छत्तीसगढ़ की मिट्टियों के प्रकार | Soil of Chhattisgarh Hindi Gk

1.5/5 - (2 votes)

हमारा छत्तीसगढ़ राज्य प्राकृतिक संसाधन के दृष्टिकोण से परिपूर्ण है. मृदा, एक प्राकृतिक संसाधन है जो प्रकृति प्रदत्त छत्तीसगढ़ की अमूल्य धरोहर है जिसका कोई मोल नहीं है. यह किसी भी क्षेत्र की समृद्धि’ का आधार होती है। छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है जिसके आर्थिक विकास में मृदा की महत्वपूर्ण भूमिका है। मृदा का निर्माण दीर्घकाल में वर्षा, नदी, पवन आदि प्राकृतिक कारणों से होता है, जो अवशिष्ट चट्टानों, खनिज पदार्थो तथा जीवाश्मों का समूह होती है। क्षेत्र विशेष की जलवायु भौतिक चट्टानों, वनस्पति की मात्रा, जल निकास आदि कारणों से मृदा के स्वरूप का निर्धारण होता है। इस कारण मृदा के स्वरूप में प्रादेशिक आधार पर भिन्नताएं पायी जाती है.

भौतिक संरचना में भिन्नताओं के कारण छत्तीसगढ़ के भौतिक प्रदेशों में अलग-अलग प्रकार के मृदा समूह पाये जाते है। संगठन, संरचना, रंग एवं गुण के आधार पर छत्तीसगढ़ की मृदा को निम्नों समूहों में वर्गीकृत किया गया है जो इस प्रकार है


छत्तीसगढ़ में मुख्या रूप से 7 प्रकार की मिट्टी पाई जाती है


छत्तीसगढ़ की मिट्टियों के प्रकार | Soil of Chhattisgarh Hindi Gk
छत्तीसगढ़ की मिट्टियों के प्रकार | Soil of Chhattisgarh Hindi Gk

1. लाल-पीली मिट्टी

छत्तीसगढ़ में इस मिट्टी को “मटासी मिट्टी के नाम से जाना जाता है। जो राज्य के लगभग 50-60% भू-भाग पर छत्तीसगढ़ के मध्यवर्ती मैदान एवं उत्तरी भाग पर विस्तृत है। इस मिट्टी का निर्माण मूलतः गोंडवाना शैल समूह से हुआ है। फेरस ऑक्साइड के कारण इस मिट्टी का रंग लाल तथा फेरिक ऑक्साइड में जल योजन के कारण इस मिट्टी का रंग पीला होता है। इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व ह्यूमस की कमी पायी जाती है। वहीं इसमें चूना व लौह खनिज की मात्रा पर्याप्त होती हैं। चूने की अधिकता

के कारण यह मिट्टी क्षारीय प्रकृति की होती है। इसका पी. एच. मान 5.5-8.6 के मध्य होता है। मटासी मिट्टी में एलुमिना तथा सँडस्टोन की उपलब्धता के कारण मृत्तिका का आकार बड़ा होता है। जिसके कारण इसकी जलधारण क्षमता, मध्यम प्रकृति की होती है। इस कारण इस मिट्टी से वर्ष भर में एक बार फसल लिया जाता है। अम्लीय एवं क्षारीय प्रकृति के कारण यह मिट्टी धान की फसल के लिए सर्वोत्तम है। इसके अतिरिक्त उड़द, मूंग तथा मूंगफली के फसल के लिए भी यह मिट्टी उपयुक्त होती है।

2. लाल-रेतीली मिट्टी

छत्तीसगढ़ में इस मिट्टी को ‘बलुई मिट्टी के नाम से जाना जाता है। इस मिट्टी का विस्तार राजनांदगांव (मैकल श्रेणी) संजारी बालोद (दक्षिणी भाग), गरियाबंद जिला तथा सम्पूर्ण बस्तर संभाग (सुकमा, कोंटा मैदान को छोड़कर) में है। राज्य के लगभग 25-30 प्रतिशत क्षेत्र पर इसका विस्तार है। इस मिट्टी का निर्माण आर्कियन एवं धारवाड की चट्टानों से हुआ है।

लौह खनिज की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग लाल होता है। इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटेशियम की कमी पायी जाती है। साथ ही, जीवाश्म का भी अभाव होता हैं। चूने की कमी के कारण इस मिट्टी की प्रकृति, अम्लीय होती हैं। एल्युमीनियम एवं क्वार्टजाइट के अंश भी पाये जाते हैं। मृदा के कण अपेक्षाकृत बड़े होते है। इस कारण इसकी जलधारण क्षमता कम होती है। यह मिट्टी मोटे अनाजों जैसे- ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, मक्का आदि फसलों के लिए उपयुक्त है।

3. दोमट मिट्टी

छत्तीसगढ़ में इसे कछारी मिट्टी के नाम से जाना जाता है। राज्य के लगभग 10-15% भाग पर इस मिट्टी का विस्तार है। हसदेव-रामपुर बेसिन तथा सुकमा-कोटा के मैदान में इस मिट्टी का विस्तार है। दक्षिणी भाग में इसे लाल दोमट मिट्टी के नाम से जाना जाता है। फेरस-ऑक्साइड के कारण यह मिट्टी लाल रंग की होती है। बेसिन क्षेत्रों पर यह रंगहीन होता है। इसमें जीवाश्म पर्याप्त मात्रा में होती है। अपनी प्रकृति में यह अम्लीय होता है। मृदा के कण सूक्ष्म होने के कारण इसकी जलधारण क्षमता पर्याप्त होती है। यह मिट्टी सभी प्रकार के फसलों के लिए उपयुक्त है। इस प्रकार की मिट्टी वाले क्षेत्रों में जूट एवं पटसन का उत्पादन अधिक होता है।

4. काली मिट्टी

छत्तीसगढ़ में इसे “कन्हार मिट्टी” के नाम से भी जाना जाता है। राज्य में इस मिट्टी का विस्तार कवर्धा, मुंगेली, राजनांदगांव बेमेतरा एवं रायपुर (आरंग क्षेत्र) तथा राजिम के कुछ भाग पर है। इस मिट्टी का निर्माण लावा से हुआ है। लोहे के अंश काला होता है। जीवाश्म का प्रायः अभाव होता है। यह मिट्टी प्रकृति में क्षारीय होती इसका पी.एच. मान 7 से 8 तक होता है।

इस मृदा के रचक कण अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण इसकी जलधारण क्षमता अधिक होती है। गर्मी में लम्बी दरारें पड़ने के कारण इसमें सूर्य का प्रकाश और हवा, इसकी गहराई तक पहुँचती है, जिस कारण यह मिट्टी उपजाऊ होती है। जलधारण क्षमता अधिक होने से यह मिट्टी वार्षिक फसलों जैसे- गेहूँ गन्ना, कपास, चना इत्यादि के फसलों के लिए उपयुक्त होती है। यह मिट्टी द्विफसली है। इस मिट्टी को भर्री रेगुर एवं चिका मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है। इस मिट्टी का प्रयोग छत्तीसगढ़ के ग्रामीण लोगों के द्वारा शेम्पू के रूप में भी किया जाता है।

5. लेटेराइट मिट्टी

छत्तीसगढ़ में इस मिट्टी का स्थानीय नाम भाठा मिट्टी” है। यह मिट्टी मुख्यतः छत्तीसगढ़ में ऊंचाई वाले पाट प्रदेशों में फैली हुई है। जशपुर कवर्धा जिलों के कुछ क्षेत्रों में भी इस मिट्टी का विस्तार है। लेटेराइट मिट्टी में आयरन तथा एल्यूमीनियम के ऑक्साइड पाये जाते हैं। निक्षालन की प्रक्रिया के कारण यह मिट्टी अत्यंत कठोर होती है। जिसके कारण इस मिट्टी का प्रयोग भवन निर्माण एवं ईंट निर्माण में किया जाता है। यह मिट्टी बागानी फसलों जैसे- चाय, टमाटर, आलू, प्याज इत्यादि के लिए उपयुक्त होती है।

6. जलोढ मिट्टी

नदी घाटीयों एवं नालों के तटों पर यह मिट्टी पाई जाती है। यह मिट्टी छत्तीसगढ़ के बहुत कम हिस्से में है। विशेषकर सरगुजा एवं जशपुर जिले के कुछ भागों में इसका विस्तार है।

7. डोरसा मिट्टी

कन्हार और मटासी मिट्टी के मिश्रण को डोरसा मिट्टी कहा जाता है. यह मिट्टी छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक मात्रा में पायी जाती है तथा इस मिट्टी की प्रकृति भी दोनों मिट्टियों के समतुल्य होती है।

अन्य लिंक

Frequently Asked Questions About Soil of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में पीली मिट्टी कहां पाई जाती है ?

छत्तीसगढ़ में पीली मिट्टी को “मटासी मिट्टी कहाँ जाता है जो राज्य के लगभग 50-60% भू-भाग पर छत्तीसगढ़ के मध्यवर्ती मैदान एवं उत्तरी भाग में पायी जाती है। इस मिट्टी का निर्माण मूलतः गोंडवाना शैल समूह से हुआ है. तथा फेरिक ऑक्साइड में जल योजन के कारण इस मिट्टी का रंग पीला होता है।

छत्तीसगढ़ में मिट्टी कितने प्रकार की होती हैं ?

छत्तीसगढ़ में मुख्या रूप से 7 प्रकार की मिटटी पाई जाती है

छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक स्थान पर पाए जाने वाली मिटटी कौन सा है ?

छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक स्थान पर पाए जाने वाली “लाल-पीली मिट्टी” है जिसे छत्तीसगढ़ में मटासी मिट्टी के नाम से जाना जाता है.

मटासी मिट्टी किसे कहाँ जाता है

लाल-पीली मिट्टी को छत्तीसगढ़ में मटासी मिट्टी के नाम से जाना जाता है.

Leave a Comment