एक तालाब के किनारे जामुन का एक पेड़ था उस पेड़ के छोटे से कोटर में एक गिलहरी रहती थी। सुबह होते ही वह अपने बच्चों के साथ कोटर से बाहर आ जाती और जो भी मिलता, उसको अपने बच्चों के साथ बड़े चाव से खाती थी। उसी तालाब में एक कछुआ (Kachua) बहुत दिनों से रहता था। उसका भी अपना पूरा परिवार था।
वह कछुआ (Turtle) बहुत मोटा और भारी था। जैसे मोटा उसका शरीर था वैसे ही उसकी बुद्धि भी मोटी थी। गिलहरी और कछुए में घनिष्ठ मित्रता थी। आषाढ़ के महीने में जामुन पकने लगे तो कछुए का मन ललचा गया। उसने गिलहरी से कहा:-” क्या तुम मुझे दोस्ती की खातिर जामुन भी नहीं खिला सकती?”
गिलहरी उसकी मीठी मीठी बातों में आ गई और पके जामुन कछुए को देने लगी। कछुआ जामुन खाता और कुछ अपने बच्चों के लिए ले जाता। कछुवी इन जामुनों को पाकर बड़ी खुश हो जाती और गिलहरी के स्वभाव की प्रशंसा करती।
एक दिन कछुवी ने गिलहरी को तेजी से भागते हुए पेड़ पर चढ़ते हुए देखा। उसकी नजर लहराती पुंछ और धारीदार कमर पर पड़ी तो देख कर आश्चर्य में पड़ गई।
कछुवी ने कछुए से कहा:-” तालाब के राजा! मैं आपकी पत्नी हूं मेरी इच्छा है कि मैं भी इस गिलहरी की तरह दौड़ पाती
मुझे लगता है कि यदि मैं इस गिलहरी को मारकर खा जाऊं तो उसके सारे गुण मुझ में आ सकते हैं। आप किसी तरह अपनी दोस्त को यहां तक ले आओ।”
कछुए ने कहा:-” यह काम जरा भी मुश्किल नहीं है। वह मुझ पर इतना विश्वास करती है कि मेरे साथ चली आएगी। तुम्हारी इच्छा तो पूरी करनी ही पड़ेगी।”
कछुआ (Kachua), जामुन खाने के बहाने गिलहरी के पास गया और बोला:-” आज कल वर्षा के कारण तालाब खूब भर गया है। हमारे परिवार के लोग चाहते हैं कि तुम्हें तालाब की सैर करा दी जाए।” गिलहरी उसकी बातों में आ गई।
उसने कछुए की पीठ पर बैठकर तालाब की सैर करने की बात मान ली। दोनों तालाब के बीच में जा पहुंचे।
जब कछुए ने समझ लिया कि गिलहरी यहां से भाग नहीं सकती तो उसने गिलहरी से कहा:-” मुझे अफसोस है कि आज मैं तुम्हें मारकर तुम्हारा मांस अपनी पत्नी को खिलाऊंगा।”
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गिलहरी ने बिना घबराए पूछा:-” परंतु क्यों?” कछुए ने कहा:-” क्योंकि मेरी पत्नी बहुत धीरे धीरे चलती है और उसको किसी ने कहा है कि यदि वह तुम्हारा मांस खा ले तो वह भी तुम्हारी तरह दौड़ सकती है।”
‘ओह तो यह बात है’। गिलहरी ने चालाकी से हंसते हुए कहा:-” मेरे मित्र! जरा सी बात को तुम कितना तूल दे रहे हो।
अरे, मेरे कोटर में एक गरुड पंख रखा हुआ है। जो भी उस पंख को छू लेता है वह भी मेरी तरह दौड़ सकता है।
यदि तुम मुझे पहले कहते, तो मैं वह पंख तुम्हें दे देती। लेकिन कोई बात नहीं है मैं अभी तुम्हें वह पंख देती हूं।”
मूर्ख कछुआ (Kachua), गिलहरी के झांसे में आ गया और वह वापस जामुन के पेड़ की ओर चल पड़ा। किनारे के पास पहुंचते ही गिलहरी कूद कर पेड़ पर जा चढ़ी और बोली:-” दुष्ट कछुए, जाओ और फिर कभी वापस लौटकर मत आना। ”
बेचारा कछुआ (Kachua) हाथ मलते रह गया और निराश होकर तालाब के पानी में चला गया।
कहानी से सीख:-
जो प्राणी अपने मित्रों को भी हानि देने से बाज नहीं आता, ऐसे कपटी और बुरे प्राणियों से परमात्मा सबको दूर ही रखें।