जादुई धागा वाली परी की कहानी । Pariyon Ki Kahani

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परी की कहानी (Fairy tales in hindi) : रमेश क्लास 8 का स्टूडेंट था . वह जब क्लास में होता तब बाहर खेलने के बारे में सोचता और जब खेलने का मौका मिलता तो वो कहीं घूमने के बारे में सोचता…इस तरह वह कभी भी प्रेजेंट मोमेंट को एन्जॉय नहीं करता बल्कि कुछ न कुछ आगे का सोचा करता . उसके घर वाले और दोस्त भी उसकी इस आदत से परेशान थे.

एक बार रमेश अकेले ही पास के जंगलों में घूमने निकल गया . थोड़ी देर चलने के बाद उसे थकान हो गयी और वह वहीं नरम घासों पर लेट गया . जल्द ही उसे नींद आ गयी और वह सो गया .

सोने के कुछ देर बाद एक आवाज़ आई-“ रमेश…रमेश…”

रमेश ने आँखें खोलीं तो सफ़ेद वस्त्रों में एक परी खड़ी थी . वह बहुत सुन्दर थी और उसने अपने एक हाथ में जादुई छड़ी ले रखी थी, और दुसरे हाथ में एक मैजिकल बॉल थी जिसमे से एक सुनहरा धागा लटक रहा था .

रमेश परी को देखकर ख़ुशी से झूम उठा और कुछ देर परी से बातें करने के बाद बोला, “आपके हाथ में जो छड़ी है उसे तो मैं जानता हूँ पर आपने जो ये बॉल ली हुई है उससे ये सुनहरा धागा कैसा लटक रहा है?”

परी मुस्कुराई, “रमेश, यह कोई मामूली धागा नहीं; दरअसल यह तुम्हारे जीवन की डोर है! अगर तुम इसे हल्का सा खींचोगे तो तुम्हारे जीवन के कुछ घंटे कुछ सेकंड्स में बीत जायेंगे, यदि इसे थोड़ा तेजी से खींचोगे तो पूरा दिन कुछ मिनटों में बीत जाएगा और अगर तुम उसे पूरी ताकत से खींचोगे तो कई साल भी कुछ दिनों में बीत जायेंगे .”

तो क्या आप ये मुझे दे सकती हैं?”, रमेश ने उत्सुकता से पूछा.

“हाँ-हाँ, क्यों नहीं , ये लो…पकड़ो इसे…पर ध्यान रहे एक बार अगर समय में तुम आगे चले गए तो पीछे नहीं आ सकते .”, “ परी ने जीवन की डोर रमेश के हाथों में थमाते हुए कहा और फ़ौरन अदृश्य हो गयी .

अगेल दिन रमेश क्लास में बैठा खेलने के बारे में सोच रहा था, पर टीचर के रहते वो बाहर जाता भी तो कैसे ?

तभी उसे परी द्वारा दी गयी सुनहरे धागों वाली बॉल का ख्याल आया . उसने धीरे से बॉल निकाली और डोर को जरा सा खींच दिया…कुछ ही सेकंड्स में वह मैदान में खेल रहा था .

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pari storyline

वाह मजा आ गया!”, रमेश ने मन ही मन सोचा!

फिर वह कुछ देर खेलता रहा, पर मौजूदा वक्त में ना जीने की अपनी आदत के अनुसार वह फिर से कुछ ही देर में ऊब गया और सोचने लगा ये बच्चों की तरह जीने में कोई मजा नहीं है क्यों न मैं अपने जीवन की डोर को खींच कर जवानी में चला जाऊं .

और झटपट उसने डोर कुछ तेजी से खींच दी .

रमेश अब एक शादी-शुदा आदमी बन चुका था और अपने दो प्यारे-प्यारे बच्चों के साथ रह रहा था . उसकी प्यारी माँ जो उसे जान से भी ज्यादा चाहती थीं, अब बूढी हो चुकी थीं, और पिता जो उसे अपने कन्धों पर बैठा कर घूमा करते थे वृद्ध और बीमार हो चले थे.

इस परिवर्तन से रमेश अपने माता-पिता के लिए थोड़ा दुखी ज़रूर था पर अपना परिवार और बच्चे हो जाने के कारण उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था . एक-दो महीनो सब ठीक-ठाक चला पर रमेश ने कभी अपने वर्तमान को आनंद के साथ जीना सीखा ही नहीं था .

कुछ दिन बाद वह सोचने लगा- “ मेरे ऊपर परिवार की कितनी जिम्मेदारी आ गयी है, बच्चों को संभालना इतना आसान भी नहीं ऊपर से ऑफिस की टेंशन अलग है . माता-पिता का स्वाथ्य भी ठीक नहीं रहता… इससे अच्छा तो मैं रिटायर हो जाता और आराम की ज़िन्दगी जीता .”

और यही सोचते-सोचते उसने जीवन की डोर को पूरी ताकत से खींच दिया .

कुछ ही दिनों में वह एक 80 साल का वृद्ध हो गया . अब सब कुछ बदला चुका था, उसके सारे बाल सफ़ेद हो चुके थे, झुर्रियां लटक रही थीं, उसके माता-पिता कब के उसे छोड़ कर जा चुके थे, यहाँ तक की उसकी प्यारी पत्नी भी किसी बीमारी के कारण मर चुकी थी. वह घर में बिलकुल अकेला था बस कभी-कभी दुसरे शहरों में बसे उसके बच्चे उससे बात कर लेते .

लाइफ में पहली बार रमेश को एहसास हो रहा था कि उसने कभी अपनी ज़िन्दगी को एन्जॉय नहीं किया…उसने न स्कूल डेज़ में मस्ती की न कभी कॉलेज का मुंह देखा, वह न कभी अपनी पत्नी के साथ कहीं घूमने गया और ना ही अपने माता-पिता के साथ अच्छे पल बिताये… यहाँ तक की वो अपने प्यारे बच्चों का बचपन भी ठीक से नहीं देख पाया… आज रमेश बेहद दुखी था अपना बीता हुआ कल देखकर वह समझ पा रहा था कि अपनी बेचैनी और व्याकुलता में उसने जीवन की कितनी सारी छोटी-छोटी खुशियाँ यूँही गवां दीं .

आज उसे वो दिन याद आ रहा था जब परी ने उसे वो मैजिकल बॉल दी थी…एक बार फिर वह उठा और उसी जंगल में जाने लगा और बचपन में वह जिस जगह परी से मिला था वहींमायूस बैठ अपने आंसू बहाने लगा .

तभी किसी की आवाज़ आई, “ रमेश……रमेश”

रमेश ने पलट कर देखा तो एक बार फिर वही परी उसके सामने खड़ी थी.

परी ने पूछा, “क्या तुमने मेरा स्पेशल गिफ्ट एन्जॉय किया ?”

“पहले तो वो मुझे अच्छा लगा, पर अब मुझे उस गिफ्ट से नफरत है .”, रमेश क्रोध में बोला, “ मेरी आँखों के सामने मेरा पूरा जीवन बीत गया और मुझे इसका आनंद लेने का मौका तक नहीं मिला . हाँ, अगर मैं अपनी ज़िन्दगी नार्मल तरीके से जीता तो उसमे सुख के साथ दुःख भी होते पर मैजिकल बॉल के कारण मैं उनमे से किसी का भी अनुभव नहीं कर पाया . मैं आज अन्दर से बिलकुल खाली महसूस कर रहा हूँ…मैंने ईश्वर का दिया ये अनमोल जीवन बर्वाद कर दिया .”, रमेश निराश होते हुए बोला .

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“ओह्हो…तुम तो मेरे तोहफे के शुक्रगुजार होने की बजाय उसकी बुराई कर रहे हो….खैर मैं तुम्हे एक और गिफ्ट दे सकती हूँ…बताओ क्या चाहिए तुम्हे?”, परी ने पूछा .

रमेश को यकीन नहीं हुआ कि उसे एक और वरदान मिल सकता है; वह ख़ुशी से भावुक होते हुए बोला…“मम..मम मैं..मैं फिर से वही पहले वाला स्कूल बॉय बनना चाहता हूँ…मैं समझ चुका हूँ कि जीवन का हर एक पल जीना चाहिए, जो ‘अभी’ को कोसता है वो कभी खुश नहीं हो पाता…उसका जीवन खोखला रह जाता है… प्लीज…प्लीज…मुझे मेरे पुराने दिन लौटा दो…. प्लीज…प्लीज…प्लीज न…”

तभी एक आवाज़ आती है… “उठो बेटा…तुम यहाँ…इन जंगलों में कैसे आ गये…और ये सपने में प्लीज..प्लीज…क्या बड़बड़ा रहे थे…”

रमेश आँखे खोलता है…अपनी माँ को आँखों के सामने देखकर वह कसकर उनसे लिपट जाता है और फूट-फूट कर रोने लगता है .

कहानी से सीख

यह कहानी एक सबक से भरी हुई है। हमें हमारे जीवन के हर पल का आनंद लेना चाहिए, विशेष रूप से प्रेजेंट मोमेंट को एन्जॉय करने में। अक्सर हम अपने भविष्य की फिक्र में इतने व्यस्त रहते हैं कि हम वास्तविक जीवन को अनदेखा कर देते हैं। वास्तविकता में हम जो भी हैं, उसे स्वीकारना और उसे खुशियों से भरना हमारी जिम्मेदारी है।

बार-बार अपने जीवन की डोर को ताकत से खींचने के बजाय, हमें उसे स्वीकारने का साहस दिखाना चाहिए। वर्तमान को समझने, उसमे खुशियों को खोजने और अपने परिवार और प्रियजनों के साथ यह अनमोल समय का आनंद लेने का प्रयास करना हमारे जीवन को समृद्ध और संतुष्ट बना सकता है।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने सबसे महत्वपूर्ण समय को उत्साह से जीने की आवश्यकता है, और हमें प्रत्येक पल का आनंद उठाना चाहिए।

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