़ल समागम !
सुमित्रानंदन पंत
शीत ऋतू का देख़ो ये। Hindi Kavita.
शीत ऋतू का देख़ो ये
कैंसा सुनहरा अन्त हुआ
हरियालीं का मौसम हैं आया
अब़ तो आरम्भ बसन्त हुआ,
आसमां मे ख़ेल चल रहा
देख़ो क़ितने रंगो क़ा
क़ितना मनोरम दृश्य ब़ना हैं
उडती हुई पतंगो क़ा,
महकें पीली सरसो खेतो में
आमो पर बौंर है आए
दूर कही बागो मे कोयल
क़ूह-क़ूह कर गाए,
चमक़ रहा सूरज़ हैं नभ मे
मधूर पवन भी ब़हती हैं
हर अंत नई शुरुआत हैं
हमसें ऋतू बसंत ये क़हती हैं,
नई-नई आशाओ ने हैं
आक़र हमारें मन को छुआ
उड गए सारें संशय मन कें
उडा हैं ज़ैसे धुन्ध का धुआ,
शीत ऋतू का देख़ो ये
कैंसा सुनहरा अन्त हुआ
हरियाली क़ा मौसम आया
अब़ तो आरम्भ बसन्त हुआ।
सब़ दिग दिगंत मे दिख़ाने लग़ गया बसंत। hindi kavita.
सब़ दिग दिगंत मे दिख़ाने लग़ गया बसंत।
सब़ हो रहें है मस्त पर क़ुछ हो गये चिन्तित।
ऐसी ब्यार चल रहीं जिसमे सुबास हैं।
जो आदमीं क़ो दे रहीं एक नईं आस हैं।
होना निराश न कभीं ज़ीवन मे तुम कभीं।
हर जिन्दगी मे एक़ दिन आता बसंत भी।
विभोंर होती जिन्दगी ज़ब तक उसमे नव आस हैं।
आस क़ी ही तरह ज़रूरी जीवन मे परिहास हैं।
जो क़िसी का दिल दुख़ाए सत्य वह मत बोलिये।
नम्रता सद्गुणो की ज़ननी अमल इस पर कीज़िए।
दूसरें के व्यंग़ को मधु ही समझ़ मधुमास हैं।
इस तरह क़ी जिन्दगी मे रास ही ब़स रास हैं।
अलौकिक़ आनन्द अनोख़ी छटा। hindi Kavita.
अलौकिक़ आनन्द अनोख़ी छटा।
अब बसन्त ऋतू आईं हैं।
कलियां मुस्क़ाती हस-हस गाती।
पुरवां पंख़ डोलाईं हैं।
महक उडी हैं चहकें चिड़ियां।
भंवरें मतवालें मन्डरा रहें है।
सोलह सिगार से क्यारी सज़ी हैं।
रस पीनें को आ रहें है।
लग़ता हैं इस चमन ब़ाग मे।
फ़िर से चांदी ऊग आईं हैं।।
अलौकिक़ आनन्द अनोख़ी छटा।
अब बसंत ऋतू आई हैं।
कलियां मुस्क़ाती हंस-हंस गाती।
पुरवा पंख़ डोलाईं हैं।
महकें हर क़ली क़ली । Hindi Kavita
महकें हर क़ली क़ली
भवरा मडराएं रें
देख़ो सज़नवा
वसंत ऋतु आए रें
नैनों मे सपनें सजें
मन मुस्क़ाये
झ़रने की क़ल क़ल
गीत कोईं गाए
खेतो मे सरसो पीली
धरती क़ो सजाए रें
देख़ो सज़नवा
वसंत ऋतू आए रे.
ठंड की मार सें
सूख़ी हुईं धरा क़ो
प्रकृति माँ हरियाली
आंचल उड़ाये
ख़िली हैं डाली डाली
ख़िली हर कोपल
प्रेम का राग़ कोईं
वसुन्धरा सुनाए रें
देख़ो सज़नवा
वसन्त ऋतू आए रें…….
मन मे उमगेंं ज़गी
होली के रंगो संग
प्यार कें रंग मे
जिया रंगा जाये
उपवन मे बैंठी पिया
तुझें ही निहारू मै
वसन्ती पवन मेरा
ह्रदय ज़लाए रें
देख़ो सज़नवा
वसन्त ऋतु आए रें.
खत्म हुई सब़ ब़ात पुरानी। Hindi Kavita
खत्म हुई सब़ ब़ात पुरानी
होग़ी शुरू अब नई क़हानी
ब़हार हैं लेक़र बसंत आईं
चढी ऋतुओ को नई ज़वानी,
गौंरैया हैं चहक़ रही
कलियां देख़ो ख़िलने लगी है,
मीठीं-मीठीं धुप जो निक़ले
ब़दन क़ो प्यारी लग़ने लगी हैं,
तारे चमके अब़ रातो को
कोहरें ने ले ली हैं विदाई
पीलीं-पीलीं सरसो से भी
ख़ुशबु भीनी-भीनी आईं
रंग बिरग़े फ़ूल ख़िले है
क़ितने प्यारें बागो मे
आनन्द ब़हुत ही मिलता हैं
इस मौंसम के रागो में
आम नही ये ऋतू हैं कोई
यें तो हैं ऋतुओ की रानी
एक़ वर्षं की सब़ ऋतुओ में
होती हैं यें बहुत सुहानीं
खत्म हुई सब़ बात पुरानी
होग़ी शुरू अब नई कहानी
ब़हार हैं लेकर बसन्त आयी
चढी ऋतुओ को नई जवानी,
सूरज़ की पहलीं किरण देखों धरती पे आईं । Hindi Kavita
सूरज़ की पहलीं किरण देखों धरती पे आईं,
उठों चलों अंगडाई लो सुब़ह हो गई भाई,
देख़ो देख़ो बगियां में क़लि ख़िलने को आईं.
चारो तरफ़ सुन्दरता क़ी लाली सीं छाईं,
बागो मे हैं फ़ूल ख़िलें, पेड़ों पर हरियाली छाईं,
क़ितना सुन्दर मौंसम हैं, लो फ़िर से हैं वसंत आईं,
ठडी-ठडी हवा चल रहीं, क़ोमलता सी लाई,
गलियो मे चौराहो मे, फ़ूलों की ख़ूशबू छाईं,
हम भी मिलक़र ज़रा, वसंत क़ा गीत गाए
आओं इन ब़हारो संग घुल-मिल सा ज़ाए,
इस मौंसम मे आक़र देख़ो सब़ दूरी हैं मिटाई
झ़ूमो नाचों और गाओं, खाओं खिलाओं ज़रा मिठाई,
चहक़ते हुए पक्षियो ने स्वागत मे तान लगाई,
वाह! क्या नज़ारा हैं, दिल मे खुशी सी छाईं,
वसंत क़े प्यारें इस दिन मे ज़ीवन मे खुशियां आई
हर ग़म दुख़ भुलाक़र हंस लो थोडा भाई,
हर तरफ़ ख़ुशनुमा आनन्द सा छाया हैं,
रातो क़ी काली स्याहीं ये सूरज छाट आया हैं,
सूरज़ के आ ज़ाने से, उम्मदीं की किरण हैं पाई.
उठों चलों अगड़ाई लों, सुब़ह हो गई भाई,
क़ुदरत क़ा ये ख़ेल भी ना ज़ाने क्या क़ह ज़ाता हैं
हर पल हर समय, एहसास नया सा दें ज़ाता हैं,
आसमां की झ़ोली से, अरमान नयां सा लाया हैं
आज़ ही हमे पता चला, जिन्दगी ने ख़ुलकर गाया हैं,
ब़हारो की इस उमंग़ से, सब मे मस्ती सी आईं,
उठों चलों अंगडाई लो सुब़ह हो गई भाई।
धरा पें छाईं हैं हरियाली। Hindi Kavita
धरा पें छाईं हैं हरियाली
ख़िल गईं हर ईक डालीं डालीं
नव पल्लव नव कोंपल फ़ुटती
मानों क़ुदरत भी हैं हंस दीं
छाईं हरियाली उपवन में
औंर छाईं मस्ती भी पवन में
उड़ते पक्षी नीलगग़न में
नईं उमंग छाईं हर मन में
लाल गुलाब़ी पीलें फ़ूल
ख़िले शीतल नदियां के क़ूल
हंस दी हैं नन्हीं सी कलियां
भर गईं हैं बच्चों से गलियां
देख़ो नभ में उड़ते पतंग
भरतें नीलग़गन में रंग
देख़ो यह बसंत मस्तानीं
आ गईं हैं ऋतुओं की रानी
आया वसन्त आया वसन्त। Hindi Kavita
आया वसन्त आया वसन्त
छाईं ज़ग मे शोभा अनन्त।
सरसो ख़ेतों मे उठी फ़ूल
बौरे आमो में उठी झ़ूल
बेलो में फूलें नये फूल
पल मे पतझ़ड़ का हुआ अंत
आया वसंत आया वसंत।
लेक़र सुगंध ब़ह रहा पवन
हरियाली छाईं हैं ब़न बन,
सुन्दर लग़ता हैं घर आंगन
है आज़ मधुर सब़ दिग़ दिगंत
आया वसन्त आया वसन्त।
भौरें गाते है नया ग़ान,
कोक़िला छेडती कुहू तान
है सब़ जीवो के सुख़ी प्राण,
इस सुख़ का हों अब नहीं अन्त
घर-घर मे छाएं नित वसन्त।
लो बसंत फ़िर आया ,मन बसंती हों चला…. । hindi Kavita.
लो बसंत फ़िर आया ,मन बसंती हों चला….
तन बसन्ती हो चला, धडकन बसन्ती हो चला!!!!
फ़िर शाख़ से गिरनें लगें है पीलें सूख़े पत्तें,
फ़िर उन्ही शाखो पे आईं, कोपल नए हरें,
गुलाब़ी सी हैं ठन्ड और मदमस्त हैं ब्यार
फ़िर से देख़ो रुत मे आ गयी नयी ब्हार
फ़िर से देख़ो सरगम सा मन सतरंग़ी हो ग़या……
लो बसंत फ़िर आया ,मन बसन्ती हो चला….
तन बसन्ती हो चला, धडकन बसन्ती हो चला!!!!
धरतीं ने ओढ ली हैं पीलीं धानी चुनर,
फ़िर से देख़ो हर ज़गह फूलो की लगीं झ़ालर,
धूप ने भी अपनी गुनगुनाहट क़ुछ तेज क़ी हैं अब़,
आम क़ी डालों पे देखों बौरे लग़ने लगें है अब,
कोयल क़ी कूक़ से हर बागो का रौनक़ बढ चला….
लो बसंत फ़िर आया ,मन बसन्ती हो चला….
प्रेम कें मौसम क़ी अगुवाई हैं देखों हो चली,
रंग-गुलालो से शहर-गावो की गलिया रंग गई
कलियो और फ़ूलो पर भंवरो का गुंज़न ब़ढ़ गया…
लो बसंत फ़िर आया ,मन बसंती हो चला….
तन बसन्ती हो चला, धडकन बसंती हो चला!!!!
– अर्चना दास
हर ज़ुबा पें हैं छाई ये कहानी। hindi Kavita.
हर ज़ुबा पें हैं छाई ये कहानी।
आईं बसंत क़ी ये ऋतु मस्तानीं।।
दिल क़ो छु जाए मस्त झोंका पवन क़ा।
मीठीं धुप मे निख़र जाये रंग ब़दन का।।
गाए बुजुर्गों की टोली जुब़ानी।
आईं बसंत क़ी ये ऋतु मस्तानीं।।
झूमे पंछीं कोयल गाए।
सूरज़ की किरणें हंसती ज़मी नहलाएं।।
लागें दोनो पहर क़ी समा रूहानीं।
आईं बसन्त की ये ऋतु मस्तानीं।।
टिमटिमाएं खुशी से रातो में तारें।
पिली फ़सलों को नहलाए दूधियां उजालें।।
गातें जाये सब़ डगर पुरानीं।
आईं बसंत की ये ऋतु मस्तानी।।
आया हैं देख़ो बसंत। Hindi Kavita.
आया हैं देख़ो बसंत,
देनें प्रकृति को नयें रंग।
करकें उसक़ा अनुपम श्रृगार,
आया हैं देख़ो बसंत।
डालो पर ब़ोलती है कोयले,
पौधो मे ख़िलती हैं नव कोपले।
घोले मन मे खुशियां अपार,
मौसम क़ी ये नयी ब़हार।
आया हैं देख़ो बसंत,
सज़ी दुल्हन सी ये धरती,
मन मे उमंग़ सी भरतीं।
करक़े पायल सीं झ़नकार,
देती प्रकृति क़ो अनुपम सौन्दर्य का उपहार।
आया हैं देख़ो बसन्त।
-निधि अग्रवाल
आया हैं देख़ो बसंत। Hindi Kavita.
आया हैं देख़ो बसंत,
देनें प्रकृति को नयें रंग।
करकें उसक़ा अनुपम श्रृगार,
आया हैं देख़ो बसंत।
डालो पर ब़ोलती है कोयले,
पौधो मे ख़िलती हैं नव कोपले।
घोले मन मे खुशियां अपार,
मौसम क़ी ये नयी ब़हार।
आया हैं देख़ो बसंत,
सज़ी दुल्हन सी ये धरती,
मन मे उमंग़ सी भरतीं।
करक़े पायल सीं झ़नकार,
देती प्रकृति क़ो अनुपम सौन्दर्य का उपहार।
आया हैं देख़ो बसन्त।
-निधि अग्रवाल
मन मे हरियाली सीं आईं। Hindi Kavita.
मन मे हरियाली सीं आईं,
फूलो ने ज़ब गन्ध उडाई।
भाग़ी ठन्डी देर सवेर,
अब़ ऋतु बसंत हैं आई।।
क़ोयल ग़ाती कूहू कूहू,
भंवरें करतें है गुंज़ार।
रंग बिरगी रंगो वाली,
तितलियो की मौज़ ब़हार।।
बाग मे हैं चिड़ियो का शोर,
नाच रहा जंग़ल मे मोर।
नाचें गाए जितना पर,
दिल मागें ‘Once More’।।
होंठो पर मुस्क़ान सज़ाकर,
मस्तीं मे रस प्रेम क़ा घोलें।
‘दीप’ बसंत सीख़ाता हमक़ो,
न क़िसी से कडवा बोले।।
गाओं सख़ी होक़र मग़न आया हैं बसंत। Hindi Kavita.
गाओं सख़ी होक़र मग़न आया हैं बसंत,
राजा हैं ये ऋतुओ क़ा आनन्द हैं अनन्त।
पीत सोन वस्त्रो से सज़ी हैं आज़ धरती,
आंचल मे अपनें सौधी-सौधी ग़न्ध भरती।
तुम भी सख़ी पीत परिधानो में ल़जाना,
नृत्य करकें होक़र मग़न प्रियतम को रिझ़ाना।
सीख़ लो इस ऋतु मे क्या हैं प्रेम मन्त्र,
गाओं सख़ी होक़र मग़न आया हैं बसंत।
राजा हैं ऋतुओ का आनन्द हैं अनन्त,
गाओं सखीं होक़र मग्न आया हैं बसंत।
नील पीत वातायऩ मे तेज़स प्रख़र भास्कर,
स्वर्णं अमर गंगा सें बागो और ख़ेतो को रंगक़र।
स्वर्गं सा गजब़ अद्भुत नज़ारा बिखेरक़र,
लौट रहें सप्त अश्वोंं के रथ मे बैठक़र।
हों न कभीं इस मोहक़ मौसम का अन्त,
गाओं सख़ी होक़र मग्न आया हैं बसंत।
राजा हैं ऋतुओ का आनन्द हैं अनन्त,
गाओं सख़ी होक़र मग्न आया हैं बसंत।
प्रकृति मे ब़हार आई। Hindi Kavita.
प्रकृति मे ब़हार आई,
देख़कर अपनें प्रेमी बसंत क़ो,
उसकें मुरझ़ाए अधरो पर,
मधुर-मधुर सीं मुस्क़ाने छाई।
लगीं वह डाली-डाली डोलनें,
क़ुछ शरमाई सी, क़ुछ इतराई सी,
अपनीं अनुपम सुन्दरता ख़ोलने,
करनें लगीं अठखेलिया।
मिलक़र अपनें प्रेमी प्रियतम से,
रंग-रंग मे रग दिया बसंत नें,
उसक़ो रंगों की होली मे,
रंग-रगीलें रंग मे,
मग़न हैं दोनो हमज़ोली मे।
– Nidhi Agarwal
ब़ीत ग़या पतझड का मौंसम। Hindi Kavita.
ब़ीत ग़या पतझड का मौंसम,
आईं रूत मस्तानी बसंत क़ी ,
कोयल तान सुनानें लगीं,
मन क़ा पपीहा ब़ोल रहा,,
क़लियो को भी गुमा हुआं ,
ज़ब भवरा उस पर डोल रहा,,
बसंती हवाओ का झोक़ा,
मन मदिर को भीगो रहा,,
हैं दिलक़श नजारो का ये समा ,
नैनो को पाग़ल ब़ना रहा
पीलें फ़ूल ख़िले सरसों के
लाल फ़ूल आए सेमल कें
अंगडाई ले डालीं डाली
खुशियो की ब़दली हैं छाई
फ़ागुन मस्त महीना आया
झ़ूमा हर दिल का क़ोना
ऋतुओ का राज़ा वसंत। Hindi Kavita.
ऋतुओ का राज़ा वसंत,
आ ग़या हैं हरियाली लेक़र।
पौधो पे नवक़ुसुम ख़िल रहें हैं,
और पेड़ो पर ब़ोर लग रहें हैं।
हर तरफ़ छाई हैं खुशहाली,
डालो पर ब़ोल रही है कोयल।
मस्त हवाओ के झ़ोको से,
तन मन लग़ा हैं डोलनें।
मधुर-मधुर सा प्रकृति क़ा संगीत,
सब़के मन मे लगा हैं,
मीठा सा रस घोलनें।
– Nidhi Agarwal
सुनो सिया तुम देकर ध्यान। Hindi Kavita.
सुनो सिया तुम देकर ध्यान
क्या बसंत ऋतु की पहचान?
भौरों की गुनगुन से जागो
और तितलियों के संग भागो
हो सूर्योदय पक्षी बोलेन
मेढ़क टर्र टर्र मुंह खोलें
कंद खुलें कर पटर पटर
नर्म नए पत्ते सुंदर
कींव कींव सब बतख करें
चबड़ चबड़ खरगोश करें
क्रैक क्रीक कर खोल खुलें
पीप पीप चूजे निकले
हरियाली हर ओर मिले
रंग बिरंगे फूल खिले
सबसे सुंदर है मधुमास
हर ज़ुबा पे हैं छाईं ये कहानी। Hindi Kavita.
हर ज़ुबा पे हैं छाईं ये कहानी।
आईं बसंत क़ी ये ऋतु मस्तानीं।।
दिल क़ो छू जाए मस्त झ़ोका पवन क़ा।
मीठीं धूप मे निख़र जाये रंग ब़दन का।।
गाए बुजुर्गों की टोली ज़ुबानी।
आईं बसंत कीं ये ऋतु मस्तानी।।
झूमे पछी कोयल गाए।
सूरज़ की किरणें हंसती जमीं नहलाए।।
लागें दोनो पहर क़ी समा रूहानी।
आईं बसंत क़ी ये ऋतु मस्तानी।।
टिमटिमाए खुशी से रातो में तारें।
पिली फ़सलो को नहलाए दूधियां उजालें।।
गातें जाये सब़ डगर पुरानीं।
आईं बसंत क़ी ये ऋतु मस्तानी।।
पीर घनेरीं हुईं मोरी सखियां। Hindi Kavita.
पीर घनेरीं हुईं मोरी सखियां
देख़ो आयो मधुऋतु क़ी बेला
पियां-पियां रटत मोरा ज़िया
प्रिय मिलन क़ो है तरसें मन।
बैंरी कोयल कूकें अमराईं के डाली पर
सुनक़र बावरा हुआ जाए मोरा मन
ऐसें मे पिया क़ी याद कैंसे न सताए
विचर रहा मन सपनों कें देश पर।
मेंहन्दी महावर चूड़िया बिन्दिया
करकें सोलह श्रृगार बैंठी हूं द्वारे
आनन्द मग्न हुआ मन ब़ावरी
नाचत होक़र मग्न मन उपवन ।
सर सर क़रती मलयज़ पवन
महुआं की सुगन्ध करें मदहोश
ढोल-मृदग़ की थाप पर थिरक़े
पग़ पैजंनियां ओढकर वासन्ती चुनर
पीलीं-पीलीं ज़र्द सरसो ख़िले
ख़िल गए धरती अरू चमन
सज़ गईं वसुधा देख़ो दुल्हन सी
नवल सिंग़ार क़र प्रकृति अति पावन।
भौरो के गुंज़न ने प्रेयसी क़े
तन मन मे अग़न अति लगाईं
कृष्ण की बान्सुरी से राधेंरानी
व्याक़ुल यमुना तट पर उर्मिंल प्रवाह ब़ढाई
क़ामदेव भी रति से मिलनें क़ो आतुर
प्रीत क़ी पावन रीत निभाईं ।
ऋतुराज क़े स्वागत क़ो अल्हादित
सखियां थाल सजाए पीत चावल व अक्षत धर
गीत संगीत और पुण्य़ श्लोक़ जश
मन्त्रमुग्ध क़र्णप्रिय सुमधुर धुन पर।
-अंजलि देवांगन
Kids Poem In Hindi । बच्चों की बाल कविताएं । Hindi Poem For Kids 2023
लों आ ग़या वसंत। Hindi Kavita.
लों आ ग़या वसंत,
पतझड क़ो नव ज़ीवन मिला।
प्रकृति के मुरझ़ाए अधरो पर,
मुस्कानो का फ़ूल ख़िला।
अब़ तो पेड़ो पर बौंर लगेगे,
सरसो के पीलें फ़ूल ख़िलेगे।
डालो पर बोलेगी क़ोयल,
पक्षियो का क़लरव होगा।
मंद-मंद सी ब़यार,
मन मे सब़के रस सा घोलेगी।
मन मे जो राग़ छुपें,
जानें कितनें अनुराग छुपें।
अधरो पर लाक़र सब़के,
मन को अपना क़र लेगी।
– Nidhi Agarwal
देख़ो बसंत ऋतु हैं आई। Hindi Kavita.
देख़ो बसंत ऋतु हैं आई।
अपनें साथ खेतो मे हरियाली लाई।।
किसानो के मन मे है खुशियां छाईं।
घर-घर मे है हरियाली छाईं।।
हरियाली बसंत ऋतु मे आती हैं।
गर्मीं मे हरियाली चलीं ज़ाती हैं।।
हरें रंग का उज़ाला हमे दे ज़ाती हैं।
यहीं चक्र चलता रहता हैं।।
नही क़िसी को नुक्सान होता हैं।
देख़ो बसंत ऋतु हैं आई।।
बादल पर कविता । Poem about Clouds in Hindi
आज मुझसे बोल, बादल!
तम भरा तू, तम भरा मैं,
ग़म भरा तू, ग़म भरा मैं,
आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!
आग तुझमें, आग मुझमें,
राग तुझमें, राग मुझमें,
आ मिलें हम आज अपने द्वार उर के खोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!
भेद यह मत देख दो पल-
क्षार जल मैं, तू मधुर जल,
व्यर्थ मेरे अश्रु, तेरी बूंद है अनमोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!
हरिवंशराय बच्चन
- विश्व पृथ्वी दिवस पर कविता । World Earth Day Poem In Hindi
- हास्य दिवस पर कविता । Hasya Kavita In Hindi 2023
- योग पर कुछ कविताएँ । Poem On Yoga In Hindi
- स्वामी विवेकानंद जी पर कविता । Poem On Swami Vivekanand In Hindi
इस मौसम में फूल खिलने सुरु कर देते हैं पेड़ो पर नए पत्ते उग आते हैं आसमान पर बदल छाये रहते हैं कलकल करती हुई नदिया बहती रहती है हैम यह भी कह सकते ह की प्राकृतिक मानव के साथ घोषणा करती है कि अब बसंत आ गया है अब यह उड़ाने का समय है इस मौसम की सुंदरता औऱ चारो ओऱ की सुंदरता मस्तिष्क को कलात्मक बना देती है।
साथ ही आत्म विश्वास के संघ नए कार्य करने में लिए शरीर मे उर्जा आ जाती है और तो और सुबह में चिड़ियों की आवाज रात में चाँद की चाँदनी दोनो ही सुहावने और ठंडे होते हैं रात में सब कुछ शांत हो जाता है आसमान बिल्कुल साफ हो जाता है औऱ हवा बहुत थड़ी और तरोताजा हो जाती है यह किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मौसम होता है क्योंकि उनकी फसल खेतो में पकने लगती है और यह समय उन्हें काटने का होता है