छत्तीसगढ़ी में कविताएँ | chhattisgarhi kavita in hindi | छत्तीसगढ़ की कविता

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 chhattisgarhi Kavita in hindi :  दोस्तों अगर आप छत्तीसगढ़ी में कविताँए , छत्तीसगढ़ की कविता chhattisgarhi Kavita ढूंढ रहे है तो आप बिलकुल सही जगह सही वेबसाइट पर आए है। आज हम आपके साथ इस पोस्ट के बदलती हुई ज़िंदगी के ऊपर बहुत ही लोकप्रिय कविताएँ आपके साथ शेयर करने जा रहे है। इन कविता में कवि ने ज़िंदगी के बारे में कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण अनमोल बातो का वर्णन किया है।

कवि इन छत्तीसगढ़ी कविता के माधयम से हम सब को यहाँ अनमोल बातें द्वारा जागृत करना चाहते है की हम टेक्नोलॉजी, धन दौलत के पीछे अपनी असल ज़िंदगी को जीना भूल ही गए है। हम अपने रोज मर्रा के काम-काज और दिन प्रतिदिन की भाग दौड़ में इतने वयस्थ हो गए है की अपनी ज़िंदगी को खुल कर ठीक से कैसे जिए ये ही भूल जाते है और पसंदीदा प्रतिक्रियाएं भी नहीं कर पाते इसी मुद्दे को कवि ने ये कविताओं के जरिये वर्णित किया है। chhattisgarhi Me Kavita ,chhattisgarhi poems in hindi, chhattisgarhi Poems in about Life in Hindi , Students Life Poems in Hindi , छत्तीसगढ़ी हिंदी कविताएँ बदलती ज़िंदगी पर.

इन सभी कविताओं के माध्यम से कवि हमे ज़िंदगी जीने का सही तरीका बताना चाहता है। सभी कवियों ने अपनी जिन्दगी को आधार मानकर कुछ बहुत ही  बेहतरीन छत्तीसगढ़ी हास्य कविता, छत्तीसगढ़ी कविता शायरी लिखी है। कवियों ने अपनी एक ही कविता में जिन्दगी के बारे में सारी बाते कह डाली है। 

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Table of Contents

Best chhattisgarhi Kavita 2021


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1. Chhattisgarhi Kavita on mobile – मोबाईल के जमाना हे 

“जय हो तोर नेट”

मोबाईल के जमाना हे, 

चलत हे भारी नेट! 

एकर चक्कर मा भात घलो, 

नइ खवावय भर पेट! 

आठोकाल बारो महीना, 

आषाण सावन जेठ! 

उठत बईठत रेंगत दउड़त, 

घंसत घंसत कोलगेट! 

नई छोड़न मोबाइल ला, 

भले डिपटी मा हो जय लेट! 

सब झन लगे हे मोबाईल मा, 

गरीब होवय चाहे सेठ! 

डोकरा बबा घलो हाथ उठाके, 

खोजथे मोबाईल मा नेट! 

कभू चढंहत हे अटरिया ता, 

कभू चढ़हत हे गेट! 

एकर चक्कर मा ले बर पडगे, 

मँहगा वाला हेंडसेट! 

जय हो तोर नेट! 

जय हो तोर नेट! 

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2. छत्तीसगढ़ी कविता – कलयुग मा पाप

कलयुग मा पाप बढ़े ,
अऊ मनखे करे  अत्याचार

मॉ बाप ला मारके बेटा ,
दुरिया ले करे धुतकार

मॉ बाप के सेवा करके,
पाबे  सरग के दुवार

मॉ बाप के सेवा करईय्या ,
नई मिले श्रवन कुमार

हाय राम पापी कल्युग के रचना ला
रचे तैं काबर

मनखे मन के अत्यचार देखके,
कलपे अंतस हा माेर 

कलयुग के नाश करे बर,
कब लेबे कलंकनि अवतार

प्रहलाद पुरबिया परे पईय्या,
सिरि राम पालनहार

3 . छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह – मोती झरे संगी

मोती झरे संगी मोती झरे,

हांसी मे गोरी के मोती झरे ।।

जादु भरे संगी जादु भरे,

नैना मे गोरी के जादु भरे ।।

मिरगिन जईसे चाल टुरी के ।।

रेंगना-हावय कमाल टुरी के ।।

देख के  दिल  मा आगी बरे ।।

नैना मे गोरी के जादु भरे ।।

नागिन-जईसे बाल गोरी के ।।

लाली गुलाबी गाल गोरी के ।।

चुम्मा लेहे बर मन मोर करे ।।

नैना मे गोरी के जादु भरे ।।

बड़ गजब हे नखरा गोरी के ।।

‘उमर घलो हे सतरा गोरी के ।।

पानीभरे आथे जी घघरी धरे ।।

 नैना मे गोरी के जादु भरे ।।

मोर तीर मा टुरी आवय नहीं ।।

नाम ला अपन-बतावय नहीं ।।

दुरिहा ले देखत हे खड़े खड़े ।।

 नैना मे गोरी के जादु भरे ।।

आंखी मे गोरी काजल आंजे ।।

गोरी के पैरी, छम-छम बाजे ।।

पगला कर डारे, दिवाना करे ।।

नैना मा गोरी के जादु भरे ।।

  **कृष्णा पारकर*

4 . chhattisgarhi kavita – “सब चीज नंदावत हे”

“सब चीज नंदावत हे”

चींव चींव करके छानही में

चिरइया गाना गावाथे |

आनी बानी के मशीन आय ले

सब चीज नंदावत हे ||

धनकुट्टी मिल के आय ले

ढेंकी ह नंदागे

घरर घरर जांता चले

अब कोन्टा में फेंकागे

गली गली में बोर होगे

तरिया नदिया अटागे |

घर घर में नल आगे

कुंवा ह नंदागे |

पेड़ ल कटइया सबो हे

कोनो नइ लगावत हे

आनी बानी के मशीन आय ले

सब चीज नंदावत हे ||

टेकटर के आय ले

कोनो नांगर नइ जोतत हे

गाय बइला ल पोसेल छोड़के

कुकुर ल अब पोसत हे

कहां ले पाबे दूध दही

अऊ कहां ले पाबे मेवा

लछमी ल तो छोड़के

कुकुर के कराथस सेवा

घर मे होवत हांव हांव

कुकुर कस नरियावत हे

आनी बानी के मशीन आय ले

सब चीज नंदावत हे ||

मिकसी के आय ले

सील लोढहा नंदागे

कुकर में खाना बनत

हड़िया ह फेकागे

चुल्हा फुंकइया कोनो नइहे

गेस सिलेंडर आगे

निरमा पाउडर में बरतन मांजत 

राख ह नंदागे

जतकी सुविधा बाढ़त जावत

ओतकी आदमी अलसावत हे

आनी बानी के मशीन आ य ले

सब चीज नंदावत हे | 

“जय छत्तीसगढ़ महतारी”????????????

5 . chhattisgarhi hindi kavita – ” नरवा गरवा घुरवा  बारी ”

          नरवा गरवा घुरवा बारी 

          एला  बचाना  हे  संगवारी |

          नरवा म कचरा  के ढेर लगे हे ,

          माढ़त पानी  म कीरा  परे  हे |

          आनी बानी के बाढ़य बीमारी ,

          एला बचाना हे सगवारी ||

          दही मही दूध देवय गोबर ,

          गरुवा हे सिरतोन माता बरोबर |

          खेती किसानी के हावय अधारी ,

          एला बचाना हे संगवारी ||

          घुरुवा किसानी के जुन्ना निसानी,

          अमरित कुण्ड बोहय हरियाली |

          इही जहर ले मुक्ति कराही  ,

          एला बचाना हे संगवारी  ||

          बारी म डारव गोबरखत्ता ,

          जैविक खाद बनावव सस्ता |

          बारी ले जाही बेरोजगारी ,

          एला बचाना हे संगवारी ||

          छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी ,

          नरवा गरवा घुरवा बारी ||

          एला बचाना हे संगवारी |

          एला बचाना हे संगवारी ||

         ,,,,,,,, नरेन्द्र कुमार सोनी, शिक्षक ,,,,,,,
       खुरसुला, बिलाईगढ
बलौदाबाजार, छ.ग.

6 . chhattisgarhi maya shayari Poem in hindi

ले के मोर दिल, गोरी लहुटाए कहाँ ।

आहंव कहे रहे, मगर तै आए कहाँ ।

मोर मन भौंरा खोजत हावय तोला ।

नजर मिलाके गोरी तै लुकाए कहाँ ।

मुरत बन के चुप चाप खड़े रहीगए ।

तोर मन के बात मोला बताए कहाँ ।

ले’तहीं बता अईसे कोनो करथे का ।

आए तो सही-मगर गोठियाए कहाँ ।

‘कृष्णा’ के साँवला रंग तो बने देखे ।

पगली मोर मया तै, देख पाए कहाँ ।

           **कृष्णा पारकर**

7. छत्तीसगढ़ी पोएम – *”गरीब  घर  के  रोटी”*

*”गरीब  घर  के  रोटी”*

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गरीब घर‌ के जरहा जरहा,

बड़हर के सोंहारी ,मेंछरावत हे  रोटी,

पेट के खातीर ,ये चोरी,बैमानी,

भाई भाई ला दुश्मन बनावत हे रोटी

भाई भाई ला कौन कहे,

ददा दाई के नई होवत हे,

नानकुन कुरिया ,

के चार हिस्सा होवत हे,

गजब के फेशन अऊ गजब के जमाना ,

दाई ददा ला जरहा रोटी बर झन तरसा ना।

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*सेतराम साहू “सेतु मार्तण्ड”*

8 . बेस्ट छत्तीसगढ़ी कविता – मोर छत्तीसगड़ के बासी.

गजब मिठाथे रे संगी, मोर छत्तीसगड़ के बासी.

ईही हमर बर तिरिथ गंगा, ईही हमर बर मथरा कासी.

उठथन बिहनिया करथन मुखारी, अउ झडक थन बासी.

दिन भर करथन काम बुता , पेट नई होवय खाली.

दार दरहन के कामे नईये, नई लगाय साग तरकारी.

दही मही संग नुन मिर्चा, गोन्दली येकर सन्ग्वारी.

के दिन ले बनाबो माल पुआ, के दिन ले बनाबो तसमई पुरी.

कतका ला बिसाबो सेव डालीया , के दिन ले खाबो सोहारी.

समोसा, जलेबी, पोहा, खोआ, रसगुल्ला नइ मिठावय हमला.

नई खाए सकन होटल के रोज, तेलहा, फुलहा भजिया.

सहरिया मन के नकल जो करबो, होजाहि जग हासि.

सबले सस्ता सबले बढीया , मोर छत्तीसगढ के बासी .

“”जय छत्तीसगढ””

9 . छत्तीसगढ़ी कविताएं

”मोर गांव कहां गंवागे”

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो

भाखा बोली सबो बदलगे, मया कहां में पावों,

काहनी किस्सा सबो नंदागे, पीपर पेड़ कटागे

नइ सकलाये कोनों चंउरा में, कोयली घलो उड़ागे,

सुन्ना परगे लीम चंउरा ह, रात दिन खेलत जुंवा

दारु मउहा पीके संगी, करत हे हुंवा हुंवा,

मोर अंतस के दुख पीरा ल, कोन ल मय बतावों

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो

जवांरा भोजली महापरसाद के, रिसता ह नंदागे

सुवारथ के संगवारी बनगे, मन में कपट समागे

राम राम बोले बर छोड़ दीस, हाय हलो ह आगे

टाटा बाय बाय हाथ हलावत, लइका स्कूल भागे,

मोर मया के भाखा बोली, कोन ल मय सुनावों

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो,

छानी परवा सबो नंदावत, सब घर छत ह बनगे

बड़े बड़े अब महल अटारी, गांव में मोर तनगे

नइहे मतलब एक दूसर से, शहरीपन ह आगे

नइ चिनहे अब गांव के आदमी, दूसर सहीं लागे,

लोक लाज अऊ संसक्रिती ल, कइसे में बचावों,

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो

धोती कुरता कोनों नइ पहिने, पहिने सूट सफारी

छल कपट बेइमानी बाढ़गे, मारत हे लबारी

पच पच थूंकत गुटका खाके, बाढ़त हे बिमारी

छोटे बड़े कोनों मनखे के, करत नइहे चिन्हारी,

का होही भगवान जाने अब, कोन ल मय गोहरावों,

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो

जगा जगा लगे हाबे, चाट अंडा के ठेला

दारु भटठी में लगे हाबे, दरुहा मन के मेला

पीके सबझन माते हाबे, का गुरु अऊ चेला

लड़ई झगरा होवत हाबे, करत हे बरपेला,

बिगड़त हाबे गांव के लइका, कइसे में समझावों

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो,,

???? जय जोहार-जय छत्तीसगढ़ ????

10 . छत्तीसगढ़ी माया कविता – *मया के महिमा*

मया बड़ झमेला हे,

मतलब के मेला हे।

बिन मया के ‘सेतु’,

भरे जगत मा अकेला हे।।

मया गुड़ गुरतुर हे,

मया मिरचा चुरपुर हे।

पानी कस बेसुवाद मया,

मया नून नूनछुर हे।।

मया बड़ हलकान हे,

मया गरब गुमान हे।

कभू जुड़ पुरवाही सहीं,

मया कभू आँधी तूफान हे।।

मया माई के कोरा हे,

मया मयारू जोरा हे।

गजब निराला ढंग एखर,

मया मन के फोरा हे।।

मया खीर तसमई हे,

मया रंग एकमई हे।

जादा मीठ-मीठ मा,

मया फकत करलई हे।।

मया नरियर भेला हे,

मया हा माटी ढेला हे।

मोटर कार गाड़ी कभू,

मया हा हाथठेला हे।।

मया पँड़की मैना हे,

मया हा फूलकैना हे।

कभू उराठील बोल ता,

मया पिरीत के बैना हे।

मया मा मालामाल हे,

मया सिरतों कंगाल हे।

तन मन मा ये छाथे ता,

मया हा मेकराजाल हे।।

*सेतराम साहू  ‘सेतु मार्तण्ड’*✍

11 .chhattisgarhi kavita – *सपना म एक दिन*

सपना म एक दिन नेता बन गेव 

      कुर्सी ल धारेव पोटर के 

गांव शहर भर हल्ला होगे

      घर म बोझा होगे हार के 

पानी घाट होगे दिल्ली अऊ भोपाल के 

लाइन लगे हे मोर घर मोटर अऊ कार के 

   कश्मीर म हमला, संसद म हमला 

अब का होहि सरकार के 

सुते जठना मा बम फुटगे 

देखेल लागेव मुंह ला फार के 

लड़त लड़त सीमा म मर जातेव 

संसद के भीतर मरना धिक्कार हे

12 . छत्तीसगढ़ी हिंदी पोएम – *चांदी जईसे’ दांत दिखत हावय*

चांदी जईसे’ दांत दिखत हावय ।

चेहरा, चौबिस कैरेट के सोन हे ।

डर लागथे’ दिल डूब झन जाए ।

कारी आंखी तोर डेंजर जोन हे ।

ऊंचा हिल वाले पांव मे सैंडिल ।

तोर हाथ मे सैमसंग के फोन हे ।

नंबर तो देते पता चल जातिस ।

अरे कउन गाना के रिंग-टोन हे ।

झूठ के ही बोल बाला चलत हे ।

सच बात के पुछवईया कोन हे ।

13 . छत्तीसगढ़ी कविता बदलती हुई जिंदगी पर

???? हाय रे मोबाईल????

हाय रे मोबाईल तोर भारी हे गुन,

सबो कोई गावत हे तोरेच धुन।

मोबाईल रखना इजी हे,

जेला देख तैहर बिजी हे।

भले नेटवर्क हर टू-जी हे,

तभो दिन-रात बिजी हे।

कवरेज ले बाहर हे,

तभो मारत पावर हे।

मोबाईल म बैलेँस जीरो हे, 

तभो सब बनता हीरो हे।

टू-जी अब नंदावत हे,

थ्री-जी म जम्मो पगलावत हे।

लईका,सियान नोनी-बाबू वांगड़ु,

सबे लगे मोबाईल के पाछू।

एस एम एस के जमाना हे,

लिख-लिख के गोठियाना हे 

मोबाईल के बढ़ महिमा,

धरे रथे सब कनिहा।

झुठ बोले के मशीन हे,

भले झन करा यकीन हे।

ट्वीटर अउ फेशबुक म का ख़जाना हे,

वाँटसाप म समय गवाना हे।

अब आऊ काए-काए ल बताव,

एकर कतका महिमा ल सुनाव॥

14 . छत्तीसगढ़ी कविता – लीला तोर अपार

????????लीला तोर अपार ????????

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लीला तोर अपार 

कोन पाही तोर पार 

भरगे बाही बंजर 

पूरा बोहावे धारे धार ….लीला 

संसार तोर रचना 

पल भर मे बिखरना 

का जीना का मरना 

दुख सुख ला सहना 

सकल जगत के सरकार 

चारो डहर हाहाकार…लीला 

गिरिस भादो भकोड के 

आषाढ़ सावन छोड के 

एकमई घर कुरिया फोड के 

तहस नहस करदिस रोड के 

आंखी मुंदे करिया बादर 

छलकत नदिया सागर ..लीला 

दिन रात एक बरोबर 

ओरिछा छानी सरोबर 

बरसे ता अइसने डहेबर 

नई बरसे ता का करे बर 

हाथ जोडत हे हजार 

हे जिंनगी के आधार ..लीला 

      ईश्वर के लीला 

आशुकवि चंन्द्रभूषण रामपुरिया

15 . छत्तीसगढ़ी कविता – छुए म मँहगी

छुए म मँहगी, लाल टमाटर,

गोंदली भाव रोवावत हे।

छिदिर बिदिर अस, पत्ता गोभी,

पांख पहिर उड़ियावत हे।

चालिस पार हे करु करेला,

डोड़का ताव देखावत हे।

गिदगिद गोभी किरा परे अस,

रमकेरिया लरम लजावत हे।

नान नान लौकी इतरावै,

केरा कहाँ मिठावत हे।

बरबट्टी के भाग लहुटगे,

परवर घलो लुकावत हे।

मुनगा मुरगा ले मँहगा हे,

भाँटा कहाँ खवावत हे।

गाजर मुरई के भाव सुनके,

तरुवा हमर सुखावत हे।

बैरी होगे हे आलू ह,

बढ़ती म गुंगवावत हे।

भाव सुने भर ले सबजी के,

खाए के साध बुतावत हे  ।
 ••• *जय छत्तीसगढ़* •••

16 . छत्तीसगढ़ी कविता – *बऊग बतर के किरनी मन,*

बऊग बतर के किरनी मन, 

दिया बाती म झपावत हे ! 

हमरो छत्तीसगढ म संगी, 

मानसून अब आवत हे।। ☔☔☔⛅⛅⚡⚡

चेंच, चरोटा आनि -बानि,

भाजी -पाला उलहोवत हे। 

दीदी, बहिनी, दाई मन ह,

बारी  बखरी  बोंवत हे।। 

 गाय, गरू, अऊ बइला, भइंसा, 

बरदी म सकलावत हे। 

हमरो छत्तीसगढ म संगी, 

मानसून अब आवत हे।। ☔☔☔⛅⛅

लइका मन ह चिखला म, 

घरघुंदिया बिकट बनाहीं। 

????चलही कागज के डोंगा जब, गली  म  धार  बोहाही।। 

????इस्कुल खुलगे जावव कइके,  ????दाई -ददा जोजियावत हे।   हमरो छत्तीसगढ म संगी, 

मानसून अब आवत हे।। ☔☔☔⛅⛅

केकरा, घोंघी नींद ले जागे, ????झेंगुरा, फांफा नाचय जी। 

???? बेंगवा घर म घलो झमाझम, 

कईसन डी. जे. बाजय जी।। 

????पिटपिटी बिचारा का करय,              एति -ओति  मटमटावत हे।

हमरो छत्तीसगढ म संगी, 

मानसून अब आवत हे।। ☔☔☔⛅⛅

ठूंडगा जम्मो रूख – राई मन, 

????पलखर   बने  नहाहीं। 

????नवा -नवा डारा, पाना म,

तन ल अपन सजाहीं।। 

खेत-खार, भाँठा -पर्या सब, 

लकर-लकर हरियावत हे। 

हमरो छत्तीसगढ म संगी, 

मानसून अब आवत हे।। ☔☔☔⛅⛅

अँगाकर रोटी, पताल के चटनी, 

किसान “लंच ” म लाए हे। 

????धान छिंचत धरे मोबाइल, 

????पसंद के गाना चलाए हे।। 

????टेक्टर करत हे बोनी -बखनी, 

????नांगर -बइला सुरतावत हे। 

हमरो छत्तीसगढ म संगी, 

मानसून अब आवत हे।। ☔☔☔⛅⛅

बऊग बतर के किरनी मन, 

दिया बाती म झपावत हे ! 

हमरो छत्तीसगढ म संगी, 

मानसून अब आवत हे।। ☔☔☔⛅⛅

17 . छत्तीसगढ़ी कविता – *छुए म मँहगी*

छुए म मँहगी, लाल टमाटर,

गोंदली भाव रोवावत हे।

छिदिर बिदिर अस, पत्ता गोभी,

पांख पहिर उड़ियावत हे।

चालिस पार हे करु करेला,

डोड़का ताव देखावत हे।

गिदगिद गोभी किरा परे अस,

रमकेरिया लरम लजावत हे।

नान नान लौकी इतरावै,

केरा कहाँ मिठावत हे।

बरबट्टी के भाग लहुटगे,

परवर घलो लुकावत हे।

मुनगा मुरगा ले मँहगा हे,

भाँटा कहाँ खवावत हे।

गाजर मुरई के भाव सुनके,

तरुवा हमर सुखावत हे।

बैरी होगे हे आलू ह,

बढ़ती म गुंगवावत हे।

भाव सुने भर ले सबजी के,

खाए के साध बुतावत हे  ।

       ••• *जय छत्तीसगढ़* •••

18 . छत्तीसगढ़ी कविता – ” नानपन के मोर गॉव “

” नानपन के मोर गॉव “

ददा के मया दुलार,मोर दाई के अचरा के छांव।

याद आथे संगी मोला , नानपन के मोर गॉव।।

पेंड़ तरी खेलन भटकउला।

गउ दइहान के गिल्ली अउ डंडा।।

आषाढ़ के पानी , अउ कागज के मोर नांव,

याद आथे संगी मोला, नानपन के मोर गॉव,,

लकड़ी के बने, रेंहचुल ढेलउवा।

बइला चरई अउ ,डंडा कोलउवा।।

होत बिहनिहा कुकरा बासय, अउ कउंआ करै कांव कांव,

याद आथे संगी  मोला, नानपन के मोर गॉव,,

स्कूल ले आके, तरिया तउड़ई।

कागज के बने, पतंग उड़ई।।

ओ टेड़गा रुख, अउ मोर छोटे-छोटे पांव,

याद आथे संगी  मोला, नानपन के मोर गॉव,,

????????????????????????

19 . छत्तीसगढ़ी कविता – ” गजब मिठाथे रे संगी “

” गजब मिठाथे रे संगी “

गजब मिठाथे रे संगी, मोर छत्तीसगड़ के बासी.

ईही हमर बर तिरिथ गंगा, ईही हमर बर मथरा कासी.

उठथन बिहनिया करथन मुखारी, अउ झडक थन बासी.

दिन भर करथन काम बुता , पेट नई होवय खाली.

दार दरहन के कामे नईये, नई लगाय साग तरकारी.

दही मही संग नुन मिर्चा, गोन्दली येकर सन्ग्वारी.

के दिन ले बनाबो माल पुआ, के दिन ले बनाबो तसमई पुरी.

कतका ला बिसाबो सेव डालीया , के दिन ले खाबो सोहारी.

समोसा, जलेबी, पोहा, खोआ, रसगुल्ला नइ मिठावय हमला.

नई खाए सकन होटल के रोज, तेलहा, फुलहा भजिया.

सहरिया मन के नकल जो करबो, होजाहि जग हासि.

सबले सस्ता सबले बढीया , मोर छत्तीसगढ के बासी .

          ????????  “”जय छत्तीसगढ”” ????????

20 . छत्तीसगढ़ी कविता –   “अब के बरस”

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अब के बरस बाबुल नाहि आइहैं,

तीजा पोरा कइसे, मनाइहौं रे।

आपन भइया की छोटी सी मुनियाँ,

अँखियन कइसे समुझाइहौं रे।

तीजा पोरा कइसे, मनाइहौं रे,,,,,,,,,।

बैरन  कॅरोना ने  साध बुताई,

बाबुल अँगना से लगन छुड़ाई।

रहि-रहि अँसुअन नैनन बरसे,

माई की अँखियन मोरे बिन तरसे।

नैहर कइसे मैं आइहौं रे,,,,,,

अब के बरस बाबुल नाहि आइहैं,

तीजा-पोरा कइसे , मनाइहौं रे,,,,

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छत्तीसगढ़ी कविता के प्रथम रचनाकार कौन थे ?

छत्तीसगढ़ी कविता के प्रथम रचनाकार पंडित सुंदरलाल शर्मा जी है | जिन्होंने  छत्तीसगढ़ी भाषा का युग प्रवर्तक कवि माना जाता है। पंडित सुंदरलाल शर्मा जी की प्रमुख छत्तीसगढ़ी रचनाओं में काव्यामृत वर्षिनी, सीता परिणय, प्रहलाद चरित्र, छत्तीसगढ़ी रामायण, छत्तीसगढ़ी दानलीला, सच्चा सरदार, करुणा पच्चीसी, पार्वती परिणय, विक्रम शशि कला नाटक, कंस वध खंडकाव्य आदि हैं।

छत्तीसगढ़ के प्रथम कवि का नाम क्या है ?

छत्तीसगढ़ी कविता के प्रथम कवि  पंडित सुंदरलाल शर्मा जी है |

छत्तीसगढ़ के लेखक के नाम

लक्ष्मण कवि, दयाशंकर शुक्ल, पं. शिवदत्त शास्त्री, लोचन प्रसाद पांडेय

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